Jammu and Kashmir Chief Minister Omar Abdullah: जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल न किए जाने मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला अब तक की अपनी सबसे तीखी टिप्पणी की। उमर अब्दुल्ला ने कहा कि मौजूदा दोहरी शासन प्रणाली ‘सफलता के लिए नहीं’ बल्कि ‘असफलता के लिए’ बनाई गई है। उन्होंने पहली बार अपनी सरकार के उन फैसलों के बारे में बात की जो राजभवन में अटके हुए हैं।

मुख्यमंत्री बनने के बाद बख्शी स्टेडियम में अपना पहला स्वतंत्रता दिवस भाषण देते हुए अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा वापस दिलाने की मांग के लिए एक हस्ताक्षर अभियान की घोषणा की, और इसमें हो रही देरी पर सवाल भी उठाए। उन्होंने कहा कि कई आश्वासनों के बाद, अब उनकी उम्मीदें टूटने लगी थीं।

अब्दुल्ला ने कहा कि परंपरागत रूप से, जम्मू-कश्मीर में निर्वाचित सरकारों के कार्यकाल में आतंकवाद में कमी आई है। उन्होंने आगे कहा कि आज हमें बताया जा रहा है कि निर्वाचित सरकार पर यहां की स्थिति को संभालने के लिए भरोसा नहीं किया जा सकता।

मुख्यमंत्री की यह टिप्पणी राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग वाली एक याचिका पर सुनवाई के दौरान आई है। जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि पहलगाम आतंकवादी हमले जैसी घटनाओं को “नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता” और “ज़मीनी हालात” को भी ध्यान में रखना होगा।

अब्दुल्ला ने कहा कि मैं नहीं चाहता कि कोई भी केंद्र शासित प्रदेश का मुख्यमंत्री बने। मैंने बार-बार कहा है कि यह शासन प्रणाली सफलता के लिए नहीं, बल्कि असफलता के लिए है। उन्होंने आगे कहा कि उन्हें अंदाज़ा नहीं था कि यह “इतना मुश्किल” होगा। उन्होंने आगे कहा, “मुझे नहीं पता था कि कैबिनेट की मंज़ूरी के बिना कैबिनेट के फ़ैसलों को बदलने की कोशिश की जाएगी। मुझे नहीं पता था कि कैबिनेट के फ़ैसलों को रोक दिया जाएगा। उन्हें मंज़ूरी नहीं दी जाएगी। उन्हें कहीं बंद कर दिया जाएगा और भुला दिया जाएगा।”

जम्मू-कश्मीर के सीएम ने आगे कहा कि कभी-कभी मुझे लगता है… कि अगर हमारी स्थिति की तुलना किसी चीज़ से की जा सकती है, तो वह उस घोड़े से है जिसके आगे के पैर बंधे हुए हैं और जिसे दौड़ने के लिए कहा गया है। वह चल तो सकता है, यहां से वहां पहुंच सकता है, लेकिन उसे बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ेगा। और जिस गति से वह पहुंचना चाहेगा, वह नहीं पहुंच पाएगा… हमारी भी हालत यही है। हमें हुकूमत दी गई है, हुकूमत में इख्तियारियत है, लेकिन कहीं न कहीं हमारे हाथ हमारी पीठ के पीछे बंधे हुए हैं।

पहलगाम हमले को राज्य का दर्जा न दिए जाने का एक कारण बताते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में जो कुछ भी हमने सुना, उस पर मुझे खेद है… आज हमें बताया जा रहा है कि चुनी हुई सरकार पर यहां के हालात संभालने के लिए भरोसा नहीं किया जा सकता। हमने कब दिखाया कि हम इस भरोसे के लायक नहीं हैं? बस एक बार हम पर भरोसा कर लीजिए। हम इससे पहले कभी नाकाम नहीं हुए… याद रखिए कि चुनी हुई सरकारें थीं, चाहे मेरी सरकार रही हो या मेरी सरकार से पहले… हमने ऐसे हालात पैदा नहीं होने दिए।

केंद्र सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा वापस देने के वादे का ज़िक्र करते हुए अब्दुल्ला ने कहा, “कुछ दोस्त और रिश्तेदार मुझसे बार-बार कहते हैं कि इस साल कुछ बदलेगा। ‘इस साल एक घोषणा होगी, उसका इंतज़ार करो’। ’15 अगस्त को दिल्ली से जम्मू -कश्मीर के लिए एक बड़ी घोषणा होगी ‘। हालाँकि असल में ज़्यादा उम्मीद नहीं थी, लेकिन जब कोई व्यक्ति किसी बात को बार-बार सुनता है, तो कहीं न कहीं, दिल के किसी कोने में कुछ अटक सा जाता है… और बड़ी बेसब्री से हम उस भाषण का इंतज़ार करते रहे… इंतज़ार करते रहे कि शायद इस भाषण के किसी कोने में हमें जम्मू-कश्मीर के लिए कोई बड़ी घोषणा सुनने को मिले। मुझे तो यहां तक कहा गया था, ‘कागज़ात तैयार हो रहे हैं, अब बस वक़्त की बात है’। हमने इंतज़ार किया। ऐसा नहीं हुआ।”

मुख्यमंत्री ने आगे कहा कि वह अक्सर एक उम्मीद की किरण की बात करते थे। उन्होंने कहा, “सच तो यह है कि उम्मीद की किरण थोड़ी कम हो गई है… हकीकत यह है कि कुछ दिन पहले मुझे जो उम्मीद थी, शायद आज वह उम्मीद नहीं है।”

पहलगाम आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ शुरू किए गए ऑपरेशन सिंदूर के बारे में बोलते हुए, अब्दुल्ला ने कहा कि पाकिस्तान को तो “तीन-चार दिन” की सज़ा मिली, लेकिन हमले के खिलाफ आवाज उठाने वाले जम्मू-कश्मीर के लोगों को सालों से सज़ा मिल रही है और आज भी मिल रही है। उन्होंने पूछा कि यह कब तक चलेगा? हम पहलगाम के हमलावरों के साथ नहीं हैं। हम पहलगाम हमले को स्वीकार नहीं करते। लेकिन इसके बावजूद, आज पहलगाम हमले का इस्तेमाल हमें राज्य का दर्जा देने से रोकने के लिए किया जा रहा है।

यह स्वीकार करते हुए कि उनका हमेशा से मानना रहा है कि केंद्र से लड़ने से जम्मू-कश्मीर को कोई फ़ायदा नहीं होगा, बल्कि उसके साथ अच्छे संबंधों से कुछ हासिल होगा, मुख्यमंत्री ने कहा कि मुझे इसके लिए ताने सुनने पड़े। इसके लिए मेरा मज़ाक उड़ाया गया… हालांकि, ताली दो हाथों से बजती है।

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घाटी की अन्य मुख्यधारा की पार्टियों ने नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार पर सत्ता में आने के बाद केंद्र के साथ “समझौता” करने का आरोप लगाया है। अब्दुल्ला ने जानबूझकर अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर ज़ोर देने से परहेज़ किया है, और केंद्र द्वारा राज्य का दर्जा बहाल करने को एक सुलह के संकेत के रूप में देखा है। मोदी सरकार ने संकेत दिया है कि राज्य का दर्जा वापस करना उसकी योजनाओं का एक अभिन्न अंग है, लेकिन इस मुद्दे पर उसने टालमटोल की है।

राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए हस्ताक्षर अभियान की घोषणा करते हुए अब्दुल्ला ने कहा कि हमें अब अपने दफ्तरों और घरों से निकलकर उन दरवाज़ों पर अपनी आवाज़ उठानी होगी जहां हमारे लिए फ़ैसले लिए जा रहे हैं। अब तक हमने पत्रों, प्रस्तावों और बैठकों के ज़रिए अपनी आवाज़ उठाई है। अब हम जम्मू-कश्मीर के हर गाँव से दिल्ली तक अपनी आवाज़ उठाएंगे।

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सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे पर अगली सुनवाई आठ हफ़्तों में होने वाली है, ऐसे में मुख्यमंत्री ने कहा कि मैं और मेरे साथी हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठेंगे। हम थकेंगे नहीं। हम इन आठ हफ़्तों का इस्तेमाल जम्मू-कश्मीर के सभी 90 विधानसभा क्षेत्रों तक पहुंचने के लिए करेंगे। हम हर घर, हर गांव तक पहुंचने की कोशिश करेंगे और लोगों के हस्ताक्षर लेंगे। हम उनसे पूछेंगे कि क्या वे चाहते हैं कि जम्मू-कश्मीर फिर से एक राज्य बने या नहीं… अगर वे तैयार नहीं होते हैं, तो मैं अपनी हार स्वीकार करूंगा और मान लूंगा कि जम्मू-कश्मीर इन शर्तों से संतुष्ट है।

स्वतंत्रता दिवस समारोह के बाद पत्रकारों से बात करते हुए, नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि उनकी पार्टी पूरे जोश के साथ हस्ताक्षर अभियान चलाएगी। अपने बेटे और मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के “कड़े संदेश” की प्रशंसा करते हुए, फारूक ने कहा कि कई वर्षों के बाद स्वतंत्रता दिवस समारोह में भाग लेते हुए उनकी भावनाएं मिली-जुली थीं (पिछले साल चुनी गई नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार, अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद पहली सरकार है)। फ़ारूक़ ने कहा कि आंसू भी थे और खुशी भी थी। आंसू इसलिए क्योंकि मैं भी यहां का मुख्यमंत्री रहा हूं, हमारे यहां अनुच्छेद 370 था, अनुच्छेद 35A था और हम एक राज्य थे।

(इंडियन एक्सप्रेस के लिए बशारत मसूद की रिपोर्ट)