68 सदस्यीय विधानसभा के लिए 12 नवंबर को मतदान होना है और एक बार फिर से भाजपा और कांग्रेस में ही सीधा मुकाबला नजर आ रहा है। आम आदमी पार्टी यहां पर मुकाबले को तिकोना बनाने के प्रयासों में चूकती नजर आ रही है । आम आदमी पार्टी के कमजोर होने से कांग्रेस को फिर से अपनी उम्मीद बनती नजर आने लगी है जबकि भाजपा ने ‘रिवाज बदलेंगे’, के नारे के साथ मिशन रिपीट के लिए सब कुछ झोंक दिया है। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हिमाचल प्रदेश के चुनावों को गंभीरता से ले रहे हैं। कई दौरे कर चुके हैं और कई अभी पाइपलाइन में हैं। राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा का गृह क्षेत्र है ऐसे में वे मिशन रिपीट के लिए स्वयं हर क्षेत्र की टोह ले रहे हैैं।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी एक दौरा कर चुके हैं। कांग्रेस की ओर से जहां राष्ट्रीय प्रवक्ता अलका लांबा ने मोर्चा संभाला हुआ है और ताबड़तोड़ हमले भाजपा और प्रदेश सरकार पर कर रही हैं। वहीं प्रियंका गांधी भी 14 अक्तूबर को सोलन में रैली करने के बाद सक्रिय हो गई हैं। दोनों प्रमुख दलों ने उम्मीदवारों के चयन में काफी माथापच्ची की है। कई तरह के दबाव झेलने के बाद कांग्रेस ने जहां अपने सभी मौजूदा 20 विधायकों को टिकट दे दिए हैं, वहीं भाजपा ने एक दर्जन विधायकों व एक मंत्री का टिकट काट कर नए चेहरों को ज्यादा मौका दिया है। यूं तो कहीं भी चुनाव हों, टिकट से वंचित रहने वाले का बागी होना आम बात है। मगर दोनों ही दलों में जिस तरह से टिकट आबंटन के बाद विद्रोह हुआ है, उस तरह का इससे पहले हिमाचल में कभी देखा नहीं गया। यही कारण है कि दोनों ही दल भितरघात से खौफजदा हैं।
यह भितरघात और विद्रोह किसी भी सीट पर पासा पलट सकता है। भाजपा की बात करें तो मुख्यमंत्री के गृह जिले मंडी में उनके अपने गृह विधानसभा क्षेत्र सराज, सरकाघाट, धर्मपुर व बल्ह विधानसभा क्षेत्र को छोड़ कर अन्य सभी सीटों पर बागी खड़े हो गए हैं या फिर अंदर ही अंदर अधिकृत उम्मीदवार को हराने के लिए भितरघात की तैयारी में हैं। मंडी सदर, नाचन, सुंदरनगर, करसोग में बागी कोई भी खेल खेल सकते हैं।इसी तरह से कुल्लू जिले की सभी चारों सीटों पर बागियों ने पार्टी की नाक में दम कर रखा है। यहां तक की जगत प्रकाश नड्डा के गृह जिले बिलासपुर में दो सीटों सदर व झंडूता में विद्रोह जैसी स्थिति है।
हमीरपुर के सदर, बड़सर व भोरंज में भी भितरघात और विद्रोह सामने आ चुके हैं। सबसे बड़े जिले कांगड़ा के फतेहपुर, धर्मशाला, पालमपुर, नूरपुर, देहरा में ही सब कुछ ठीक नहीं है। सोलन के नालागढ़, सिरमौर, शिमला के रामपुर, शिमला ग्रामीण में भी भाजपा के लिए विद्रोह ने संकट पैदा किया है। जहां चौबीस से अधिक सीटों पर भाजपा को बागियों ने डरा दिया है, भितरघात का खतरा पैदा हो गया हैं।
वहीं कांग्रेस के लिए भी विद्रोह और भितरघात से पार पाना आसान नहीं होगा। मंडी जिले के नाचन, सराज, सरकाघाट, धर्मपुर, बल्ह, करसोग व जोगिंदरनगर में कांग्रेस को विद्रोहियों से निपटना मुश्किल होगा। कांग्रेस के लिए बिलासपुर के सदर में टिकट के लिए हुई सिर फुटौव्वल कोई भी रंग दिखा सकती है। झंडूता में भी पूर्व विधायक वीरू राम किशोर अधिकृत उम्मीदवार विवेक के खिलाफ हो गए हैं।
कांगड़ा जिले में कांग्रेस के लिए छह क्षेत्र भितरघात का खतरा लिए खड़े हैं। 1982 से कांग्रेस में सक्रिय व कई बार विधायक, मंत्री और विधानसभा अध्यक्ष रहे गंगू राम मुसाफिर का विद्रोह व कांग्रेस को छोड़ जाना सिरमौर में कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी से कम नहीं है। शिमला जिले में रामपुर में कांग्रेसी वर्तमान विधायक नंद लाल का विरोध कर रहे हैं।
किन्नौर में विधायक जगत सिंह नेगी के खिलाफ युवा कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष निगम भंडारी पूरी तरह से डट गए हैं। शिमला शहरी के आधा दर्जन उम्मीदवार अधिकृत उम्मीदवार हरीश जनारथा का कितना साथ देते हैं, इस पर भी संदेह है। जिला ऊना के कुटलैहड़, गगरेट, चिंतपूर्णी में विद्रोही कुछ भी गुल खिला सकते हैं। हमीरपुर में सदर का टिकट अंतिम समय तक तय न होने का खामियाजा कांग्रेस को उठाना पड़ सकता है।
इधर, मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर विद्रोह और भितरघात को रोकने के लिए दिन रात एक कर रहे हैं। हर बागी के साथ संपर्क करके, ‘रिवाज बदलेंगे’, ‘सरकार दोबारा बनाएंगे और फिर सबको समायोजित किया जाएगा’ का वादा करके मनाने की कोशिश करने में लगे हैं। कुछ कामयाबी भी उन्हें मिली है मगर ज्यादा नहीं। स्वयं जगत प्रकाश नड्डा दिवाली के बहाने हिमाचल पहुंच कर बागियों से संपर्क करके स्थिति को संभालने की कोशिश में हैं। कितने सफल होते हैं यह तो वक्त ही बताएगा।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि देवभूमि हिमाचल में जिस तरह से टिकट के लिए उम्मीदवारों ने अपनी विचारधारा, आस्था और जिस पार्टी को वे मां बताते रहे हैं, को ताक में रख कर उसे छोड़ देने के दुस्साहस किया है, विद्रोह का झंडा उठा दिया है, भितरघात के हथियार को भांजना शुरू कर दिया है, यह हिमाचल की राजनीति का एक बेहद चिंतनीय पहलू हैं। विचारधारा ताक पर है। केवल टिकट की विचारधारा है और न मिलने पर विद्रोह और भितरघात का हथियार लेकर जनता की आवाज का बहाना और आड़ लेकर जो सेवा के लिए राजनीति में आने का ढोंग किया जा रहा है, यह अपने आप में राजनीति की नैतिक गिरावट माना जा रहा है।