कांग्रेस नेता राहुल गांधी का सियासी करियर फिर पटरी पर आ गया है। मोदी सरनेम मामले में जिस तरह से उन्हें पहले सजा हुई और फिर अपनी सांसदी भी गंवानी पड़ी, वो राहुल के साथ-साथ देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के लिए भी किसी बुरे सपने से कम नहीं रहा। लेकिन अब वो दौर बीत गया है, कांग्रेस और राहुल दोनों के लिए नया सवेरा फिर कई मौके लेकर आया है। ये मौके कांग्रेस के लिए बड़े सियासी बस्टर जैसे हैं और इसी के जरिए कई सपने भी पूरे किए जा सकते हैं।

लालू का कोई बयान, कोई अंदाज सिर्फ ऐसे ही नहीं होता

इसी कड़ी में राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट से मिली राहत के बाद आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव से मुलाकात की। असल में शुक्रवार रात को राहुल, लालू के दिल्ली वाले निवास पर उनसे मिलने पहुंच गए। क्या बात हुई, अभी तक साफ नहीं, लेकिन बताया जा रहा है कि राजद प्रमुख ने अपने हाथों से बना चंपारण मटन राहुल गांधी को जरूर खिलाया। अब जैसा लालू का सियासी करियर रहा है, उनका एक एक्शन, उनका एक बयान सिर्फ एक नजरिए से देखना ठीक नहीं रहता। उसके कई अलग-अलग मायने निकाले जाते हैं।

इसका ट्रेलर तो लालू प्रसाद यादव ने इंडिया गठबंधन की पहली पटना वाली बैठक के दौरान भी दिखा दिया था। उनकी तरफ से राहुल गांधी को दूल्हा कहा गया था। ये भी कह दिया था कि विपक्ष बारात बनकर उनके साथ चलेगा। राजनीति में दूल्हा का मतलब सभी बखूबी समझते थे, ऐसे में लालू के बयान के मायने यही निकले कि राहुल गांधी को एक बार फिर विपक्ष का चेहरा बनाया जाए।

राहुल ने लालू को इतनी तवज्जो क्यों दी?

अब जब तक राहुल गांधी, मोदी सरनेम मामले में फंसे थे, उनका पीएम रेस से बाहर होना लाजिमी था। ऐसे में दूल्हे वाले बयान का भी ज्यादा असर नहीं पड़ता। लेकिन अब बड़ा नाटकीय मोड़ आ गया है। एक राहत ने राहुल को फिर पीएम रेस में ला दिया है। इस बड़े ट्विस्ट के बाद राहुल ने भी सीधे लालू प्रसाद यादव से ही मुलाकात की है। अभी तक बैठक को लेकर कोई औपचारिक बयान जारी नहीं किया गया, लेकिन राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज है। ये चर्चा है इंडिया के चेहरे को लेकर, मोदी बनाम कौन को लेकर।

अभी तक इंडिया गठबंधन किसी के भी नाम को लेने से बच रहा है, इसका एक बड़ा कारण ये रहा कि इससे विपक्षी एकता में दरार आ सकती है। कई नेताओं के अपने सपने हैं, उन्हें दूसरों का आगे बढ़ना रास नहीं आने वाला है। लेकिन राहुल गांधी के साथ केस अलग है, वे ना सिर्फ वर्तमान में विपक्ष के सबसे बड़े नेता हैं बल्कि पीएम मोदी के खिलाफ भी सबसे ज्यादा आक्रमक दिखाई देते हैं। इसी वजह से उनकी दावेदारी स्वभाविक तौर पर ज्यादा मजबूत बन जाती है। अब उस मजबूत दावेदारी को और ज्यादा बल देने का काम लालू यादव कर सकते हैं।

राहुल के पुराने समर्थक लालू यादव, 2019 में भी किया था समर्थन

गांधी परिवार के साथ लालू के संबंध करीब वाले हैं, ये बात जगजाहिर है। इसके अलावा 2019 के लोकसभा चुनाव के वक्त भी सबसे पहले राजद प्रमुख ने ही राहुल गांधी को विपक्ष का पीएम उम्मीदवार घोषित कर दिया था। ये बात साल 2017 की थी जब गुजरात चुनाव चल रहे थे, राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष बनने जा रहे थे। तब लालू ने दो टूक कहा था कि मोदी को हराने के लिए राहुल ही विपक्ष का चेहरा होंगे और उनकी पार्टी का पूरा समर्थन रहेगा।

ये फ्लैशबैक वाला बयान ही बताने के लिए काफी है कि लालू के दिल में राहुल के लिए क्या जगह है। उनकी दावेदारी को लेकर इस समय सबसे ज्यादा बैटिंग उन्हीं की तरफ से की जा रही है। इस बात को कांग्रेस भी बखूबी समझती है, ऐसे में अगर दूसरे ‘महत्वकांक्षी’ सपने वाले नेताओं को समझाना है तो लालू का सक्रिय होना जरूरी हो जाता है। लालू कहने को इस विपक्षी एकता में अभी बैक सीट पर बैठे दिखाई देते हैं, लेकिन जानकार बताते हैं कि इस इंडिया गठबंधन की जो रूपरेखा तैयार हुई है, जिस तरह से कई चेहरों को साथ लाया गया है, इसमें नीतीश के साथ-साथ लालू का बड़ा हाथ है। इसी वजह से लालू यादव की बात को विपक्ष के दूसरे नेता आसानी से नहीं ठुकरा सकते।

लालू की सियासी ताकत, नेताजी को पीएम बनने से रोका

वैसे भी लालू प्रसाद यादव तो एक ऐसे नेता हैं जिन्होंने कई पीएम बनाए हैं, तो कई की सरकार को गिरवाया भी है। 90 के दशक में लालू ने अपना किंगमेकर वाला ऐसा रूप दिखा दिया था जिससे साफ हो गया था कि वे जो चाहें वो करवा सकते हैं। तभी तो लालू प्रसाद यादव ने एक बार नहीं बल्कि दो बार स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव का पीएम बनने का सपना चकनाचूर कर दिया था। 1996 में जब कांग्रेस की करारी हार हुई थी, लेफ्ट नेता हरिकिशन सिंह सुजीत ने मुलायम के नाम को आगे कर दिया था। लेकिन लालू ने ऐसा विरोध किया कि नेताजी का पत्ता कट गया और एचडी देवगोड़ा को प्रधानमंत्री बना दिया गया।

नीतीश का सपना भी लालू ने ही तोड़ा

अब लालू की यही सियासी ताकत आज भी उन्हें दूसरे कई नेताओं से अलग बनाती है। कहने को उनकी उम्र हो गई है, वे थोड़े बीमार भी चलते हैं, लेकिन उनका तेज दिमाग, उनके सियासी दांव-पेच अभी भी एकदम दुरुस्त हैं। टाइमिगं का खेल तो उनसे बेहतर शायद ही कोई समझे। तभी तो जिस समय जेडीयू नीतीश कुमार को पीएम बनाने के सपने देख रही थी, जिस तरह से बिहार में कई मौकों पर पोस्टर भी लग गए थे, लालू ने एक झटके में राहुल को दूल्हा घोषित कर उन सपनों पर पानी फेर दिया था।

इस समय बड़ी बात ये भी है कि नीतीश कुमार खुलकर राहुल के नाम का विरोध नहीं कर सकते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि जिस समय विपक्ष को एकजुट करने के लिए लगातार नीतीश दिल्ली से लेकर दूसरे राज्यों का दौरा कर रहे थे, उनका एक स्टैंड साफ था- बिना कांग्रेस कोई एकता नहीं हो सकती। उन्होंने यहां तक कह दिया था कि कांग्रेस की तरफ से हरी झंडी का इंतजार है, विपक्ष साथ जाएगा। ऐसे में जो नीतीश खुद ही कांग्रेस को इस विपक्षी एकता में लेकर आए हैं, उनके लिए राहुल के नाम का विरोध करना आसान नहीं होगा।

काम आएगी लालू की सियासी रेसिपी, राहुल बनेंगे चेहरा?

ऐसे में राहुल गांधी के सामने ज्यादा चुनौती नहीं आएगी, जो थोड़ी बहुत रहेंगी भी तो उसमें लालू का मिला ‘आशीर्वाद’ राह को आसान करने का काम कर देगा। वैसे भी कांग्रेस की अब पिछली दो विपक्षी एकता वाली बैठक के मुकाबले बारगेनिंग पावर ज्यादा बढ़ गई है। राहुल का रास्ता क्योंकि क्लियर हो गया है, ऐसे में कांग्रेस भी अब सीट शेयरिंग में अपनी तरफ से दबाव बना सकती है। इसके ऊपर राहुल के चेहरे को लेकर भी मंथन चल सकता है। अब उसी मंथन में लालू की ‘सियासी रेसिपी’ राहुल और कांग्रेस दोनों का काम आसान बना सकती है।