R इसी के साथ सरकार पर राजन जैसे योग्य व्यक्ति की अनदेखी का आरोप लगा है। हालांकि राजन के परिवार में पहली बार ऐसा नहीं हुआ है जब किसी व्यक्ति को पद से दूर होना पड़ा हो। राजन के पिता आर गोविंदराजन भारतीय खुफिया विभाग में थे। जब खुफिया एजेंसी रॉ का गठन हुआ तो गोविंदराजन उसके प्रमुख बनने के सबसे बड़े दावेदार थे। इसके लिए उन्होंने आईपीएस से इस्तीफा देकर रॉ ज्वॉइन भी कर लिया था। लेकिन उस समय के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने गोविंदराजन के बजाय एके वर्मा को चुना। गोविंदराजन ने इस पर कोई विरोध नहीं किया और बाद में चेन्नई में सेटल हो गए।
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रघुराम राजन के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। वे शिकागो बूथ स्कूल ऑफ बिजनेस में पढ़ाते थे। बाद में वे इंटरनेशनल मोनेटरी फंड के प्रमुख बने। उस समय उनकी उम्र केवल 40 साल थी। बाद में जब भारत अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर जूझ रहा था तो उन्हें आरबीआई के गवर्नर के रूप में लाया गया। मनमोहन सिंह खुद रिजर्व बैंक के गवर्नर रह चुके थे और वे ही राजन को लाए। रोचक बात देखिए कि मनमोहन और राजन दोनों 50 साल की उम्र में आरबीआई गवर्नर बने। महंगाई दर को 4 प्रतिशत से नीचे लाने का श्रेय राजन को जाता है। यही नहीं 2008 में आर्थिक संकट की भी राजन ने भविष्यवाणी कर दी थी।
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पिछले कुछ महीनों से राजन और सरकार के बीच कई मुद्दों पर मतभेद थे। मोदी सरकार के कई मंत्री भी राजन की शैली से खफा थे। फिर सुब्रमण्यम स्वामी ने राजन पर हमले बोलना शुरू कर दिया। सरकार या भाजपा में से किसी ने भी इसका विरोध नहीं किया। संकेत मिल रहे थे राजन को दूसरा कार्यकाल शायद ही मिले। राजन भी शायद इन्हें समझ गए थे। इसी वजह से सरकार के भरोसे रहकर गवर्नर के रूप में दूसरे कार्यकाल के बजाय तीन महीने पहले ही उन्होंने एलान कर दिया कि वे फिर से अमेरिका लौटेंगे।
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