‘महागठबंधन’ में तवज्जो न दिए जाने से स्तब्ध राकांपा नेता तारिक अनवर बिहार में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए वाम दलों के साथ हाथ मिलाकर ‘तीसरा’ विकल्प बनाने की योजना बना रहे हैं।
कुछ वाम दलों के साथ प्रारंभिक स्तर की वार्ताएं कर चुके अनवर ने बताया कि यदि इन दलों के साथ गठबंधन हो जाता है तो यह एक विश्वसनीय संबंध होगा, वह भी एक ऐसे समय पर, जबकि राज्य में सांप्रदायिक बलों और ‘अवसरवादी’ बलों के बीच खींचतान दिखाई दे रही है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि उनकी योजना उन छोटे क्षेत्रीय दलों को भी अपने समूह में शामिल करने की है, जिनका ‘नंबर एक शत्रु’ भाजपा है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने इस बात को खारिज कर दिया कि अच्छी खासी मुस्लिम आबादी वाले इस राज्य में असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम का कोई असर नहीं होगा। ‘‘वह असर छोड़ सकता है। जब भी कभी सांप्रदायिक मुस्लिम नेतृत्व होता है, तो असर छूटना लाजमी ही है।’’
बिहार में लगभग 18 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है। इस आबादी का एक बड़ा हिस्सा लालू प्रसाद की राजद के साथ रहा है, जो कि एमवाई (मुस्लिम और यादव) द्वारा मिलने वाले समर्थन पर गर्व करती रही है। मुस्लिमों का एक धड़ा नीतीश कुमार के साथ भी हो गया है।
अनवर ने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता वाले महागठबंधन के लिए चुनाव ‘‘आसान नहीं’’ है क्योंकि उनके साथ ‘‘10 साल की सत्ताविरोधी’’ लहर चल रही है।
नीतीश के नेतृत्व वाले गठबंधन द्वारा नजरअंदाज कर दिए जाने से आहत अनवर ने कहा, ‘‘जद(यू)-राजद द्वारा राकांपा को महज तीन सीटें दिए जाने का फैसला स्तब्ध करने वाला था।’’ उन्होंने कहा कि कुमार और लालू के कदम से धर्मनिरपेक्ष वोट में बंटवारा हो जाएगा क्योंकि जिन लोगों को महागठबंधन द्वारा और भाजपा द्वारा भी टिकट देने से इंकार कर दिया जाएगा, वे लोग ऐसे एक ‘तीसरे विकल्प’ की ओर जा सकते हैं।
अनवर ने दावा किया कि ‘महागठबंधन’ ने उन्हें और उनकी पार्टी को बाहर रखकर यह संकेत दिया है कि वह मुस्लिम नेतृत्व उतारने के खिलाफ हैं। शरद पवार के नेतृत्व वाली पार्टी के संस्थापकों में से एक अनवर ने कहा, ‘‘लंबे समय से, वे मुझे कहते आए हैं कि राकांपा और मैं महागठबंधन का अभिन्न अंग हैं और अचानक ही हमसे बिना कोई विचार विमर्श किए यह सब हो जाता है। यह राजनीतिक बेईमानी है।’’
उन्होंने आरोप लगाया कि ‘महागठबंधन’ में सीटों का बंटवारा ‘बिना किसी मापदंड’ के किया गया। उन्होंने दावा किया कि गठबंधन में मौजूद दलों को लोकसभा में कुल मिलाकर नौ सीटें मिली थीं, जिनमें से एक सीट उनकी पार्टी की है। ऐसे में उनकी पार्टी को विधानसभा की कुल 243 सीटों में से 27 सीटें तो मिलनी ही चाहिए थीं।
जब उनसे पूछा गया कि क्या उनके द्वारा तीन सीटों के प्रस्ताव को अस्वीकार किए जाने के बाद जद(यू्)-राजद ने उनसे संपर्क किया, तो उन्होंने कहा, ‘‘हमें लगता है कि उन्हें (लालू-नीतीश) को राकांपा और हमारे जैसे लोगों की जरूरत नहीं है और उन्हें हमसे बात करने की जरूरत भी महसूस नहीं होती।’’