दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की स्नातक डिग्री से संबंधित जानकारी का खुलासा करने का निर्देश दिया गया था। न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने सीआईसी के आदेश को चुनौती देने वाली दिल्ली विश्वविद्यालय की याचिका पर यह फैसला सुनाया।

न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने आरटीआई से संबंधित कई याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए खुली अदालत में कहा कि सीआईसी का विवादित आदेश रद्द किया जाता है। यह फैसला अदालत द्वारा 27 फरवरी को सुनवाई पूरी करने और आदेश सुरक्षित रखने के लगभग छह महीने बाद आया है।

न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने फैसला सुनाया कि विवादित आदेश में केंद्रीय सूचना आयोग का पूरा दृष्टिकोण पूरी तरह से गलत था। उन्होंने अपने फैसले में कहा, “यह निष्कर्ष कि किसी व्यक्ति विशेष की डिग्री/अंक/परिणाम से संबंधित जानकारी ‘सार्वजनिक सूचना’ की प्रकृति की है, यह सर्वोच्च न्यायालय द्वारा केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी, भारत के सर्वोच्च न्यायालय बनाम सुभाष चंद्र अग्रवाल मामले में दिए गए निर्णय का प्रत्यक्ष और पूर्णतः उल्लंघन है।”

डीयू की तरफ से क्या दलील दी गई?

दिल्ली विश्वविद्यालय की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि सीआईसी का आदेश रद्द किया जाना चाहिए। मेहता ने हालांकि, कहा कि विश्वविद्यालय को अपना रिकॉर्ड अदालत को दिखाने में कोई आपत्ति नहीं है। उन्होंने कहा, “विश्वविद्यालय को अदालत को रिकॉर्ड दिखाने में कोई आपत्ति नहीं है। इसमें 1978 की कला स्नातक की एक डिग्री है।”

डीयू ने सीआईसी के आदेश को इस आधार पर चुनौती दी कि उसने छात्रों की जानकारी को न्यासिक क्षमता में रखा है और जनहित के अभाव में “केवल जिज्ञासा” के आधार पर किसी को आरटीआई कानून के तहत निजी जानकारी मांगने का अधिकार नहीं है। इससे पहले, आरटीआई आवेदकों के वकील ने सीआईसी के आदेश का इस आधार पर बचाव किया कि सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम में व्यापक जनहित में प्रधानमंत्री की शैक्षिक जानकारी के प्रकटीकरण का प्रावधान है।

2017 में सीआईसी के आदेश को दी गई थी चुनौती

साल 2017 मेंं दिल्ली विश्वविद्यालय ने याचिका में सीआईसी के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें 1978 में विश्वविद्यालय से बीए प्रोग्राम पास करने वाले छात्रों के रिकॉर्ड की जांच करने का निर्देश दिया गया था। उसी साल पीएम नरेंद्र मोदी ने विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त की थी। सीआईसी का यह आदेश एक आरटीआई आवेदन के संबंध में आया था। साल 1978 में ही प्रधानमंत्री मोदी ने भी यह परीक्षा उत्तीर्ण की थी।

पीएम मोदी की डिग्री मामले ने कैसे पकड़ा तूल?

साल 2016 में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी शैक्षणिक डिग्रियों के बारे में स्पष्ट करने और उन्हें सार्वजनिक करने के लिए कहा था। पीएम ने अपने चुनावी हलफनामे में कहा था कि उन्होंने वर्ष 1978 में डीयू से बीए (राजनीति विज्ञान) में स्नातक किया।

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इसके एक साल बाद नीरज शर्मा नाम के एक व्यक्ति ने RTI के तहत 1978 में दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा प्रदान की गई सभी बीए डिग्रियों की जानकारी मांगी थी। तब डीयू ने डिग्री से संबंधित जानकारी का खुलासा करने से इनकार करते हुए कहा कि यह ‘निजी’ है और इसका ‘सार्वजनिक हित से कोई लेना-देना नहीं है’।

जब डीयू ने जानकारी नहीं दी तो नीरज शर्मा ने दिसंबर 2016 में सीआईसी का रुख किया। इस पर सूचना आयुक्त प्रोफेसर एम. आचार्युलु ने एक आदेश पारित कर डीयू को निर्देश दिया कि वह 1978 में कला स्नातक कार्यक्रम उत्तीर्ण करने वाले विद्यार्थियों की सूची वाला रजिस्टर सार्वजनिक करे।

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