देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के निधन से भारतीय राजनीति के एक सूर्य का अस्त हो गया है। यद्यपि वे अपने राजनीतिक जीवन के बहुत बड़े हिस्से में कांग्रेस के सदस्य रहे लेकिन उन्हें अन्य विचारधाराओं से भी सम्मान मिलता रहा। उनके निधन पर प्रधानमंत्री मोदी से लेकर सोनिया गाँधी तक कई पार्टियों के शीर्ष नेताओं ने शोक संवेदना व्यक्त की। शोक संवेदना की कड़ी में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत भी शामिल हुए।
उन्होंने प्रणब दा को संघ का ‘मार्गदर्शक’ बताया और साथ ही कहा कि वह राजनीतिक छुआछूत में विश्वास नहीं करते थे। हालांकि प्रणब दा का राजनीतिक दृष्टि से सम्बन्ध कांग्रेस से रहा था। कांग्रेस और आरएसएस की विचारधाराओं में कुछ मूलभूत अंतर रहे हैं। इसके बावजूद वे एक बार आरएसएस के बुलावे पर उसके एक कार्यक्रम ‘संघ शिक्षा वर्ग- तृतीय वर्ष’ के समापन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि नागपुर स्थित संघ मुख्यालय पहुँच गए थे।
उनके वहां जाने को लेकर काफी विवाद हुआ था। कई कांग्रेस नेता ने उनका मुखर विरोध किया था। विरोधियों की इस सूची में उनकी बेटी और कांग्रेस नेत्री शर्मिष्ठा मुखर्जी भी शामिल थीं।
कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित ने उनपर निशाना साधते हुए कहा था ‘प्रणब मुखर्जी सांप्रदायिकता और हिंसा में संघ की भूमिका पर सवाल उठा चुके हैं। उन्होंने ही संघ को राष्ट्रविरोधी बताया था और कहा था इसे देश में नहीं होना चाहिए.’
संदीप दीक्षित ने कहा था कि प्रणब मुखर्जी संघ को सांप से भी जहरीला मानते हैं। अब वो कार्यक्रम में जा रहे हैं। दीक्षित ने कहा था, ”क्या प्रणब मुखर्जी ने अपनी विचारधारा बदल दी है या संघ में ही कोई स्वाभिमान नहीं बचा है.” उनकी बेटी शर्मिष्ठा ने कहा था कि आपकी बातें भुला दी जाएंगी। सिर्फ आपके फोटो रह जाएँगे।

कांग्रेस में हो रहे इस बड़े विरोध के बाद भी वे पीछे नहीं हटे। वे मझे राजनीतिज्ञ थे। संघ के उन्हें आमंत्रित करने के पीछे मंशा थी कि वह भारतीय जनमानस में यह सन्देश दे पाए कि उसका विरोध समूची कांग्रेस नहीं बल्कि सिर्फ गाँधी परिवार ही करता है।
प्रणब दा ने कार्यक्रम के दौरान कथनी से लेकर करनी तक बहुत सावधानी बरती। जिससे आरएसएस उनका कभी खास प्रयोग नहीं कर सकेगा। उन्होंने कार्यक्रम के दौरान संघ के भगवा झंडे को एक भी बार संघ प्रणाम नहीं किया और न ही संघ की प्रार्थना के समय प्रार्थना की कोई लाइन बोली। जबकि वे वहां मौजूद स्वयंसेवकों को हाथ जोड़कर अभिवादन करते तक नजर आये थे।
इसके बाद उन्होंने भाषण भी ऐसा दिया जिससे उनका विरोध कर रहे कांग्रेसियों को चैन मिल गया। उन्होंने संघ को नेहरु और गाँधी के राष्ट्रवाद का पाठ पढाया। गाँधी और नेहरु का उद्धरण प्रस्तुत कर राष्ट्रवाद को समझाते हुए उन्होंने कहा, “गांधी जी ने कहा है, ये भारतीय राष्ट्रवाद न तो विभेदकारी था, न आक्रामक और न ही विध्वंसक। ये वही राष्ट्रवाद है जिसे इतने विस्तार से पंडित जवाहर लाल नेहरू ने डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया में दिखाया है।
उन्होंने कहा, ‘मेरा पक्का विश्वास है कि राष्ट्रवाद हिंदू, मुसलमान, सिख और दूसरे समूहों के दायरे से बाहर निकल सकता है, इसका ये मतलब नहीं है कि किसी समूह की संस्कृति मिट जाए लेकिन इसका ये मतलब है कि एक साझा राष्ट्रीय दृष्टि पैदा हो जो सबसे ऊपर हो।’
पहले विरोध का राग अलाप रही कांग्रेस उनके भाषण से खुश हो गई। उस समय सोशल मीडिया पर लोगों ने इसे प्रणब दा के द्वारा संघ के घर में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक करना करार दिया था।