विष्णु मोहन
अभी तक गठबंधन का वकालत कर रही समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने गठबंधन से एकाएक इनकार कर नया शिगूफा छोड़ दिया है। मुलायम के इनकार को उनके सियासी दबाव के पैंतरे के तौर पर देखा जा रहा है। गठबंधन के मामले में आए इस नए पेच को समाजवादी पार्टी के आला नेताओं और यादव परिवार में पिछले एक अरसे से सतह पर आए सामंजस्यता के अभाव से जोड़ कर भी देखा जा रहा है।  बमुश्किल पांच दिन पहले आयोजित हुए सपा के रजत जयंती कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की वकालत करते हुए सूबे की सपा सरकार के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने गठबंधन होने की दशा में चुनाव में तीन सौ से अधिक सीटें हासिल होने की हुंकार भी भर दी थी। गुरुवार को मुलायम ने एकाएक पांच सौ और एक हजार के नोटों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फैसले पर असहमति जताते हुए जो बयान दिया, उसके साथ ही गठबंधन से सिरे से इनकार कर सबको चौंका दिया। वैसे भीगठबंधन के मुद्दे पर समाजवादी पार्टी का रवैया पहले से विवादग्रस्त रहा है। बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान भी पार्टी का यही रवैया रहा था। तब भी पार्टी ने ऐन मौके पर कदम पीछे खींच कर सहयोगी दलों को खासी असहज स्थिति में ला दिया था।बदले हालात में एक बार साथी दलों को मुलायम का यह पैंतरा उनकी दबाव की राजनीति के तौर पर देखा जा रहा है। जानकारों के मुताबिक महागठबंधन में जुट रहे विभिन्न दल जैसे जद (एकी), रालोद व राजद को बैकफुट पर जाने के लिए मजबूर कर मुलायम ने महागठबंधन होने की दशा में सहयोगी दलों द्वारा सीटों को लेकर किए जाने वाले दावों पर अभी से अंकुश लगा दिया है।
पाटी सूत्रों का कहना है एनसीआर व पश्चिमी उत्तर प्रदेश और पूर्वोत्तर की कई सीटों पर सहयोगी दल दावेदारी बनाते। ऐसे में पार्टी को कई सीटों पर समझौते के लिए मजबूर होना पड़ सकता था। अभी बहुत समय है और गठबंधन के मुद्दे पर फैसला बदल भी सकता है। मुलायम के इस एलान से अब (महागठबंधन बनने की दशा में) दबाव बनाने से पहले सहयोगी दलों को अपनी रणनीति पर पुनवर््िाचार करना होगा।

 

 

दूसरी तरफ सपा मुखिया के इस बयान को पार्टी आला कमान में चल रही आपसी सियासत के नए दांव के तौर पर भी देखा जा रहा है। एक बार फिर मुलायम ने अखिलेश के विरोध में बयान जारी कर दिया है। अखिलेश गठबंधन बनने पर बहुमत से जीत का दावा तक कर चुके हैं। गठबंधन की पैरवी वैसे शिवपाल यादव पिछले विधानसभा चुनाव के समय से कर रहे हैं। गठबंधन न बनने और विलय की दशा में माफिया से नेता बने मुख्तार अंसारी भी इसमें शामिल होंगे, जिनका अखिलेश यादव पहले से विरोध कर रहे हैं। मुलायम के नए पैंतरे की गहराई मापने की कोशिश में लगे विभिन्न राजनीतिक दल इसे परिवार की मौजूदा लड़ाई से भी जोड़ रहे हैं। माना जा रहा है कि उस नए फैसले के साथ ही मुलायम ने यह संदेश दे दिया है कि परिवार के साथ ही पार्टी के अहम फैसले उनकी मर्जी पर ही तय होंगे।