देश की राजनीति में इन दिनों बदलाव की बयार तेज़ है। कहीं तय रणनीति के तहत संजीव अरोड़ा को मंत्री बनाया गया है तो कहीं बीजेपी अध्यक्ष पद पर अनिश्चितता बनी हुई है। चिराग पासवान अपने सत्तू-स्ट्रा अंदाज़ से चर्चा में हैं, वहीं कांग्रेस और अन्ना द्रमुक अपने-अपने संकटों से जूझ रही हैं।

राह आसान

तय रणनीति से संजीव अरोड़ा पंजाब सरकार में मंत्री बन गए। लुधियाना पश्चिम सीट के पिछले महीने हुए विधानसभा उपचुनाव में अरोड़ा ने कांग्रेस के उम्मीदवार को हराया था। अरोड़ा लुधियाना के उद्योगपति हैं। अरविंद केजरीवाल ने 2022 में उन्हें राज्यसभा का सदस्य बनाया था। आम आदमी पार्टी के इस सीट से चुने गए विधायक गुरप्रीत बस्सी गोगी के निधन के कारण उपचुनाव हुआ। अरविंद केजरीवाल दिल्ली के चुनाव में हारे न होते तो मुमकिन है कि इस उपचुनाव में आम आदमी पार्टी का संजीव अरोड़ा की जगह कोई और उम्मीदवार होता। अरोड़ा को उम्मीदवार बनाते ही कयास लगने लगे थे कि वे उपचुनाव जीत कर राज्यसभा की अपनी सीट से त्यागपत्र देंगे। उनकी जगह केजरीवाल राज्यसभा आ जाएंगे। केजरीवाल इस अटकल को खारिज करते रहे। आरोप है कि बाकायदा सौदेबाजी हुई। एक तो यही कि राज्यसभा सीट उपचुनाव जीतने पर ही खाली करेंगे और मंत्री पद भी लेंगे। केजरीवाल और भगवंत मान ने उपचुनाव के प्रचार में जब अरोड़ा के लिए वोट मांगे तब भी कहा था कि वे जीतकर मंत्री बनेंगे। सब कुछ योजना के अनुसार हो गया तो एक जुलाई को अरोड़ा ने राज्यसभा से त्यागपत्र दिया और तीन  जुलाई को पंजाब सरकार में मंत्री बने। इस दृश्य का खाका पहले ही खीच दिया गया था। जाहिर है, अब केजरीवाल के राज्यसभा पहुंचने की राह आसान हो गई है।

बीरबल की खिचड़ी

लगता है कि भाजपा को अपना नया अध्यक्ष चुनने में कुछ ज्यादा ही मशक्कत करनी पड़ रही है। मौजूदा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने जनवरी 2020 में पद संभाला था। तीन साल के तय कार्यकाल की जगह वे पिछले साढ़े पांच साल से अध्यक्ष हैं। उनकी सबसे बड़ी खूबी शीर्ष नेतृत्व का भरोसेमंद होना है। वे पिछले 13 माह से केंद्रमें मंत्री भी हैं। एक साथ दो पद संभाल रहे हैं, जो पार्टी के एक व्यक्ति, एक पद के सिद्धांत के खिलाफ है। उन्होंने ही लोकसभा चुनाव से पहले बयान दिया था कि अब भाजपा मजबूत है और उसे आरएसएस के समर्थन की जरूरत नहीं है। चार सौ पार के नारे की जगह पार्टी लोक सभा चुनाव में 240 पर सिमटी तो आरएसएस की अहमियत समझ आ गई अध्यक्ष का फैसला न हुआ, मानो बीरबल की खिचड़ी हो गई। बहरहाल अब तो तकनीकी अड़चन भी दूर हो गई है। आधे से ज्यादा राज्यों के पार्टी अध्यक्ष चुने जा चुके हैं।

चिराग का सत्तू बनाम ‘स्ट्रा’

चिराग पासवान बिहार की राजनीति में ऊर्जावान चेहरा हैं। बिहार चुनाव नजदीक है तो सबकी नजरें चिराग पर भी हैं जो बहुत हद तक सत्ता समीकरण को साध सकते हैं। पिछले दिनों चिराग पासवान की ‘स्ट्रा’ से सत्तू पीते हुए और सामने रखे लिट्टी-चोखे की तस्वीर इंटरनेट पर छा गई। पार्टी के आधिकारिक खाते से तस्वीर ‘एक्स’ पर डाली गई तो मजेदार टिप्पणियां भी आने लगीं। एक ने कहा कि सत्तू पनिहरा (पानी से बहुत पतला किया हुआ) होगा तभी ‘स्ट्रा’ से पी रहे हैं। एक अन्य ‘एक्स’ उपयोगकर्ता ने पूछा कि क्या ‘स्ट्रा’ से भी सत्तू का स्वाद समान ही लगता है? एक ने कहा कि सत्तू, लिट्टी चोखा बिहारी खाना है, लेकिन तस्वीर में जो ‘प्लाटिंग’ की गई है वहां से बिहारीपन गायब है।  

आलाकमान कौन

कर्नाटक में कांग्रेस का सत्ता संघर्ष थमने का नाम नहीं ले रहा। मुख्यमंत्री सिद्धरमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार खुद तो नहीं भिड़ते पर दोनों के समर्थक जरूर इस संघर्ष को जिंदा रखते हैं। शिवकुमार बगावत न करें, इसके लिए पार्टी ने उन्हें प्रदेश का पार्टी अध्यक्ष भी बना रखा है। शिवकुमार समर्थकों का दावा है कि चुनाव बाद शिवकुमार को आलाकमान ने भरोसा दिया था कि शुरू के ढाई साल सिद्धरमैया मुख्यमंत्री रहेंगे और बाद के ढाई साल उन्हें मौका दिया जाएगा। पर सिद्धरमैया इस मांग को खारिज करते हुए कई बार सफाई दे चुके हैं कि ऐसा कोई समझौता नहीं हुआ था और वे पूरे पांच साल मुख्यमंत्री रहेंगे। कांग्रेस आलाकमान की मुश्किल यह है कि सिद्धरमैया पिछड़े वर्ग से आते हैं। उन्हें हटाने पर बगावत और पिछड़ों की नाराजगी का दोहरा जोखिम है। सो आलाकमान ने सुरजेवाला को बंगलुरू भेज कर फिलहाल स्थिति को काबू किया है। लेकिन सोमवार को पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने बंगलुरू में कहा कि मुख्यमंत्री बदला जाएगा या नहीं, फैसला आलाकमान करेगा। पर पार्टी अध्यक्ष तो वे खुद हैं। पार्टी में अध्यक्ष से बड़ा आलाकमान और कौन हो सकता है। मल्लिकार्जुन खरगे के इस बयान के बाद भाजपा ने तंज कसा कि क्या कांग्रेस में असली आलाकमान सोनिया और राहुल ही हैं? भाजपाई भूल गए कि जेपी नड्डा अध्यक्ष जरूर हैं पर आलाकमान तो भाजपा में भी दूसरे हैं।

कुर्बानी के बाद भी परेशानी

तमिलनाडु में अन्ना द्रमुक और भाजपा गठबंधन पर खतरे के बादल मंडराने लगे हैं।  लोक सभा में अन्ना द्रमुक से गठबंधन नहीं करने का भाजपा को नुकसान हुआ था। तब पार्टी के तमिलनाडु के अध्यक्ष के अन्नामलाई अन्ना द्रमुक से गठबंधन के विरोधी थे। गठबंधन के मोह में ही पार्टी ने अन्नामलाई की जगह दूसरा अध्यक्ष बना दिया। फिलहाल अन्नामलाई को राज्यसभा भी नहीं भेजा। इसके बावजूद अन्ना द्रमुक अपनी पुरानी जिद पर कायम है कि गठबंधन को विधानसभा चुनाव में बहुमत मिला तो सरकार अकेले अन्ना द्रमुक की बनेगी।

भाजपा को उसमें शामिल नहीं किया जाएगा। लेकिन गृहमंत्री अमित शाह ने पिछले दिनों बयान दे दिया कि 2026 के विधानसभा चुनाव में राजग की जीत हुई तो सरकार राजग की बनेगी। इसी से विवाद बढ़ गया। दरअसल अन्ना द्रमुक को लगता है कि राजग सरकार बनने का प्रचार हुआ तो चुनाव में घाटा हो सकता है। द्रविड़ संस्कृति भाजपा के सनातन से मेल नहीं खाती। इसलिए अन्ना द्रमुक नेताओं ने अमित शाह के बयान को खारिज करने में देर नहीं लगाई। द्रमुक को धु्रवीकरण का कोई भी मौका नहीं देना चाहते अन्ना द्रमुक नेता।