पेगासस जासूसी विवाद, कृषि कानून और कोरोनावायरस के मुद्दे पर कांग्रेस समेत लगभग सभी विपक्षी दल एक मंच पर नजर आ रहे हैं। इसके चलते केंद्र सरकार की कोशिशों के बावजूद इस मानसून सत्र में लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही लगातार स्थगित हुई है। मंगलवार को भाजपा संसदीय दल की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे लेकर गुस्सा भी जाहिर किया और विपक्ष के विरोध के तरीके को संविधान, संसद और जनता का अपमान करार दिया। हालांकि, इस बीच पीएम को खुद यह याद नहीं रहा कि जिस विपक्ष के प्रदर्शन की वे आलोचना कर रहे थे, संसद में कुछ वैसा ही प्रदर्शन भाजपा के नेतृत्व वाले विपक्ष ने यूपीए-2 के कार्यकाल में किया था।

गौरतलब है कि भाजपा ने कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए गठबंधन के दौरान 10 साल (2004 से लेकर 2014) तक मुख्य विपक्षी दल की भूमिका निभाई थी। जहां मनमोहन सरकार के पहले कार्यकाल में संसद की कार्यवाही सामान्य स्तर पर चली थी, वहीं यूपीए-2 के दौरान विपक्ष सरकार पर हावी रहा। खासकर भाजपा ने तो इस दौरान सरकार पर जमकर हमला बोला था। गैर-लाभकारी संस्था PRS लेगिस्लेटिव रिसर्च की उस दौरान की स्टडी में सामने आता है कि 2009 से 2014 के बीच 15वीं लोकसभा का कामकाज पिछले 50 सालों में सबसे खराब था।

बताया जाता है कि उस दौरान भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरी कांग्रेस पर हर दिन ही भाजपा का हमला होता था। इसके चलते सत्र के बाद सत्र स्थगित होने का सिलसिला जारी रहा। भाजपा ने खुद इस तरह के प्रदर्शन को लोकतंत्र का ही एक रूप बताया था।

जब कोयला घोटाले के आरोपों में भाजपा ने नहीं चलने दी संसद: 2012 वह दौर था, जब कांग्रेस कोल ब्लॉक आवंटन से जुड़ी अनियमितताओं को लेकर आरोपों का सामना कर रही थी। इस दौरान भाजपा के प्रदर्शन के चलते संसद के मानसून सत्र की उत्पादकता काफी नीचे रही थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने तब भाजपा की हरकत को लोकतंत्र का प्रतिवाद कहा था।

तब लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष रहीं सुषमा स्वराज ने कहा था कि संसद न चलने देना भी एक तरह का लोकतंत्र है। उधर तब राज्यसभा में विपक्ष के नेता रहे अरुण जेटली ने कहा था कि संसद की कार्यवाही रोकना सरकार को जिम्मेदार ठहराने के बराबर है। भाजपा का कहना था कि वह यह प्रदर्शन कांग्रेस नेताओं पर भ्रष्टाचार की जांच कराने और जिम्मेदार मंत्रियों और प्रधानमंत्री के इस्तीफे के लिए कर रहे हैं।