भाजपा नेता पूनम महाजन ने टिकट कटने और पिता प्रमोद महाजन की हत्या को पार्टी की अंदरूनी साजिश बताया। हरियाणा में भाजपा सरकार अंदरूनी कलह से जूझ रही है, जबकि दिल्ली में केजरीवाल का चेहरा आम आदमी पार्टी की रणनीति का केंद्र है। महाराष्ट्र में अजित पवार ने शरद पवार पर भाजपा से गठबंधन की सहमति का आरोप लगाया। योगी आदित्यनाथ का नारा “बंटेंगे तो कटेंगे” भी पार्टी के भीतर विवाद का कारण बन रहा है।
छलका दर्द
प्रदेश भाजपा ने विधानसभा का टिकट भी नहीं दिया तो पूनम महाजन का धीरज चुकना स्वाभाविक था। प्रमोद महाजन की बेटी हैं पूनम महाजन। उन्होंने 2014 और 2019 लगातार दो बार मुंबई उत्तर मध्य की लोकसभा सीट जीतकर भाजपा की झोली में डाली थी। उन्हें 2014 में भारतीय जनता युवा मोर्चा का राष्टÑीय अध्यक्ष भी बनाया गया था। मुंबई उत्तर मध्य सीट से भाजपा का कोई लेना-देना नहीं रहा। पूनम महाजन से पहले यह सीट कांगे्रस, आरपीआइ या शिवसेना के खाते में जाती रही। फिर भी इस साल लोकसभा चुनाव में भाजपा ने पूनम का टिकट काट दिया। उनकी जगह सरकारी वकील उज्ज्वल निकम को उम्मीदवार बना दिया जो कांगे्रस की वर्षा गायकवाड़ से हार गए। पूनम महाजन का दावा है कि उन्हें टिकट मिलता तो वे क्षेत्र में अपनी लोकप्रियता और सक्रियता के दम पर जीत की हैट्रिक लगा देती। पिछले दिनों उन्होंने मोटे तौर पर दो बातों का खुलासा किया है। एक तो यह कि उनके पिता की हत्या पार्टी की अंदरूनी साजिश का नतीजा थी। हत्या के 18 साल बाद पहली बार उन्होंने ऐसा कह सबको चौंकाया है। पूनम जहां राजनाथ सिंह, अरुण जेटली, नरेंद्र मोदी और उद्धव ठाकरे की सराहना कर रही हैं वहीं नाम लिए बिना वे परोक्ष रूप से अपना टिकट काटने का ठीकरा फडणवीस के सिर ही फोड़ती लगती हैं। इससे महाराष्टÑ भाजपा की अंदरूनी लड़ाई सार्वजनिक हुई है।
हरियाणा में हश्र
हरियाणा में सरकार जैसे भानुमति का पिटारा बनकर रह गई है। सरकार के कैबिनेट मंत्री राव नरबीर सिंह का वीडियो सामने आया जिसमें वे सरकारी अफसरों को धमकी देते दिख रहे हैं। सबसे वरिष्ठ पार्टी विधायक और कैबिनेट मंत्री अनिल विज मंत्री होकर भी खुलेआम आरोप लगा रहे हैं कि चुनाव के दौरान उन्हें हरवाने और उन पर हमले की साजिश रची गई थी। इसका दोष वे प्रशासन को देते हैं। वहीं भाजपा अध्यक्ष चरण सिंह तेवतिया का वह आडियो भी खूब प्रसारित हो रहा है जिसमें तेवतिया बिजली विभाग के एक जेई को जूते मारने की धमकी दे रहे हैं। वरिष्ठ विधायक रामकुमार गौतम भी मंत्री न बनाए जाने से खफा हैं। गौतम ने जजपा उम्मीदवार की हैसियत से भाजपा के कैप्टन अभिमन्यु को हराया था। इस बार वे भाजपा के टिकट पर विजयी हुए हैं। खुलेआम भूपेंद्र सिंह हुड्डा की तारीफ में कसीदे पढ़ रहे हैं।
आप का चेहरा सिर्फ अरविंद
दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने अपना चुनावी अभियान तेज कर दिया है। पार्टी एक बार फिर से अरविंद केजरीवाल के चेहरे को आगे रखकर ही जमीन पर उतरी है। इसके लिए पार्टी केजरीवाल की छवि दुरुस्त करने में पूरी तरह जुट गई है जो दिल्ली भर में लगे पोस्टर में साफ नजर आ रहा है। पूरे अभियान का मुख्य चेहरा अरविंद केजरीवाल ही हैं। आने वाले दिनों में जैसे-जैसे चुनावी पारा चढ़ेगा तो इसका असर अधिक नजर आने लगेगा क्योंकि उस समय तक देश के दूसरे राज्यों में चुनाव प्रचार कर रहे दिल्ली के अन्य नेता भी मैदान में होंगे। खुद मुख्यमंत्री आतिशी भी पहले ही पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की खाली कुर्सी साथ में रखकर दौड़ से दूर हो चुकी हैं।
पवार का पैंतरा
महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री और शरद पवार के भतीजे अजित पवार ने पिछले दिनों इंटरव्यू में खुलासा कर दिया कि 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद जब सरकार गठन को लेकर भाजपा और शिवसेना में खटास पैदा हो गई थी तो राकांपा ने भाजपा के साथ साझा सरकार बनाने के फार्मूले पर सहमति जताई थी। अभी तक लोगों को यही पता था कि रात के अंधेरे में देवेंद्र फडणवीस के साथ अजित पवार ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली थी। बाद में शरद पवार ने खेल बिगाड़ दिया। नतीजतन अजित और फडणवीस दोनों को इस्तीफा देना पड़ा। उनकी जगह शरद पवार ने कांगे्रस, शिवसेना और राकांपा की महाविकास अघाड़ी सरकार बनवा दी।
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अजित पवार ने अब यह साबित करने का दांव चला है कि भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने पर खुद शरद पवार की सहमति थी। दिल्ली में गौतम अडाणी के घर हुई बैठक में अमित शाह के साथ शरद पवार भी मौजूद थे। शरद पवार भी कच्चे खिलाड़ी नहीं हैं। साक्षात्कार देकर मान लिया कि बैठक गौतम अडाणी के दिए रात्रिभोज पर हुई थी। वे नहीं बल्कि उनकी पार्टी के ज्यादातर नेता इस राय के थे कि भाजपा के साथ तालमेल करने से वे ईडी, सीबीआइ और आयकर जैसी जांच एंजसियों के चंगुल से बच जाएंगे। भाजपा को भरोसेमंद न मान उन्होंने गठबंधन से कदम पीछे खींच लिए थे। अब कांगे्रस को यह आरोप लगाने का मौका मिला है कि अडाणी सरकार बनाने और गिराने का खेल भी खेलते हैं।
नारे का नकार
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बंटेंगे तो कटेंगे का नारा दिया और इसका खूब प्रचार-प्रसार भी किया गया। इस नारे को महाराष्टÑ और झारखंड के विधानसभा चुनाव के प्रचार में भी इस्तेमाल कर रहे हैं। महाराष्टÑ में उनका यह नारा भाजपा के सहयोगी अजित पवार को ही नहीं कई भाजपा नेताओं को भी खटका है। पवार ने तो खुलेआम राय भी दे डाली कि महाराष्टÑ की जनता ऐसे नारे पसंद नहीं करती। विपक्ष तो खैर इस नारे का पुरजोर विरोध कर ही रहा है। अब तो योगी के सहयोगी और उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य ने भी कह दिया कि वे इस नारे में नहीं बल्कि एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे, नारे में यकीन करते हैं, जो नारा प्रधानमंत्री ने दिया है।
इतना ही नहीं मौर्य ने एक बार फिर अपना पुराना बयान भी दोहरा दिया कि संगठन सरकार से बड़ा होता है। संगठन की मेहनत से सरकार बनती है। इसी नारे को उछालकर मौर्य ने लोकसभा चुनाव के ठीक बाद अपने ही मुख्यमंत्री को परोक्ष रूप से चुनौती दी थी। अब फिर उसे उछालकर और बंटेंगे तो कटेंगे नारे से किनारा कर मौर्य ने साफ कर दिया है कि वे अपने रुख से पीछे नहीं हटे हैं।
संकलन : मृणाल वल्लरी
