लोकसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग के लिए अब 10 दिन से भी कम का वक्त बचा है। लेकिन हैरानी की बात यह कि अभी तक मुस्लिम संगठनों ने अपने समुदाय के सदस्यों से वोटिंग की अपील नहीं की है। आमतौर पर लोकसभा चुनावों से पहले कई मुस्लिम संगठन अपने समुदाय के लोगों को बताते हैं कि किसे वोट करना है? लेकिन अभी तक किसी मौलवी या उलेमा की ओर से यह अपील नहीं की गई है कि किस दल या गठबंधन के पक्ष में वोट करना है।
जानिए क्या है रणनीति
दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी ने भी अब तक इस मामले पर चुप्पी साध रखी है। उन्होंने भी किसी दल के पक्ष में लोगों से वोटिंग की अपील नहीं की है। सूत्रों के अनुसार ऐसा एक रणनीति के तहत किया जा रहा है मुस्लिम संगठनों को लगता है कि वोटिंग की अपील करने से समुदायों के बीच धार्मिक ध्रुवीकरण हो सकता है। इससे बीजेपी को फायदा भी हो सकता है।
मुस्लिम संगठन ऑल इंडिया मजलिस-ए-मुशावरत के पूर्व चीफ नावेद हामिद ने टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए कहा, “मुस्लिम संगठन और उनके मौलवी इस बार अब तक कोई सामूहिक मतदान की मुखर अपील नहीं की है क्योंकि वे जानते हैं कि ऐसी अपील के कारण बहुसंख्यक (हिन्दू) मतदाताओं का ध्रुवीकरण कर सकता है। इसीलिए मौलवियों ने बयान या अपील करने के बजाय चुप्पी साध रखी है।”
इससे पहले जब पिछले साल नूंह में सांप्रदायिक दंगा हुआ था तो जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना की थी। उन्होंने कहा था, “पीएम आप मन की बात करते हैं, मुसलमानों के मन की बात भी सुनिए। मुस्लिम इन हालातों से परेशान हैं, वो सोच रहे हैं कि मुल्क का क्या भविष्य होगा? मुसलमान ही नहीं हिंदू, ईसाई और सिख भी यही सोच रहे हैं। एक धर्म को मानने वालों को खुलेआम धमकी दी जा रही है।”
बुखारी ने कहा था कि हमें सजा इसलिए दी जा रही है क्योंकि हम मुसलमान हैं। यह सबको पता है कि ये सब चुनाव की वजह से कराया जा रहा है।