उपमुख्यमंत्री अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार के राज्यसभा में जाने से महाराष्ट्र के वंशवादी राजनेताओं के समूह में पवार परिवार से एक नाम और जुड़ जाएगा। परिवार के मुखिया शरद पवार पहले से ही राज्यसभा सदस्य हैं, उनकी बेटी सुप्रिया सुले लोकसभा में हैं, और उनके भतीजे अजीत और पोते रोहित महाराष्ट्र विधानसभा में हैं, सुनेत्रा सार्वजनिक पद संभालने वाली पांचवीं पवार बनने वाली हैं। बारामती के पारिवारिक गढ़ के लोकसभा चुनाव में हार के बाद सुनेत्रा का राज्यसभा में जाना राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) में विभाजन के बावजूद महाराष्ट्र की राजनीति में पवार परिवार के महत्व को दर्शाता है।

गोविंदराव और शारदाबाई पवार की 11 संतानों में शरद आठवे नंबर पर हैं

गोविंदराव और शारदाबाई पवार की 11 संतानों ने कुल मिलाकर महाराष्ट्र के सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक परिदृश्य पर गहरा प्रभाव डाला है। इन 11 संतानों में शामिल सात बेटे और चार बेटियां में शरद पवार आठवे नंबर पर हैं। 82 वर्षीय पवार सांसद, पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे हैं और परिवार में सबसे प्रभावशाली और प्रसिद्ध नाम हैं। उनके सभी 10 भाई-बहनों ने अपने-अपने क्षेत्रों में नाम कमाया है।

शरद पवार की राजनीतिक बैकग्राउंड शारदाबाई की सक्रियता से प्रेरित था

कहा जाता है कि पवार की राजनीतिक पृष्ठभूमि शारदाबाई की सक्रियता से प्रेरित थी, जो किसान और श्रमिक पार्टी और कांग्रेस से जुड़ी थीं। 1938 में, शारदाबाई पुणे स्थानीय बोर्ड के चुनावों में निर्विरोध चुनी गईं और पुणे जिले की कुछ महिला राजनेताओं में से एक थीं। पवार ने अक्सर अपनी मां का जिक्र किया है, उन्हें अपने बच्चों में कड़ी मेहनत और सार्वजनिक हित के प्रति प्रतिबद्धता के लिए सम्मान देने की भावना भरने पर धन्यवाद दिया है।

शरद के सबसे बड़े भाई वसंतराव पुणे जिले के एक प्रसिद्ध वकील थे। जमीन विवाद में उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई। वसंतराव के साथ शरद के तीन बड़े भाई भी मारे गए हैं। वे हैं दिनकरराव, जो एक कृषक थे; अनंतराव जो उपमुख्यमंत्री अजीत पवार के पिता थे; और माधवराव जिन्होंने अपनी खुद की औद्योगिक इकाइयाँ स्थापित कीं।

सूर्यकांत एक आर्किटेक्ट हैं, जिनकी रियल एस्टेट सेक्टर में रुचि है। उनके बाद सरला जगताप और सरोज पाटिल का नाम आता है, जो दिवंगत नारायण दयानदेव पाटिल की पत्नी हैं। नारायण दयानदेव पाटिल वामपंथी आंदोलन और किसान एवं श्रमिक पार्टी के एक बड़े नेता थे। राजनीति में उनके अलग-अलग दृष्टिकोण और विभिन्न मुद्दों पर टकराव के बावजूद पवार के साथ उनके करीबी संबंध थे। पवार के बाद उनकी बहन मीना जगधाने का स्थान है; भाई प्रताप जो सकाळ समाचार पत्र समूह के प्रमुख हैं; और सबसे छोटी बहन नीला सासने।

पवार परिवार की दूसरी पीढ़ी जहां काफी हद तक एकजुट रही, वहीं परिवार की तीसरी पीढ़ी के उभरने से परिवार के भीतर मतभेदों के संकेत बढ़ गए हैं। पवार परिवार के बाकी सदस्यों की तरह, पवार के भतीजे अजित ने भी सहकारी क्षेत्र की राजनीति में अपना हाथ आजमाया। 1991-92 से पवार के साथ रहने वाले अजित पवार ने खुद को पवार का उत्तराधिकारी माना, जब से पवार ने कांग्रेस से अलग होकर एनसीपी बनाई है।

अजीत को 1999 में 40 साल की उम्र में महाराष्ट्र सरकार में कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया था, जिसके बाद वे करीब एक दशक तक जूनियर मंत्री के पद पर रहे। इसके बाद उन्होंने सिंचाई, ग्रामीण विकास, जल संसाधन और वित्त जैसे उच्च-स्तरीय मंत्रालयों की कमान संभाली, जिससे उन्हें पश्चिमी महाराष्ट्र में अपने गढ़ सहित पूरे राज्य में अपना प्रभाव फैलाने में मदद मिली।

2009 के लोकसभा चुनावों में पवार की बेटी सुप्रिया सुले के राजनीति में प्रवेश ने पहली बार एनसीपी नेता के परिवार के भीतर बेचैनी होने का संकेत दिया। अजीत खेमे के लिए एक और परेशानी पवार के पोते रोहित का राजनीति में प्रवेश था। रोहित ने 2019 के विधानसभा चुनाव में कर्जत जामखेड से चुनाव लड़ा और जीता। रोहित दिनकरराव के पोते और राजेंद्र के बेटे हैं, जो अपने भाई रंजीत के साथ पुणे में कृषि व्यवसाय और वाइनरी में रुचि रखते हैं।

2019 के विधानसभा चुनावों से कुछ हफ्ते पहले प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने अजीत पवार और शरद पवार को मनी लॉन्ड्रिंग मामले में नामित किया था। इस पर अजीत पवार सार्वजनिक रूप से रो पड़े। इसके बाद अजीत ने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया और कुछ दिन के लिए सभी से दूर हो गये थे।

कहा जाता है कि 2019 के लोकसभा चुनाव लड़ने से पीछे हटने का पवार का फैसला अजीत द्वारा अपने बेटे पार्थ को मावल से मैदान में उतारने की जिद से उपजा था। पार्थ की हार ने दोनों के बीच खटास को और बढ़ा दिया। 2019 में अजीत ने अपने चाचा से अलग होकर भाजपा के साथ एक अल्पकालिक सरकार बनाई।

हालांकि शरद पवार का दबदबा कायम रहा और महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (MVA) सरकार बनाने के लिए उन्हें वापस लाने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आखिरकार जुलाई 2023 में अजीत ने एनसीपी में विभाजन करके भाजपा से हाथ मिला लिया। इसका असर पवार परिवार में भी दरार पैदा कर दी। परिवार के अधिकतर भाई-बहनों ने शरद पवार का साथ दिया। पिछले एक साल में अजीत अक्सर सार्वजनिक रूप से खुद को अपने परिवार से बहिष्कृत बताते रहे हैं। उनके अपने बड़े भाई श्रीनिवास ने उनके खिलाफ प्रचार किया था और अब संकेत मिल रहे हैं कि उनके बेटे युगेन्द्र को इस वर्ष के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों में बारामती में उनके गृह क्षेत्र में अजित के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए तैयार किया जा रहा है।