कलकत्ता हाई कोर्ट ने गुरुवार को पश्चिम बंगाल सरकार को निर्देश दिया कि वह राज्य में चुनाव के बाद हुई हिंसा के मामले में तैयार एनएचआरसी की रिपोर्ट पर हलफनामे के जरिये जवाब दाखिल करे। कोर्ट की पांच जजों की बेंच राज्य में विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद हुई हिंसा के खिलाफ दाखिल कई जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।

राज्य की ममता बनर्जी सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने दावा किया कि एनएचआरसी की रिपोर्ट में अनियमितता है और इसमें अपराध के उन आरोपों को शामिल किया है जो दो मई को पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजे आने से पहले के हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि रिपोर्ट में राजनीतिक पहलू की बू आ रही है। सिंघवी ने अदालत से कहा कि आयोग को स्वायत्त बताना हास्यास्पद है।

कोर्ट ने राज्य सरकार को 26 जुलाई तक हलफनामा दाखिल करने को कहा है। वहीं, इस मामले पर अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी। राज्य की ममता बनर्जी सरकार पर लगे आरोपों पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) की जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि राज्य में स्थिति ‘कानून के राज’ के बजाय ‘ राजा के राज’ जैसी है।

सात सदस्यीय समिति ने 13 जुलाई को हाई कोर्ट में अपनी रिपोर्ट जमा की, जिसमें अनुशंसा की गई है कि हत्या और दुष्कर्म जैसे गंभीर मामलों की जांच सीबीआई को सौंपी जानी चाहिए और इन मामलों की सुनवाई राज्य से बाहर होनी चाहिए।

एक याचिकाकर्ता का पक्ष रख रहे वरिष्ठ वकील महेश जेठमलानी ने अदालत के समक्ष कहा कि एनएचआरसी की रिपोर्ट पश्चिम बंगाल की कानून व्यवस्था की सही स्थिति को प्रतिबिंबित करती है। उन्होंने कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की बेंच से अनुरोध किया कि हत्या और दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराधों की जांच स्वतंत्र जांच एजेंसी को दी जाए ताकि निष्पक्ष जांच हो सके।

एनएचआरसी ने अपनी रिपोर्ट में राज्य में सत्तारूढ़ दल के समर्थकों द्वारा मुख्य विपक्षी पार्टी के लोगों पर ‘प्रतिशोधात्मक हिंसा’ की भी चर्चा की है। वहीं, एनएचआरसी की टिप्पणी की आलोचना करते हुए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आरोप लगाया कि भाजपा नीत केंद्र सरकार ‘‘ राजनीतिक हिसाब चुकता करने के लिए निष्पक्ष एजेंसियों का इस्तेमाल कर रही है और राज्य को बदनाम कर रही है।’’