सुप्रीम कोर्ट में बुधवार (14 नवंबर) को राफेल डील विवाद पर सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) रंजन गोगोई की अध्यक्षता में तीन जजों वाली बेंच ने लंच के पहले तकरीबन ढाई घंटे चली सुनवाई में कहा कि वह इस मामले में सरकार की नहीं, बल्कि भारतीय वायु सेना (आईएएफ) के अधिकारियों की सुनेगी। चूंकि यह थोड़ा तकनीकी मामला, लिहाजा कोर्ट ने आईएएफ के अधिकारी को इस बाबत वहां बुलवाया। वहीं, याचिकाकर्ताओं में शामिल वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने सुनवाई के दौरान दावा किया कि इस डील में भ्रष्टाचार हुआ। उन्होंने सख्त लहजे में पूछा कि आखिर 36 राफेल विमानों की कीमत बताने से देश की सुरक्षा को आखिर कैसे नुकसान होगा? कोर्ट ने इस पर उन्हें कड़ी फटकार लगा दी। सीजेआई ने कहा कि आप जितना जरूरी हो, उतना ही बोलिए।

सबसे पहले याचिकाकर्ता ने फ्रांस के साथ हुई 36 विमानों की इस डील को रद्द करने की मांग उठाई। याचिकाकर्ता और अधिवक्ता एम.एल शर्मा ने कहा कि केंद्र सरकार ने जो रिपोर्ट कोर्ट को सौंपी है, वह बताती है कि मई 2015 के बाद लिए गए डील के फैसले में बड़ा घोटाला हुआ है। शर्मा ने इसी बात को लेकर कोर्ट से अपील की है कि इस मसले पर पांच जजों वाली बेंच सुनवाई करे। आगे, आम आदमी पार्टी (आप) नेता संजय सिंह के वकील ने कोर्ट में कहा कि 36 राफेल विमानों की डील की कीमतों का खुलासा दो बार संसद में किया जा चुका है। ऐसे में सरकार द्वारा यह कहा जाना कि कीमतों से जुड़े आंकड़े जनता के बीच सार्वजनिक नहीं किए जा सकते, यह बात स्वीकार नहीं की जा सकती है।

उधर, पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी (राफेल डील केस में याचिकाकर्ताओं में से एक) की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने पक्ष रखते हुए कहा कि केवल तीन ही परिस्थितियों में दो सरकारों (भारत-फ्रांस) के ही इस मसले का हल निकाला जा सकता है। इस डील में फ्रांस सरकार की ओर से सर्वश्रेष्ठ की कोई उम्मीद नहीं थी। बकौल भूषण, “सरकार ने गोपनीयता का हवाला देते हुए डील में विमानों की कीमत की जानकारी उन्हें नहीं दी। आखिर कीमतें बता देने से देश की सुरक्षा को कैसे खतरा पहुंचेगा?”

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राफेल मसले पर बुधवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट परिसर में वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण और पूर्व मंत्री अरुण शौरी। (एक्सप्रेस फोटोः ताशी तोबग्याल)

भूषण बोले, “सरकार जब संसद में डील की कीमतें बता चुकी है, तब कैसी गोपनीयता? मोदी सरकार का यह बेमतलब का तर्क है कि वह 36 विमानों के दामों का खुलासा नहीं कर सकती, जबकि नई डील में राफेल विमान पहले के मुकाबले 40 फीसदी महंगा है।” वहीं, सरकार की ओर कहा गया- यह मामला विशेषज्ञों का है। कोर्ट तकनीक तय नहीं कर सकता।

सीजेआई ने एजी केके वेणुगोपाल से पूछा, “क्या भारतीय वायु सेना (आईएएफ) का कोई अधिकारी कोर्ट में इस मसले पर सवालों का जवाब देने के लिए मौजूद है? क्योंकि हम वायु सेना के मामले पर बात कर रहे हैं और हमें इस मसले पर आईएएफ के अधिकारियों से इस पर जानकारी करनी चाहिए।”

इससे पहले, मंगलवार (13 नवंबर) को कांग्रेस के आरोपों पर दसॉ के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) की सफाई आई थी। एएनआई को दिए खास इंटरव्यू में उन्होंने स्पष्ट किया था कि वह सीईओ जैसे पद पर रहकर झूठ नहीं बोल सकते। उन्होंने पूर्व में जो बयान भी दिए हैं, वे सही हैं। यही नहीं, उन्होंने आंकड़े बताते हुए यह भी कहा था कि राफेल डील नौ फीसदी सस्ती हुई है।

आपको बता दें कि राफेल डील के मुद्दे पर मुख्य विपक्षी दल ने केंद्र में आसीन नरेंद्र मोदी सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं। कांग्रेस अध्यक्ष समेत पार्टी के कई नेता दावा कर चुके हैं कि मोदी सरकार ने इस डील के जरिए घोटाला किया है। उन्होंने महंगे दामों पर फ्रांस से जेट विमान की डील तय की और अंबानी को फायदा पहुंचाया। कांग्रेस का दावा कि यूपीए सरकार के दौर में इन विमानों की कीमत काफी कम थी। ऐसे में कांग्रेस ने इस मामले पर संयुक्त संसदीय जांच की मांग उठाई है।

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एरिक ट्रैपियर का बयान आने के बाद राहुल गांधी ने यह ट्वीट किया था।