एक समय था जब ज्यादातर भारतीय माता-पिता अपने बच्चों के लालन-पालन से जुड़ी हर चिंता से तकरीबन मुक्त रहते थे। देश में जो नया मध्यवर्ग पिछले दो-ढाई दशक में तैयार हुआ है, वह अपने बच्चों के लालन-पालन, शिक्षा और भविष्य संबंधी तैयारियों से लेकर उनके लिए हर किस्म की सुख-सुविधाएं जुटाने के लिए काफी सक्रिय है। बच्चों को वह हर सहूलियत देना चाहता है, जो शायद उसे अपने बचपन में नहीं मिली, लेकिन इस चाहत ने अभिभावकों को न सिर्फ बेतहाशा खर्च का दबाव झेलने को मजबूर किया है बल्कि ऐसे संकट भी पैदा कर दिए हैं जो जानलेवा भी साबित हो रहे हैं।

कुछ समय पहले उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में आधी रात के बाद एक आलीशान कार में सवार छह युवा हादसे का शिकार हो गए। दुर्घटना को लेकर काफी कुछ कहा गया। जैसे किसी ने दूसरी कार से होड़ लेने, तो किसी ने पार्टी से लौटते इन युवाओं के शराब के नशे में होने और कार की रफ्तार ज्यादा होने के अंदाजे लगाए। दुर्घटना से जुड़े तथ्यों की जांच में हो सकता है कि आखिर में कोई सच सामने आए। मगर एक चीज को फिर भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, वह है परवरिश।

देर रात दारू पार्टी फैशनल

आज की पीढ़ी की परवरिश कैसी है, इसे शायद ही किसी जांच में परखा जाता हो। मगर देर रात पार्टी, नशीले पदार्थों का सेवन, आधुनिक फोन और गैजेट से लेकर फैशनेबल कपड़ों और महंगी कारों के शौकीन अठारह से बाइस-चौबीस साल के नौजवानों को देख कर लगता है कि उनकी जिंदगी में कोई अभाव नहीं है। न उन्हें अपने भविष्य की चिंता है और न ही इसकी कोई फिक्र है कि अगर नौकरी नहीं मिली तो क्या होगा।

जरूरी नहीं कि ऐसे दृश्य सिर्फ दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों में आम हों। बल्कि लखनऊ, चंडीगढ़, देहरादून, नोएडा, गुरुग्राम, हैदराबाद- हर मझोले और बड़े शहरों में करीब एक जैसी स्थिति दिखाई देती है। इन शहरों में नए मध्यवर्ग का एक हिस्सा ऐसा है, जहां अभिभावक अपनी संतानों को महंगी से महंगी चीजें दिला रहे हैं। उन्हें इसकी परवाह भी नहीं है कि ऐसी बेशकीमती चीजें पाने वाले उनके बच्चे उसकी कीमत और उनके इस्तेमाल की समझ भी रखते हैं या नहीं।

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आज देश के उच्च शिक्षण संस्थानों- खासकर महंगे निजी विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले छात्र हर छोटे अंतराल पर पार्टी करने, देर रात कारों में सवार होकर सड़कों पर हुड़दंग मचाने, नाचने और तेज रफ्तार से वाहन चलाते हुए स्टंट करने में लिप्त पाए जाते हैं। बेहद गंभीर पक्ष यह है कि देश के ज्यादातर बड़े शहरों में नशीले पदार्थों की बड़ी-बड़ी खेपें पकड़े जाने की कई खबरें आई हैं। ये नशीले पदार्थ वहां किसके लिए पहुंच रहे हैं, इसे हर कोई जानता है। इन सब चीजों को आपस में जोड़ने वाली कड़ी है वह धन, जो अभिभावक अपनी संतानों को बिना यह जाने मुहैया करा रही है कि वे इस पैसे का क्या करेंगे।

अब खुद अभिभावक बच्चों को सुख-सुविधाएं जुटा कर दे देते हैं, जिसे हासिल करने के लिए उन्हें लंबा संघर्ष करना पड़ता है। ऐसे अभिभावक शायद इस अपराधबोध से ग्रस्त रहते हैं कि जो चीजें उन्हें उनके मां-बाप नहीं दे सके, अगर वे अपने बच्चों को नहीं दिला पाए, तो उनमें कोई हीनभावना आ जाएगी। इसलिए मूल प्रश्न यह है कि क्या अभिभावक इस प्रवृत्ति में छिपी समस्या और उसके अर्थ को समझ पाएंगे।

हमारे देश में बीते दो-तीन दशकों के बीच जो नव-धनाढ्य या नया मध्यवर्ग सामने आया है, उसने अभावों से निकल कर थोड़ी-बहुत समृद्धि अर्जित करने में सफलता पाई है। यह वर्ग अपने अभाव भरी जिंदगी को भूला नहीं है। वह अपने बचपन, किशोरावस्था और जवानी में संपन्नता को नहीं जी पाने के अपराधबोध से ग्रस्त है। चूंकि ऐसे अभिभावक खुद वैभवशाली जीवन जीने के लिए अतीत वाली उम्र के दौर में लौट नहीं सकते, इसलिए अपने बच्चों के जरिए वह सब सुख पा लेना चाहते हैं। साथ ही, उन्हें लगता है कि जो चीजें उनके मां-बाप उन्हें नहीं दे सके, वे सारी सहूलियतें और ऐश्वर्य अपने बच्चों पर लुटा दें ताकि उनके बच्चे आगे चल कर यह शिकायत न कर पाएं कि संपन्नता के बावजूद उनके अभिभावकों ने उन्हें बड़ी गाड़ी, महंगे फ्लैट और शानदार कपड़े नहीं दिलाए।

युवाओं में नशे की लत

असल में, परवरिश की ऐसी दुविधा ने हमारे समाज के सामने वे सारे संकट एक साथ खड़े कर दिए हैं, जहां नई पीढ़ी बिना कुछ संघर्ष किए सब कुछ पा लेना चाहती है। यही कारण है कि युवाओं में नशे की लत, सड़क हादसों की बढ़ती संख्या और तमाम तरह के हुड़दंग में उनके शामिल होने के मामले हर दिन सामने आ रहे है। दिखावे की परंपरा ने भी शहरी समाज में काफी कुछ बिगाड़ पैदा किया है। अगर बच्चों को विदेश पढ़ने के लिए नहीं भेजा गया, किसी की शादी शानदार बैंक्वेट हाल में नहीं हुई या ‘डेस्टिशन वेडिंग’ का प्रबंध नहीं किया गया, होली-दीवाली पर धूमधाम नहीं हुई या किसी अन्य मौके पर वे सारे आयोजन नहीं किए गए, तो इन नव-धनाढ्य या नए मध्य वर्ग का दिल मायूस हो जाता है। कई बार तो दिखावा इतना हावी हो जाता है कि पढ़ाई-शादी के लिए भारी-भरकम कर्ज ले लिया जाता है और फिर उसके दबाव में पूरे परिवार की आत्महत्या जैसे मामले सामने आते हैं।

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हालांकि बच्चों की परवरिश से जुड़ी कई चीजें पूरी दुनिया में बदली हैं, लेकिन संभव है कि विकसित देशों में अभिभावक हमारे देश के अभिभावकों के मुकाबले कम जज्बाती हों। इसकी वजह यह है कि विकसित देशों के अभिभावकों की तुलना में भारतीय मां-बाप पारंपरिक तौर पर अपने बच्चों के जीवन और भविष्य को लेकर कुछ ज्यादा ही चिंतित रहने लगे हैं। ऐसे में, कई बार तो वे बच्चों पर अपनी क्षमता से ज्यादा खर्च कर डालते हैं। इनमें कई खर्च ऐसे हैं जिनके बारे में पहले के मां-बाप सोचते तक नहीं थे। आनलाइन खरीदारी, हर हफ्ते मल्टीप्लेक्स में जाकर फिल्म देखना, खरीदारी करना, महंगा भोजन करना और फिटनेस के जरूरी उपकरण खरीदना तथा कुछेक मामलों में जिम जाना भी उनके बच्चों की नई मांगों में शामिल है।

ज्यादा चितिंत होने या खुद पश्चाताप करने की जरूरत नहीं

यहां एक अहम बात और है। देश में आई जागृति और पढ़ लिख कर तैयार हुए नए समाज में एकल बच्चे को मां-बाप के सपने पूरे का एकमात्र जरिया माना जा रहा है। हालांकि बच्चे पहले भी इस सपने के वाहक हुआ करते थे, लेकिन तब यह बच्चे की योग्यता पर निर्भर होता है। दो-तीन बच्चों में से कोई एक अपने बूते सफल हो जाता था, तो मां-बाप को तसल्ली हो जाती थी। लेकिन अब एकल बच्चे की हर ख्वाहिश पूरी करने का दबाव अभिभावक खुद ही अपने सिर ले बैठे हैं। ऐसे में ये दबाव परवरिश के प्रचलित मानदंडों के सामने नई चुनौतियां पैदा करने लगी हैं। लिहाजा अभिभावक यह समझें कि बच्चों के भविष्य और उनके लिए सुख-सुविधाएं जुटाने को लेकर उन्हें ज्यादा चितिंत होने या खुद पश्चाताप करने की जरूरत नहीं है।

आज की पीढ़ी की परवरिश कैसी है, इसे शायद ही किसी जांच में परखा जाता हो। मगर देर रात पार्टी, नशीले पदार्थों का सेवन, आधुनिक फोन और गैजेट से लेकर ‘फैशनेबल’ कपड़ों और महंगी कारों के शौकीन अठारह से बाईस-चौबीस साल के नौजवानों को देख कर लगता है कि उनकी जिंदगी में कोई अभाव नहीं है। न उन्हें अपने भविष्य की चिंता है और न ही इसकी कोई फिक्र है कि अगर नौकरी नहीं मिली तो क्या होगा। जरूरी नहीं कि ऐसे दृश्य सिर्फ दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों में आम हों। बल्कि लखनऊ, चंडीगढ़, देहरादून, नोएडा, गुरुग्राम, हैदराबाद- हर मझोले और बड़े शहरों में करीब एक जैसी स्थिति दिखाई देती है।