अखिलेश यादव जिस पर भरोसा करते हैं, वही बेवफा बन जाता है। अखिलेश यादव ने जयंत चौधरी को अपनी तरफ से सिर माथे बिठाने में कसर नहीं छोड़ी। जयंत की पार्टी रालोद का 2017 में एक विधायक जीता था। वह भी बाद में भाजपाई बन गया। अखिलेश ने 2019 में जयंत और उनके पिता अजित सिंह के लिए बागपत और मुजफ्फरनगर की सीटें बसपा को मनाकर छोड़ी। दोनों ही हार गए।
फिर 2022 में विधानसभा में उन्हें मुंहमांगी सीटें दी। यह बात अलग है कि किसान आंदोलन के असर के बावजूद जयंत के पहले नौ और फिर कुछ दिन बाद एक विधायक उपचुनाव में जीत पाए। उनकी हताशा दूर करने के लिए उन्हें सपा विधायकों के समर्थन से राज्यसभा भेजा। जयंत अंतिम वक्त तक रहस्य रखते हुए भाजपा के साथ चले गए। फिर स्वामीप्रसाद मौर्य ने बगावत कर दी।
मौर्य को विधानसभा चुनाव हार जाने के बावजूद अखिलेश ने एमएलसी बनाया था। इस चक्कर में ओमप्रकाश राजभर चिढ़कर उनका साथ छोड़ गए थे। मौर्य की देखादेखी अपना दल (कमेरावादी) की पल्लवी पटेल बगावत पर उतारू हैं। राज्यसभा में अखिलेश के उम्मीदवार चयन की आलोचना की हैै। विरोध में मतदान की धमकी अलग दी है। अखिलेश की पार्टी की ऐसी बगावतों के चलते ही तो भाजपा ने राज्यसभा में संजय सेठ को अपना आठवां उम्मीदवार बनाया है। यानी सपा विधायकों से भितरघात कराएगी भाजपा।
नाउम्मीद कमलनाथ
मध्यप्रदेश से पार्टी उम्मीदवार बनकर राज्यसभा पहुंचने की कमलनाथ की हसरत अधूरी रह गई। इसके लिए दिल्ली आकर नौ फरवरी को सोनिया गांधी से मुलाकात भी की थी। इसके अलावा 13 फरवरी को भोपाल में अपने घर पर पार्टी विधायकों के लिए भोज का कार्यक्रम भी रखा था। चर्चा है कि इस मौके पर सभी विधायकों से कोरे कागज पर हस्ताक्षर भी कराए गए।
खबर यही आई कि कमलनाथ राष्ट्रीय राजनीति में लौटना चाहते थे। लेकिन आलाकमान ने राज्यसभा उम्मीदवार दिग्विजय सिंह के करीबी अशोक सिंह को बनाया। इससे पहले प्रदेश अध्यक्ष का पद भी कमलनाथ ने आलाकमान के दबाव में ही छोड़ा था। कमलनाथ इस समय विधानसभा के सदस्य हैं और उनके पुत्र वकुलनाथ छिंदवाड़ा से लोकसभा सदस्य। कमलनाथ के नेतृत्व में मध्यप्रदेश में बेहद खराब हार का मुंह देखने के बाद कांग्रेस पुरानी पीढ़ी के नेताओं को पीछे छोड़ने की रणनीति में है।
कमजोर कड़ी दक्षिण की
दक्षिण भारत में भाजपा अभी भी कमजोर कड़ी है। कर्नाटक को छोड़ बाकी किसी राज्य में अभी भाजपा अपने बूते सीटें जीतने की स्थिति में नहीं लगती। भाजपा यहां अपने आक्रामक सूबेदार के अन्नामलाई के सहारे अपने पांव जमाना चाहती है। पर, लोकसभा चुनाव के लिए उसे छोटे दलों का सहारा तो जरूर चाहिए। पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा इस हफ्ते इसी मकसद से चेन्नई गए थे।
चर्चा है कि प्रधानमंत्री के तमिलनाडु दौरे से पहले भाजपा ओ पनीरसेल्वम, टीटीवी दिनाकरण और पीएमके से सीटों के तालमेल का जुगाड़ बिठाएगी। आंध्र में भी पार्टी फिर चंद्रबाबू नायडू को गले लगाने का मन बना चुकी है। दक्षिण में पहले की तरह पार्टी का सूपड़ा साफ हुआ तो 370 सीटें लाना दूर की कौड़ी होगी।
निकासी यात्रा
राहुल गांधी तो अपनी भारत जोड़ो न्याय यात्रा में व्यस्त हैं। उधर भाजपा उनकी पार्टी में लगातार सेंधमारी कर रही है। कांग्रेसी दिग्गजों की पार्टी से निकासी यात्रा जारी है। महाराष्टÑ में अशोक चव्हाण को तोड़कर भाजपा ने राज्यसभा का टिकट दे दिया। आदर्श सोसायटी में नाम आने को लेकर भाजपा के लिए दागी थे चव्हाण। पर, अब भाजपा में आने के बाद कोई दिक्कत नहीं हैं उनसे।
कांग्रेस को दूसरा झटका राजस्थान में आदिवासी नेता महेंद्रजीत सिंह मालवीय ने दिया है। वे सीडब्ल्यूसी के सदस्य हैं। सूबे की सरकार में मंत्री रहे हैं। पुराने कांगे्रसी ठहरे। बांसवाड़ा जिले की बागीदौरा सीट से लगातार चार बार चुनाव जीते हैं। सांसद भी रहे हैं। पर विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष नहीं बनाए जाने से अपनी पार्टी के नेतृत्व से खफा थे।
तभी तो 14 फरवरी को सोनिया गांधी के राज्यसभा के लिए नामांकन दाखिल करने के वक्त जयपुर नहीं पहुंचे। कभी सचिन पायलट के करीबी माने जाते थे। बाद में अशोक गहलोत के खास हो गए। गहलोत को राजस्थान का गांधी बताते थे। चर्चा है कि भाजपा अपने बांसवाड़ा के सांसद कनकमल कटारा का टिकट काटकर मालवीय को लोकसभा चुनाव लड़ाएगी। कुछ दिन पहले ही बांसवाड़ा के भाजपा जिलाध्यक्ष ने उनके खिलाफ ईडी की कार्रवाई के लिए पत्र लिखा था। पर अब उनके लिए भी भाजपा ने पलक पांवड़े बिछा दिए। कोई कुछ भी कहता रहे पर कांगे्रस को बड़ा झटका तो दे ही दिया है भाजपा ने।
खुला दरवाजा, अलीगढ़ का ताला
बिहार में राजद व नीतीश कुमार की अगुआई वाली सरकार के बीच जहां नोक-झोंक तेज हो गई है वहीं दोनों दलों के वरिष्ठों पर सबकी नजरें एक बार फिर टिक गई। बिहार विधानसभा परिसर में लालू यादव और नीतीश कुमार का गर्मजोशी से हाथ मिलाना फिर से सुर्खियां बटोर गया। जाहिर सी बात है कि फिर जेरे बहस में दरवाजे को आना था।
लालू यादव राज्यसभा चुनाव को लेकर अपनी पार्टी के उम्मीदवारों मनोज झा और संजय यादव के नामांकन दाखिल करने के समय उनका मनोबल बढ़ाने गए थे। प्रसाद से कुमार से फिर से साथ आने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘अब आएंगे तो देखेंगे।’ यह पूछे जाने पर कि क्या जद (एकी) प्रमुख के लिए उनका दरवाजा खुला हुआ है, राजद प्रमुख ने कहा, ‘दरवाजा खुला ही रहता है’।
इस बीच जद (एकी) के मुख्य प्रवक्ता और एमएलसी नीरज कुमार ने कहा, ‘लालू जी कहते हैं कि दरवाजे अब भी खुले हैं। उन्हें मालूम होना चाहिए कि दरवाजे पर अलीगढ़ का मशहूर ताला लगा दिया गया है। हमारे नेता नीतीश कुमार ने स्पष्ट रूप से कहा है कि जब भी राजद ने हमारे साथ सत्ता साझा की है, वह भ्रष्टाचार में लिप्त रही है। वापस जाने का कोई सवाल ही नहीं है।’
संकलन : मृणाल वल्लरी