श्यामलाल यादव
Scheduled Castes: मोदी सरकार एक विवादास्पद और दूरगामी कदम पर अपने विकल्पों पर विचार कर रही है। अनुसूचित जाति (एससी) के बीच सब-कैटेगरी शुरू करना। इंडियन एक्सप्रेस को पता चला है कि इसमें एससी श्रेणी के भीतर कुछ जातियों के लिए एक अलग कोटा तय करना शामिल है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कुछ प्रभावशाली एससी समुदाय अधिकांश लाभों पर अपना हक न जमा लें।
सूत्रों ने कहा कि इसके लिए तात्कालिक तौर पर चुनावी राज्य तेलंगाना में मडिगा समुदाय की मांग है। तेलंगाना में लगभग 17 प्रतिशत एससी आबादी है। इसमें से 50 प्रतिशत आबादी मडिगा जाति की है, लेकिन उनका तर्क है कि अधिकांश अवसरों पर एक अन्य प्रभावशाली एससी समुदाय माला का कब्जा है। इसलिए उन्होंने अपने लिए अलग कोटा की मांग करते हुए एक आंदोलन शुरू किया है। अन्य राज्यों में भी माला जैसे उदाहरण हैं- बिहार में पासवान और यूपी में जाटव समुदाय है।
सूत्रों ने कहा कि प्रमुख मंत्रालय प्रस्ताव पर चर्चा कर रहे हैं। यदि सरकार किसी राज्य या देश भर में एससी के उप-वर्गीकरण के साथ आगे बढ़ने का निर्णय लेती है, तो उसे संविधान के अनुच्छेद 341 में संशोधन करने की आवश्यकता होगी। सूत्रों ने कहा कि इसका एक कानूनी विकल्प भी हो सकता है। हालांकि इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में एक बड़ी पीठ के गठन के लिए सरकार को इंतजार करना पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट बड़ी पीठ का गठन तभी करेगी जब उससे इसका अनुरोध किया जाएगा।
ओबीसी को लेकर सरकार कर चुकी है रोहिणी आयोग का गठन
गौरतलब है कि सरकार ने ओबीसी के लिए ऐसी कवायद पहले ही शुरू कर दी है। इसके लिए सरकार ने रोहिणी आयोग की स्थापना की। जिसकी रिपोर्ट 31 जुलाई को ओबीसी के उप-वर्गीकरण पर प्रस्तुत की गई थी। 2024 के आम चुनावों से पहले राजनीतिक अनिवार्यताओं को देखते हुए यह रिपोर्ट लटकी हुई है।
अनुसूचित जाति के बीच उप-वर्गीकरण के मुद्दे का एक भयावह इतिहास है। 2004 में सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ ने अनुसूचित जाति के उप-वर्गीकरण के लिए आंध्र प्रदेश के कानून को रद्द कर दिया था। 2020 में सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने माना कि राज्य के पास ऐसा करने की शक्ति है, लेकिन मुख्य न्यायाधीश से मामले को सात या अधिक न्यायाधीशों की पीठ को सौंपने का अनुरोध किया था। वह अभी भी लंबित है।
1994 में हरियाणा, 2006 में पंजाब और 2008 में तमिलनाडु जैसे राज्य अपने एससी के भीतर उप-वर्गीकरण लाने के लिए आगे बढ़े, लेकिन ये सभी सुप्रीम कोर्ट के फैसले से लंबित हैं।
इस मुद्दे पर नवीनतम घटनाक्रम इस साल फरवरी में कर्नाटक में हुआ। जब बोम्मई सरकार ने एससी कोटा को उप-वर्गीकृत करने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया। संपर्क करने पर, तत्कालीन राज्य कानून मंत्री जे सी मधुस्वामी ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि यह मामला अभी केंद्र के पास लंबित है।
सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में 14 राज्य असहमत
2006-07 में केंद्र ने आंध्र प्रदेश में अनुसूचित जाति के उप-वर्गीकरण के मुद्दे की जांच के लिए राष्ट्रीय आयोग की स्थापना की थी। इसने उप-वर्गीकरण की सिफारिश की, लेकिन राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग इससे सहमत नहीं हुआ। मार्च 2000 में सुप्रीम कोर्ट में दायर एक हलफनामे के अनुसार, 14 राज्य असहमत थे, जबकि सात राज्य केंद्र के एक प्रश्न के जवाब में उप-वर्गीकरण पर सहमत हुए थे।
सूत्रों ने कहा कि सरकार के भीतर एक वर्ग ने इस विचार का समर्थन करते हुए तर्क दिया है। जिसमें कहा गया कि दावे का समर्थन करने के लिए उनके पास जेटा है कि एससी के भीतर कुछ समुदायों को लाभ का बड़ा हिस्सा मिलता है।
पक्ष में एक और तर्क यह है कि ऐसा संशोधन न केवल एससी बल्कि अनुसूचित जनजाति (एसटी) पर भी लागू होगा और जम्मू और कश्मीर की तरह एससी और एसटी की सूची में नई प्रविष्टियां होने पर चिंताओं का समाधान करेगा। हालाँकि, सूत्रों ने कहा, कुछ लोगों ने सावधानी बरतने और अपनी चिंताओं से अवगत कराया है।
संघीय ढांचे में इस समस्या का हल राज्यों द्वारा किया जाना चाहिए या केंद्र द्वारा?
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, राज्यों को ऐसा करने का अधिकार है, लेकिन केंद्र सरकार के संशोधन को राज्यों की शक्ति पर अतिक्रमण के रूप में देखा जाएगा। इसके अलावा, यदि उप-वर्गीकरण की अनुमति दी जाती है, तो एससी के बीच क्रीमी लेयर जैसे मुद्दे उठ सकते हैं और भीतर विभाजन बढ़ सकता है।
