भाजपा के अनुशासित होने के पार्टी के दावों पर सवाल खड़े हो रहे हैं। दो राज्योें से इसी हफ्ते पार्टी आलाकमान को बेचैन करने वाली घटनाएं सामने आई। पश्चिम बंगाल में पूर्व सांसद अनुपम हाजरा ने तो कोलकाता में गीता पाठ का आयोजन करने वाले अपनी ही पार्टी के नेताओं को कठघरे में खड़ा कर दिया। उन्होंने खुलकर आरोप लगाया कि धार्मिक कार्यक्रम की आड़ में बड़ा घोटाला किया गया।
इसके बाद यहां तक कह दिया कि गीता पाठ तक में घपला करने वाले सच्चे हिंदू कैसे हो सकते हैं। हाजरा ने आरोपों का विस्फोट भी उस दिन किया जब अमित शाह और जेपी नड्डा दोनों कोलकाता में थे। बदनामी देखते हुए आलाकमान ने चौबीस घंटे के भीतर ही हाजरा को पार्टी के राष्ट्रीय सचिव के पद से हटा दिया। दूसरा धमाका कर्नाटक में पार्टी के वरिष्ठ नेता बसनगौड़ा पाटिल यतनाल ने किया।
उन्होंने आरोप लगाया कि कोविड के दौरान मुख्यमंत्री रहते येदियुरप्पा ने 40 हजार करोड़ का भ्रष्टाचार किया था। जिसकी जांच होनी चाहिए। कर्नाटक में इस समय कांग्रेस की सरकार है। उधर, कर्नाटक में हार के बाद भाजपा आलाकमान को येदियुरप्पा के आगे घुटने टेकने को मजबूर होना पड़ा। तभी तो उनके विधायक बेटे को पार्टी का सूबेदार बनाया गया। दूसरा बेटा सांसद है ही। कर्नाटक में भाजपा नेताओं के बीच सत्ता जाने के बाद से ही हर दूसरे दिन अनुशासन पर किसी का शासन नहीं दिख रहा है।
मायवती का नया पैंतरा
कहने को तो मायावती राग यही अलाप रही हैं कि लोकसभा चुनाव अगले साल अकेले लड़ेंगी। यह बात अलग है कि एक तो पार्टी के सांसदों का दबाव है कि गठबंधन करें ऊपर से वे खुद भी अकेले लड़ने का नतीजा तीन बार देख चुकी हैं। दुविधा यह है कि इंडिया गठबंधन में शामिल होंगी तो अब पहले जैसी हेकड़ी नहीं चलेगी। सपा तो उन्हें शामिल करने का ही विरोध कर रही है।
उधर, बहिनजी अपने भतीजे आकाश आंनद को अपना उत्तराधिकारी भी घोषित कर चुकी हैं और उसके लिए सुरक्षित लोकसभा सीट भी खोज रही हैं। ऐसे में नया पैतरा उनके सांसद मलूक नागर ने चला है। नागर ने शर्त रखी है कि बसपा का साथ चाहिए तो इंडिया गठबंधन को बहिनजी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करना होगा। राज की बात तो यह है कि मायावती केंद्रीय एजंसियों के डर से गठबंधन को लेकर अभी से अपने पत्ते खोलना नहीं चाहती।
आसन बनाम सिंहासन
अयोध्या में रामलला के मंदिर में प्राण प्रतिष्ठान की तैयारियां जोरों से चल रही हैं। इन भव्य तैयारियों के बीच ही एक बड़ा मंच सजाया जा रहा है। इस मंच के स्वरूप पर आसन बनाम सिंहासन की बहस भी छिड़ी हुई है। बताया जा रहा है कि अब तक तैयारियों को लेकर जो मंच तैयार हो रहा है, उस मंच की ऊंचाई को लेकर सबकी नजरें हैं।
इसी आधार पर रामलला के प्राण प्रतिष्ठान को कई विपक्षी दल धार्मिक अनुष्ठान से ज्यादा राजनीतिक मंच बता रहे हैं। विपक्षी दलों को भी इसका न्योता भेजा गया है। किसको कैसा आसन मिलेगा जैसी आशंका के कारण अब तक कई विपक्षी दल अपनी आखिरी रणनीति नहीं बना पाए हैं। हालांकि विपक्षी दल यह जरूर साफ कर रहे हैं कि रामलला किसी एक खास पार्टी के नहीं हैं।
नीतीश पर निगाह
इंडिया गठबंधन में सीटों के बंटवारे को लेकर रार होगी, इसका अंदाज तो हर किसी को पहले से था। पर, प्रधानमंत्री पद को लेकर तृणमूल कांगे्रस, जनता दल (एकी) और कांगे्रस में पहले ही सिर फुटौवल शुरू हो जाएगी, इससे राजग में खुशी की लहर दिख रही है। कांग्रेस की राय जाने बिना दूसरे दलों की तरफ से प्रधानमंत्री के लिए मल्लिकार्जुन खरगे के नाम को आगे बढ़ाया जाना आकस्मिक घटना नहीं होकर सोची-समझी चाल ही थी।
नेहरू गांधी परिवार के बिना कांगे्रस का कोई वजूद नहीं पर इंडिया गठबंधन में शामिल दल नेहरू गांधी परिवार को भाव देना नहीं चाहते। ऐसे अंतर्विरोधों के साथ राजग के एक उम्मीदवार के मुकाबले इंडिया गठबंधन का एक उम्मीदवार उतारने की नीतीश कुमार की रणनीति परवान चढ़ने से रही। हकीकत तो यह है कि नीतीश खुद सवालों के घेरे में रहे हैं। कहा जा रहा है कि वे फिर पलटी मार सकते हैं।
राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह के अध्यक्ष पद से इस्तीफे से भी इन अटकलों को बल मिला है। उधर ममता बनर्जी ने एक सभा में अपने सूबे में किसी से गठबंधन नहीं करने का एलान तो किया ही, कांगे्रस पर भाजपा से साठगांठ का आरोप भी जड़ दिया। महाराष्टÑ में विघ्न अलग दिख रहा है। उद्धव ठाकरे की 23 सीटों की मांग कांगे्रस ने ठुकरा दी हैै। रही, राहुल गांधी की बात तो वे अगले महीने अपनी लंबी भारत न्याय यात्रा पर निकल रहे हैं। सो इंडिया गठबंधन का भविष्य फिर आशंकाओं के घेरे में है।
विस्तार का लंबा इंतजार
राजस्थान में मंत्रिमंडल का विस्तार लटका है। पहली बार विधायक बने भजन लाल शर्मा को पार्टी आलाकमान ने मुख्यमंत्री तो बना दिया पर वे अपने मंत्रिमंडल का विस्तार शपथ लेने के 17 दिन बाद भी नहीं कर पाए हैं। हालांकि, दो उप मुख्यमंत्रियों ने जरूर उनके साथ ही शपथ ली थी। इस नाते सरकार का कामकाज तो जरूर चल रहा है पर मंत्रिमंडल विस्तार में हो रही देरी को लेकर सवाल भी उठने लगे हैं।
खासकर भजन लाल और उनके दोनों उप मुख्यमंत्रियों दीया कुमारी व बैरवा के दिल्ली जाकर आलाकमान से मंत्रणा करने को भी देरी का कारण बताया जा रहा है। हालांकि पार्टी की तरफ से यह सफाई भी दी गई है कि प्रधानमंत्री की व्यस्तता के कारण विस्तार नहीं हो पा रहा है। लेकिन, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में विलंब नहीं हुआ तो फिर राजस्थान में ही विस्तार क्यों लटका है, यह सवाल तो उठ ही रहा है। चर्चा तो यहां तक है कि वसुंधरा राजे अपने गुट के ज्यादा मंत्री बनवाने की जिद नहीं छोड़ रही हैं। उधर, किरोड़ी लाल मीणा और महंत बालकनाथ जैसे कद्दावर नेता अपने सियासी भविष्य को लेकर बेचैन बताए जा रहे हैं।
संकलन : मृणाल वल्लरी