कांग्रेस नेता राहुल गांधी लगातार भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधते रहे हैं। राहुल पिछले कई चुनावों में रैलियों के दौरान केंद्र सरकार के उद्योगपतियों से रिश्ते रखने के मुद्दे पर हमला करते रहे हैं। साथ ही मोदी सरकार को अंबानी-अडानी की सरकार कह कर भी संबोधित कर चुके हैं। लोकसभा चुनावों में राहुल के ये बयान आम थे। हालांकि, हाल ही में राहुल ने एक बार फिर कहा है कि नरेंद्र मोदी को अंबानी और अडानी चलाते हैं। इस पर पत्रकार रवीश कुमार ने इशारों में राहुल गांधी की तारीफ की, लेकिन उनके बयानों को जोखिम भरा भी बताया।
क्या कहा राहुल गांधी ने?: रवीश ने फेसबुक पोस्ट में राहुल गांधी के हालिया बयान का जिक्र भी किया। इसमें राहुल ने किसानों को संबोधित करते हुए कहा था- ” आपकी ज़मीन और आपका पैसा, हिंदुस्तान के दो तीन सबसे बड़े अरबपति चाहते हैं। पुराने समय में कठपुतली का शो होता था, याद है आपको? कठपुतली चलती थी पीछे से कोई चलाता था उसको, धागे बंधे होते थे। रावत जी आपने कहा मोदी जी की सरकार है। भाइयों और बहनों ये मोदी सरकार नहीं है। ये अडानी और अंबानी की सरकार है। नरेंद्र मोदी जी को अडानी और अंबानी चलाते हैं। नरेंद्र मोदी जी को अडानी और अंबानी जीवन देते हैं, कैसे? मीडिया में नरेंद्र मोदी जी का चेहरा दिखा के, 24 घंटे। सीधा सा रिश्ता है। नरेंद्र मोदी जी इनके लिए ज़मीन साफ़ करते हैं और ये पूरा समर्थन नरेंद्र मोदी जी को मीडिया में देते हैं।”
रवीश बोले- राहुल का यह बयान उनका इम्तहान?: रवीश ने राहुल के इसी बयान को आधार रखते हुए कहा, “किसी राजनीतिक दल के लिए अंबानी और अडानी का नाम लेना आसान नहीं है। उन्हीं की पार्टी में कई लोग इनके आदमी की तरह कहे जाते हैं। कई बार दबी ज़ुबान में। कई बार खुली ज़ुबान से। राहुल गांधी का यह बयान कभी उनका भी इम्तहान लेगा। फिलहाल जिस देश के मीडिया में जहां चैनलों के मालिक और एंकर अडानी और अंबानी का नाम लेने से पहले ही कांप जाते हैं, उस देश में राजनीतिक मंच से इसे मुद्दा बना देना कम जोखिम का काम नहीं होगा।
राहुल के बयान से अंबानी और अडानी भी असहज होंगे: रवीश ने आगे कहा, “अंबानी और अडानी भी असहज महसूस कर रहे होंगे कि इससे तो एक दिन जनता में भी इन दोनों का नाम लेकर बोलने में साहस आ जाएगा। इंटरनेट सर्च करेंगे तो एक बयान मिलेगा। कांग्रेस और भाजपा दोनों मेरी दुकान हैं। क्या भारत की राजनीति में कॉरपोरेट की गुलामी से कोई नई शुरूआत हो रही है या कोई कॉरपोरेट का कोई नया गठबंधन बनने वाला है? यह भी सवाल है। बोलना आसान है। इन्हें विस्थापित करना आसान नहीं है।”