माननीय उच्चतम न्यायालय का कोई निर्णय घोषित कानून है और भारत के सभी नागरिकों के लिए बाध्यकारी होता है। इसलिए इसका अत्यंत सम्मान होना चाहिए और पालन होना चाहिए। अदालत की एक संविधान पीठ ने 10 दिसंबर 2023 को संविधान के अनुच्छेद 370 के ‘निरस्तीकरण’ को बरकरार रखने के लिए सर्वसम्मति से फैसला सुनाया। न्यायालय ने कहा कि पूर्व जम्मू और कश्मीर राज्य को अब विशेष दर्जा प्राप्त नहीं है।

अदालत ने कहा कि भारतीय संविधान के प्रावधानों को 1950 और 2019 के बीच जम्मू-कश्मीर में चरणबद्ध रूप से विस्तारित किया गया था और अनुच्छेद 370 (एक अस्थायी प्रावधान) को ‘निरस्त’ करना इस प्रक्रिया की परिणति थी। निष्कर्ष कितना सही है इस पर राय भिन्न हो सकती है, लेकिन निष्कर्ष की ओर ले जाने वाला तर्क तार्किक प्रतीत होता है।

हालांकि, अनुच्छेद 370 के ‘निरस्तीकरण’ के अन्य पहलू भी हैं जो परेशान करने वाले हैं : केंद्र सरकार/संसद द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया की वैधता और ‘संघवाद’ और ‘राज्यों के अधिकारों’ के लिए इसके निहितार्थ। यह पहलू न केवल जम्मू-कश्मीर, बल्कि देश के सभी राज्यों से संबंधित हैं।

कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया

अदालत के फैसले में तीन मुख्य निष्कर्ष शामिल हैं : केंद्र सरकार द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 368 के दायरे से बाहर थी। संविधान के किसी प्रावधान में केवल एक ही तरीके से संशोधन किया जा सकता है – अनुच्छेद 368 का सहारा लेकर और आवश्यक विशेष बहुमत के साथ संसद में संविधान संशोधन विधेयक पारित करके। जम्मू और कश्मीर के मामले में, केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 367 (व्याख्या खंड) में खंड (4) जोड़ने के लिए अनुच्छेद 370 (1) (डी) को लागू किया, अनुच्छेद 370 (3) के प्रावधान में ‘राज्य की संविधान सभा’ के लिए ‘राज्य की विधानसभा’ शब्दों को प्रतिस्थापित किया, अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के लिए ‘संशोधित’ अनुच्छेद 370 (3) का उपयोग किया। कृपया अदालत के तर्क को पढ़ें कि जटिल अभ्यास असंवैधानिक क्यों था :

पैरा 389 ‘…हालांकि ‘व्याख्या’ खंड का उपयोग शब्दों को परिभाषित करने या अर्थ देने के लिए किया जा सकता है, लेकिन इसे इसके संशोधन के लिए निर्धारित विशिष्ट प्रक्रिया को दरकिनार करके किसी प्रावधान में संशोधन करने के लिए तैनात नहीं किया जा सकता है।’ पैरा 400 ‘… माधव राव सिंधिया मामले में न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 366 (22) के तहत अधिकारों का उपयोग संपार्श्विक उद्देश्य के लिए नहीं हो सकता, अनुच्छेद 368 के तहत प्रक्रिया को समाप्त करने के लिए। अनुच्छेद 370 (1) (डी) और 367 का उपयोग 370 को संशोधित करने या समाप्त करने के लिए अनुषांगिक उद्देश्य के लिए नहीं किया जा सकता।’

अनुच्छेद 370 के संशोधन को असंवैधानिक मानने के बावजूद अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 370(1)(डी) के तहत अधिकारों का इस्तेमाल, जम्मू और कश्मीर में संविधान के सभी प्रावधानों को लागू करना वैध था और अनुच्छेद 370 (3) के तहत घोषणा के आधार पर अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के समान इसका प्रभाव था।अदालत ने कहा कि अनुच्छेद 370(1)(डी) के दूसरे प्रावधान के तहत राज्य सरकार की सहमति आवश्यक नहीं : बाद के निष्कर्ष अत्यधिक बहस योग्य हैं।

‘छोड़ दिए गए’ मुद्दे

अदालत को इस सवाल की जांच करनी चाहिए थी कि क्या राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के लिए अनुच्छेद तीन का सहारा लेना अवैध था। अदालत ने इस मुद्दे पर निर्णय लेने से इनकार कर दिया क्योंकि केंद्र सरकार के वकील ने तर्क प्रस्तुत किया कि सरकार जम्मू और कश्मीर (लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश को छोड़कर) को राज्य का दर्जा बहाल करने और चुनाव कराने का इरादा रखती है। इस दलील को स्वीकार करते हुए अदालत ने अवैधता के सवाल की जांच करने से इनकार कर दिया और एक उचित मामले में प्रश्न को ‘छोड़ दिया’।

इसके अलावा, एक ओर अदालत ने चुनाव कराने के लिए एक समय सीमा (30 सितंबर, 2024) निर्धारित की। दूसरी ओर, उसने राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की। यह स्पष्ट है कि राज्य का दर्जा बहाल करने के बाद चुनाव होने चाहिए, इसलिए दोनों को लेकर अनिश्चितता है।

तीसरा मुद्दा (अनिश्चित) अधिक परेशान करने वाला है। संविधान के अनुच्छेद तीन के तहत, किसी राज्य के राज्यक्षेत्र में परिवर्तन करने या एक नया राज्य या संघ राज्य क्षेत्र बनाने आदि के लिए कोई भी विधेयक संसद में पेश नहीं किया जाएगा, जब तक कि राष्ट्रपति उस राज्य के विधानमंडल के विचारों का पता नहीं लगा लेते। जम्मू-कश्मीर में 19 दिसंबर, 2018 से राष्ट्रपति शासन लगा हुआ था।

राज्य विधायिका के सभी अधिकारों और कार्यों को संसद ने अपने हाथों में ले रखा था। राज्य विधायिका के ‘विचारों’ को संसद के ‘विचार’ मान लिए गए। राष्ट्रपति (प्रधान मंत्री की सलाह पर) ने संसद (= राज्य विधायिका) से परामर्श किया और संसद ने राज्य विधायिका के ‘विचारों’ को व्यक्त किया। यह संसद का एक अजीब कृत्य था! इसके बाद संसद ने जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया।

अनर्गल तरीके

यदि इस कार्य की संवैधानिकता अनिश्चित रहती है, तो किसी भी राज्य को राष्ट्रपति शासन के अधीन लाया जा सकता है, राष्ट्रपति राज्य विधायिका (= संसद) के विचारों का पता लगा सकता है और संसद एक राज्य को विभाजित कर सकती है और राज्य को दो या दो से अधिक राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों में बांट सकती है। ज्यादातर मामलों में, पूर्व राज्य का उन्मूलन अपरिवर्तनीय होगा। किसी भी घटना में, नए राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों द्वारा लिए गए अधिकांश निर्णय अपरिवर्तनीय होंगे।

क्या आपको लगता है कि संविधान सभा, जिसमें कई कानूनी दिग्गज शामिल थे और एक संघीय भारत और सरकार के संसदीय रूप के लिए मतदान किया था, ने इस तरह के एक निराशाजनक भविष्य की कल्पना की थी? अनुच्छेद 370 को ‘निरस्त’ करने के फैसले को एक तरफ रख दीजिए। देश के लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय वे शैतानी तरीके हैं, जिनसे सरकार संविधान के प्रावधानों को तोड़-मरोड़कर राज्यों के अधिकारों और संघवाद को कमजोर कर सकती है।