सियासत पैंतरों से चलती है। बांह मरोड़ना भी एक पैंतरा है। इस पैंतरे में अजित पवार को महारथ हासिल है। अपनी पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को दो फाड़ कर महाराष्ट के उपमुख्यमंत्री बने अजित पवार पैंतरेबाजी खूब जानते हैं। सरकार में शामिल हुए उन्हें तीन महीने हो गए थे पर भाजपा सूबों के प्रभारी मंत्री नियुक्त करने की उनकी मांग पर गौर नहीं कर रही थी।
अजित पवार से छिपा नहीं है कि मुख्यमंत्री भले एकनाथ शिंदे हैं पर सरकार तो उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ही चला रहे हैं। पिछले दिनों शिंदे ने अपनी तुलना प्रधानमंत्री से करते हुए अपनी सरकार का एक साल पूरा होने पर अखबारों में जो विज्ञापन छपवाया था, उसमें फडणवीस का कोई जिक्र नहीं था। फडणवीस ने तत्काल सारे सरकारी कार्यक्रम स्थगित कर मुख्यमंत्री शिंदे की बांह मरोड़ दी थी।
नतीजतन अगले दिन शिंदे को वही विज्ञापन दोबारा उन्हीं अखबारों में फडणवीस को बराबर की हैसियत देते हुए छपवाना पड़ा था। अब तो परिस्थितियां ही बदल चुकी हैं। राकांपा के भाजपा के साथ आ जाने के बाद शिंदे गुट की कोई हैसियत बची ही नहीं है। लिहाजा फडणवीस वाला दांव इसी मंगलवार को अजित पवार ने भी आजमाया।
तबीयत खराब होने का बहाना बना कैबिनेट की बैठक से गैर हाजिर हो गए। शिंदे और फडणवीस के साथ दिल्ली भी नहीं गए। इस पैंतरे का असर हुआ और 24 घंटे के भीतर सरकार ने 12 जिलों के प्रभारी मंत्रियों की नियुक्ति की घोषणा कर दी। इनमें आठ पवार की राकांपा के हैं। खुद अजित पवार पुणे के प्रभारी मंत्री बन गए।
भाजपा के कद्दावर मंत्री चंद्रकांत पाटिल को पुणे से न हटने की अपनी जिद छोड़नी पड़ी। पर पवार के तेवर अभी भी तीखे हैं क्योंकि छगन भुजबल और अदिति तटकरे को भी प्रभारी मंत्री बनाने की उनकी मांग पूरी नहीं हो पाई है। महाराष्ट्र की सियासत के दिलचस्प मोड़ अभी खत्म नहीं हुए हैं।
उलझे समीकरण
प्रधानमंत्री ने भारत राष्ट समिति पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए कहा कि 2020 में के चंद्रशेखर राव ने बीआरएस को राजग का हिस्सा बनाने की इच्छा जताई थी। पर उन्होंने इसकी इजाजत नहीं दी। भाजपा विरोधी हैरान हुए। एक तरफ भाजपा ने राजग के अपने कुनबे का विस्तार करने के लिए ऐसे दलों को भी पिछले दिनों गले लगाया, जिनका संसद में एक भी नुमाइंदा नहीं।
ऐसे में दक्षिण के एक सूबे की सत्तारूढ़ पार्टी से दूरी बनाने की बात लगती भी अटपटी है। वैसे भी चंद्रशेखर राव पूर्व में केंद्र की वाजपेयी सरकार में मंत्री रह चुके हैं। तब उनकी पार्टी का नाम टीआरएस था। बहरहाल भाजपा से ज्यादा प्रतिक्रिया प्रधानमंत्री के बयान पर बीआरएस और कांगे्रस के नेताओं की तरफ से आई।
अगले ही दिन चंद्रशेखर राव के बेटे और पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष केटी रामराव ने प्रधानमंत्री के बयान का खंडन कर दिया। उल्टे दावा किया कि 2018 में भाजपा ने उनकी पार्टी से हाथ मिलाने की कोशिश की थी। तब पेशकश भाजपा के सूबेदार के लक्ष्मण ने की थी। केटीआर ने बतौर सबूत एक वीडियो भी पत्रकारों को दिखाया।
भाजपा को ‘बिगेस्ट झूठा पार्टी’ बताते हुए केटीआर बोले कि जिस पार्टी के विधानसभा में 105 उम्मीदवार अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए थे, उससे उनकी पार्टी भला हाथ क्यों मिलाती। दरअसल, तेलंगाना में भाजपा के लोकसभा सदस्य तो चार हैं पर विधायक महज तीन ही हैं। केटीआर की मानें तो भाजपा का तेलंगाना में कोई आधार नहीं।
अलग राज्य बनने के बाद टीआरएस ने किसी से गठबंधन किया ही नहीं। कांगे्रस के सूबेदार रेवंत रेड्डी ने फरमाया कि बीआरएस और भाजपा एक हैं। दोनों की कोशिश कांगे्रस को कमजोर करना है। विधानसभा चुनाव दोनों अलग लड़ेंगे पर नूरा कुश्ती होगी। भाजपा अपने कमजोर उम्मीदवार उतारेगी।
बांदी संजय कुमार की जगह किशन रेड्डी को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर भाजपा आलाकमान ने संकेत दे दिया था कि लोकसभा चुनाव वह बीआरएस से मिलकर लड़ेगी। सूबे की 17 में से तीन सीटों पर भाजपा, एक पर ओवैसी की पार्टी एमआइएम और 13 सीटों पर बीआरएस लड़ेगी। रेड्डी का सवाल है कि दिल्ली के आबकारी घोटाले में चंद्रशेखर राव की बेटी के कविता की गिरफ्तारी नहीं होना परदे के पीछे चल रहे खेल की तरफ साफ संकेत है।
चुनावी परिवार में उम्मीदवार
अपर्णा यादव फिर चर्चा में हैं। मुलायम सिंह यादव के सौतेले पुत्र प्रतीक यादव की पत्नी। कभी उनकी सास साधना गुप्ता की तूती बोलती थी। उन्हीं के दबाव में अखिलेश यादव को खनन विभाग गायत्री प्रजापति को देना पड़ा था। आरोप थे कि उन्होंने साधना और प्रतीक यादव के चहेतों को उनकी सिफारिश पर खनन के लिए पट्टे बांटे थे। बहरहाल प्रतीक यादव की घोषित आय से ज्यादा संपत्तियों की जांच केंद्रीय एजंसियों ने शुरू भी की थी।
अपर्णा ने 2017 का विधानसभा चुनाव लखनऊ से सपा के टिकट पर लड़ा था पर भाजपा की रीता बहुगुणा से हार गई थी। पिछले साल विधानसभा चुनाव से पहले अपर्णा भाजपा में शामिल हुई थी। मुलायम के निधन के बाद भाजपा ने लोकसभा उपचुनाव में अपर्णा को मैनपुरी से डिंपल यादव के मुकाबले उतारने की कोशिश की थी पर वे तैयार नहीं हुई थी।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से उनका संपर्क सपा में रहते हुए भी जगजाहिर था। पिछले दिनों वे दिल्ली जाकर अमित शाह और जेपी नड्डा से मिली थी। कयास लगाए जा रहे हैं कि उन्हें भाजपा अगले साल लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव के ही किसी परिवारजन के मुकाबले मैदान में उतारेगी।
(संकलन : मृणाल वल्लरी)