एक लाइन की खबर कि समान नागरिक संहिता पर विधि आयोग को अस्सी लाख सुझाव मिले! फिर एक चैनल पर राजस्थान को लेकर ‘सी वोटर’ का सर्वे: भाजपा जीतकर आती हुई, कांग्रेस जाती हुई और इस पर भी कोढ़ में खाज मौजूदा ‘सत्ताविरोधी लहर’ के साथ एक निष्कासित मंत्री की लाल डायरी का चैनल पर पाठ! कि फिर एक रोज कर्नाटक के उडुपी के एक छात्रावास में एक लड़की का तीन लड़कियों द्वारा एक ‘टायलेट वीडियो’ बनाने की खबर और विपक्ष का हंगामा, लेकिन देखने लायक रहा ‘बदनाम करने वाली खबर’ का तुरंता प्रबंधन कि ‘ये सब तो आपसी मजाक था!’

फिर दो दिन ‘आइएनडीआइए’ से संबद्ध इक्कीस सांसदों की टीम का दो दिवसीय मणिपुर दौरा, सांसदों की एक-सी प्रतिक्रियाएं और वही वही मांगें कि सीएम को हटाओ, राष्ट्रपति शासन लगाओ और संसद में पीएम बोलें! किसी ने न पूछा कि जब इतना बुरा हाल है तो पीएम का बोलना भी क्या कर लेगा? मणिुपर को लेकर विपक्ष द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को स्वीकार कर अध्यक्ष महोदय ने बहस के लिए दो दिन मुकर्रर कर दिए, तो भी मांग वही रही कि पीएम संसद में आएं, पीएम बोलें!

अरे भई, अविश्वास प्रस्ताव के जवाब में तो उनको बोलना ही होगा, तब काहे की यह ‘गोपी पुकार’ कि पीएम आएं पीएम बोलें…; ताकि उनको ‘हूट’ करने का अनमोल सुख प्राप्त कर सकें…! कुछ विपक्षी चर्चक कहते रहे कि मणिपुर की हिंसा ‘सामुदायिक संहार’ है, कि ‘जनसंहार’ है, लेकिन जैसे ही कोई कहता कि बंगाल, राजस्थान की हिंसा पर भी कुछ गौर फरमाइए, तो जवाब आता कि यूपी में क्या हो रहा है, एमपी में क्या हो रहा है, ये बताइए और इस तरह हर बहस ‘तू तू मैं मैं’ में बदल कर खत्म हो जाती।

जब बहसें किसी के पक्ष में नहीं जातीं, तो उनको इसी तरह से निपटाया जाता है! यह टीवी का ‘नया शास्त्रार्थ’ है! फिर एक दिन यूपी के सीएम ने एक ‘पाडकास्ट’ में कह दिया कि ज्ञानवापी को मस्जिद कहना अपमान है… दीवारें चिल्ला चिल्ला कर कह रही हैं, वहां त्रिशूल क्या कर रहा है… मुसलिम अपनी ऐतिहासिक भूल स्वीकार करें… तुरंत एक मुसलिम नेता बोले, ये सब चुनाव के लिए किया जा रहा है।

इस बीच जयपुर-मुंबई एक्सप्रेस ट्रेन में आरपीएफ के एक सिपाही ने पहले अपने वरिष्ठ अफसर को गोली मारी, फिर यात्रियों की ओर गोली दागी, जिसमें तीन मुसलमान मारे गए। इस खबर के आते ही एक मुसलिम नेता जी एक चैनल पर बोलते देखे गए कि ये मुसलमानों के खिलाफ ‘इस्लामोफोबिया’ है, ये मुसलमानों पर ‘टेररिस्ट अटैक’ है… सीआरपीएफ के जवान भाजपा के कार्यकर्ता हो गए हैं…

उम्मीद थी कि इस पर कुछ बड़ा हल्ला होगा, लेकिन न हुआ! फिर एक दिन हाई कोर्ट के फैसले ने एएसआइ द्वारा ज्ञानवापी के वैज्ञानिक सर्वे को हरी झंडी देकर चली आती बहस को शांत कर दिया। उसके बाद सिर्फ यह खबर आती रही कि मुसलिम पक्ष सुप्रीम कोर्ट में अपील करेगा। शुक्रवार की खबरें बताती भी रहीं कि पचास लोगों की टीम सर्वे शुरू कर चुकी है।

इसके बाद हरियाणा के ‘नूंह’ और ‘मेवात क्षेत्र’ ने जो हिंसक कहानी बनाई, वह चार दिन तक चैनलों में छाई रही। चैनलों पर एक से एक वीडियो आते रहे। श्रावण मास में परंपरागत तरीके से एक मंदिर में जलाभिषेक के लिए जाते सैकड़ों यात्री, कि अचानक घरों की छतों से उन पर पथराव, फिर पहाड़ियों से यात्रियों पर गोलीबारी और गाड़ियों के पीछे तथा एक मंदिर में छिप कर उनका अपनी जान बचाना, फिर एक गाड़ी के पीछे छिपे एक पुलिसकर्मी का कहना कि ‘देखो वो गोलियां चला रहे हैं दबादब’, कि ‘ये देखो पहाड़ियों से गोलीबारी हो रही है’।

फिर दूसरे वीडियो में कुछ युवकों का एके 47 लेकर कारों के बीच निकलना, जिनको देख एक विपक्षी प्रवक्ता का उनको सीधे ‘बजरंग दल’ के कार्यकर्ता कहना और एंकर का साफ करना कि ये यात्रियों की हिफाजत के लिए सादी वर्दी में आएं है… तो भी वह सेक्युुलर पूछता रहा कि ये अपनी वर्दी में क्यों नहीं आए! पहाड़ियों से गोली चलाने वालों के पास गोली कहां से आई? (मतलब कि सरकार ही ने दी होगी…)

यह सब मानते रहे कि सोशल मीडिया पर फैलाई जाती अफवाहों ने आग में घी का काम किया। भड़की हिंसा में छह लोग मारे गए, जिनमें से दो होम गार्ड भीड़ ने मार दिए, एक पुलिस चौकी और सैकड़ों गाड़ियां स्वाहा कर दी गईं। एक सवाल बार-बार उठता रहा कि इस सबका ‘मास्टर माइंड कौन’, जिसके जवाब में एक ओर ‘गोरक्षा’ को लेकर दो मुसलिमों की ‘लिंचिंग’ के आरोपी मोनू मानेसर को जिम्मेदार माना जाता रहा, तो दूसरी ओर मोनू मानेसर एक वीडिया में नूंह के एक मुसलिम विधायक मामन खान का नाम लेकर कहता रहा कि पहले उसे पकड़ो, फिर मुझे!

सरकार द्वारा शांति की अपील और दोषियों को कड़ी सजा देने के आश्वासनों के बावजूद बहसों में लगभग वैसा वैसा ही दुहरता दिखा जैसा मणिपुर संबंधी बहसों में दुहरता दिखा! एक चैनल पर एक मंत्री ने जैसे ही कहा कि यह ‘सुनियोजित षड्यंत्र’ है, तो तुरंत कहा जाने लगा कि क्या सरकार को सूचना नहीं थी, थी तो पहले कार्रवाई क्यों न की और न थी तो ये कैसी सरकार हुई… सीएम एकदम फेल, वे इस्तीफा दें…

बहरहाल, इस सत्र में लोकसभा पहली बार देर तक लगी और दिल्ली प्रशासन संबंधी कानून भी पास हुआ। सच, अध्यक्ष महोदय की कार्यनीति कामयाब हुई! चलते चलते: एक चैनल ‘लाइव’ बताता रहा कि सुप्रीम कोर्ट ने ‘मोदी उपनाम’ पर ‘मानहानि’ के मामले में राहुल गांधी को दी गई ‘सजा’ पर ‘रोक’ लगाकर राहुल को फौरी राहत दी। उनकी संसद सदस्यता बहाल हुई। राहुल के राहुकाल का अंत हुआ!अधीर रंजन कहिन: ‘सत्यमेव जयते’ यानी ‘आया राहुल झूमके’!