One Nation One Election: ‘एक देश, एक चुनाव’ को लेकर सरकार ने शुक्रवार को बड़ा फैसला लिया है। सरकार ने इसको लेकर एक कमेटी का गठन किया है। कमेटी के सदस्यों को लेकर थोड़ी देर में नोटिफिकेश जारी किया जाएगा। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया है। इस कमेटी का मकसद एक देश एक चुनाव के कानूनी पहलुओं पर गौर करेंगी। सूत्रों का यहां तक कहना है कि एक देश, एक चुनाव पर सरकार बिल ला सकती है।
‘एक देश, एक चुनाव’ कमेटी गठन को लेकर कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने निशाना साधा है। अधीर रंजन चौधरी ने कहा, ‘एक देश, एक चुनाव पर केंद्र सरकार की नीयत साफ नहीं है। अभी इसकी जरूरत नहीं है। पहले बेरोजगारी और महंगाई का निदान होना चाहिए।’
केंद्र सरकार की ओर से 18 से 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र बुलाया गया है। चर्चा है कि इस सत्र में ‘एक देश, एक चुनाव’ पर सरकार बिल (One Nation One Election Bill) ला सकती है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने गुरुवार को इस मुद्दे को लेकर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी।
मुंबई में विपक्षी गठबंधन इंडिया में हिस्सा लेने पहुंचे मल्लिकार्जुन खड़गे से सवाल किया गया कि सरकार स्पेशल सेशन बुला रही है और ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ बिल ला सकती है। इस पर उन्होंने कहा, ‘उन्हें लाने दीजिए, लड़ाई जारी रहेगी।” इससे पहले टीएमसी चीफ ममता बनर्जी समेत कई विपक्षी नेता समय से पहले लोकसभा चुनाव होने की आशंका जता चुके हैं।
देश में लोकसभा और विधानसभा एक साथ कब हुए-
देश में 1952, 1957, 1962 और 1967 में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव हुए हैं। इसके तहत चार बार चुनाव हुए। 1968-1969 के बीच कुछ राज्यों की विधानसभा भंग हो गई, जिससे चेन टूट गई। साल 1971 में भी समय से पहले लोकसभा चुनाव कराए गए थे।
एक साथ चुनाव होंगे तो क्या होगा फायदा
देश में अगर लोकसभा चुनाव और सभी राज्यों में विधानसभा चुनाव एक साथ होते हैं तो इससे खर्चा कम होगा। चुनाव की वजह से प्रशासनिक अधिकारी भी व्यस्त रहते हैं, उन्हें भी इस काम से निजात मिलेगी और अन्य काम पर फोकस कर सकेंगे। आंकड़े के मुताबिक, जब देश में पहली बार चुनाव हुए थे, उस वक्त तकरीबन 11 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। 17वीं लोकसभा में 60 हजार करोड़ से ज्यादा रुपए खर्च हुए। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब लोकसभा चुनाव में इतने पैसे खर्च हुए तो विधानसभा चुनावों में कितने पैसे खर्च होते होंगे।
एक देश, एक चुनाव के पीछे तर्क
लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने को लेकर तर्क दिया जाता है कि इससे पूरे देश में एक पार्टी का वर्चस्व कायम रहेगा, जो अन्य राजनीतिक दलों के खतरनाक सिद्ध होगा। इससे कई दलों पर संकट मंडरा सकता है और एक साथ चुनाव कराए जाने के परिणाम आने में काफी वक्त लगेगा।
लॉ कमीशन ने क्या कहा था-
लॉ कमीशन ने साल 1990 में एक रिपोर्ट में एक देश, एक चुनाव का समर्थन किया था। लॉ कमीशन ने दलीय सुधारों की बात कही थी और नोटा का विकल्प देने के लिए कहा था।
दुनिया के कई देशों में लागू है यह सिस्टम
बता दें, दुनिया के कई ऐसे देश हैं, जहां एक देश, एक चुनाव का सिस्टम लागू है। जिसमें- स्पेन, हंगरी, जर्मनी, पोलैंड, इंडोनेशिया, बेल्जियम, दक्षिण अफ्रीका, स्लोवेनिया और अल्बानिया जैसे देश शामिल हैं। इस लिस्ट में हाल में स्वीडन भी शामिल हुआ है।