तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का विरोध फिलहाल कम नहीं हुआ है। दिल्ली और उससे आसपास के इलाकों में वे प्रदर्शन कर रहे हैं। इसी बीच, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ किया। उन्होंने इस दौरान कई मुद्दों का जिक्र किया। पीएम खेती, किसान, कृषि कानून और पराली पर तो बोले, मगर किसानों के प्रदर्शन पर वह खुलकर कुछ नहीं बोले।

हालांकि, उन्होंने तीन उदाहरण गिनाते हुए कहा कि कृषि क्षेत्र में किए गए किसानों के हित में हैं और इनसे तीन दिनों के भीतर उन्हें फसल की खरीद का पैसा मिल जाएगा। अगर ऐसा न हुआ, तो वह पेमेंट को लेकर शिकायत भी दे सकते हैं।

उधर, नीति आयोग के सदस्य (कृषि) रमेश चंद ने समाचार एजेंसी पीटीआई-भाषा को बताया, “आंदोलनकारी किसान नए कृषि कानूनों को पूरी तरह समझ नहीं पाए हैं। इन नए कानूनों में किसानों की आय को बड़े पैमाने पर बढ़ाने की क्षमता।”

चंद के मुताबिक, “जिस तरह से मैं इन प्रदर्शनरत किसानों को देख रहा हूं, उससे लगता है कि ये पूरी तरह से इन तीनों कानूनों को समझ ही नहीं पाए हैं। अगर इन्हें लागू होने दिया जाता है, तब कई राज्यों में किसानों की आय बढ़ने के मौके बढ़ सकते हैं।” उनकी यह टिप्पणी उस सवाल के जवाब में आई, जिसमें पूछा गया था कि क्या किसानों की आय 2022 तक दोगुनी हो सकती है?

नीति आयोग ने सदस्य ने बताया कि किसानों का कहना है कि आवश्यक वस्तु अधिनियम को हटा दिया गया है और स्टॉकिस्ट, कालाबाजारी करने वालों को पूरी छूट दे दी गई है। चंद ने इसे स्पष्ट करते हुए कहा, ‘‘वास्तव में आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन किया गया है। इसके तहत प्रावधान किया गया है कि यह कानून कब लागू होगा। यदि अनाज, तिलहन या दालों के दाम 50 प्रतिशत बढ़ जाते हैं, तो इस कानून को लागू किया जाएगा।’’

इसी तरह यदि प्याज और टमाटर के दाम 100 प्रतिशत बढ़ जाते हैं, तो यह कानून लागू होगा। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जब प्याज के दाम चढ़ रहे थे, तो केंद्र ने 23 अक्टूबर को यह कानून लगाया था। उन्होंने कहा उस समय यह जरूरी था। ‘‘राज्यों से स्टॉक की सीमा लगाने को भी कहा गया था।’’ ठेका या अनुबंध पर खेती को लेकर किसानों की आशंकाओ को दूर करने का प्रयास करते हुए चंद ने कहा कि कॉरपोरेट के लिए खेती और ठेके पर खेती दोनों में बड़ा अंतर है।

उन्होंने कहा, ‘‘देश के किसी भी राज्य में कॉरपोरेट खेती की अनुमति नहीं है। कई राज्यों में ठेका खेती पहले से हो रही है। एक भी उदाहरण नहीं है, जबकि किसान की जमीन निजी क्षेत्र की कंपनी ने ली हो।’’ नीति आयोग के सदस्य ने कहा कि कृषक (सशक्‍तीकरण व संरक्षण) मूल्य आश्‍वासन और कृषि सेवा पर करार कानून किसानों के पक्ष में झुका हुआ है।

कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर पर चंद ने कहा, ‘‘चालू वित्त वर्ष 2020-21 में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 3.5 प्रतिशत से कुछ अधिक रहेगी।’’ बीते वित्त वर्ष 2019-20 में कृषि और संबद्ध क्षेत्रों की वृद्धि दर 3.7 प्रतिशत रही थी। प्याज के निर्यात पर बार-बार रोक के बारे में पूछे जाने पर चंद ने कहा, ‘‘कीमतें जब भी एक दायरे से बाहर जाती हैं, तो सरकार हस्तक्षेप करती है। यह सिर्फ भारत ही नहीं, अमेरिका और ब्रिटेन में भी होता है। ’’

PM के मन की बात कार्यक्रम की बड़ी बातेंः

मां अन्नपूर्णा की मूर्ति
राष्ट्रीय संग्रहालय वर्चुअल टूर
फूल, पक्षी और प्रकृति प्रेम
Jonas Masetti aka ‘Vishvanath’
न्यूजीलैंड में संस्कृत में शपथ
गुरुनानक देव 551वां प्रकाश पर्व
शिक्षा संस्थान और अल्युमनाई
श्री अरबिंदो
लोकल के लिए वोकल
खेती, किसान, कृषि कानून, पराली – 3 लोगों के उदाहरण
वैक्सीन, कोरोना के खिलाफ जंग
अंबेडकर पुण्यतिथि
सर्दी से सतर्क रहें

बता दें कि पीएम मोदी के नेतृत्व वाली NDA सरकार ने साल 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य रखा है। 27 सितंबर को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इन तीनों बिलों – The Farmers’ Produce Trade and Commerce (Promotion and Facilitation) Bill, 2020; The Farmers (Empowerment and Protection) Agreement of Price Assurance and Farm Services Bill, 2020; और Essential Commodities (Amendment) Bill 2020 को मंजूरी दे दी थी। (पीटीआई-भाषा इनपुट्स के साथ)