ऐसा लगता है कि महाराष्ट्र में महायुती गठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के साथ शिवसेना और भाजपा की बढ़ती बेचैनी ने महाराष्ट्र में महायुति गठबंधन के भीतर राजनीतिक उथल-पुथल मचा दी है। इससे संकेत मिलता है कि तीन दलों के सत्तारूढ़ गठबंधन के भीतर सब कुछ ठीक नहीं है। राज्य में इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव भी होने वाले हैं।
NCP ने विरोध प्रदर्शन में लिया हिस्सा
हाल ही में उपमुख्यमंत्री अजित पवार की एनसीपी ने सिंधुदुर्ग जिले के मालवन तालुका के राजकोट में शिवाजी की मूर्ति के ढहने के खिलाफ एकतरफा विरोध करने का फैसला किया। अपनी सरकार के खिलाफ सड़क पर एनसीपी के विरोध प्रदर्शन ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस दोनों को असहज कर दिया।
सूत्रों ने कहा कि शिंदे, फडणवीस और अजित पवार को आगे आना चाहिए, सामूहिक जिम्मेदारी लेनी चाहिए और महाराष्ट्र के लोगों से माफी मांगनी चाहिए। हालांकि ऐसा करने के बजाय अजित पवार गुट ने मूर्ति गिरने के बाद सड़कों पर अपना विरोध प्रदर्शन करके सभी को आश्चर्यचकित कर दिया।
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एनसीपी सांसद और उसके प्रदेश अध्यक्ष सुनील तटकरे की सफाई ने कई लोगों को और नाराज कर दिया। सुनील तटकरे ने कहा, ”लोकतंत्र में हर किसी को आंदोलन करने का अधिकार है। शिवाजी की मूर्ति गिरने से जनभावनाएं आहत हुई हैं। हम दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग करते हैं।” हालांकि ऐसे संकेत हैं कि एनसीपी, जिसकी विचारधारा और राजनीति उसके वर्तमान सहयोगियों से अलग है, वह अपना रास्ता खुद बना रही है।
एक भाजपा नेता ने कहा, “पिछले महीने पुणे में आयोजित भाजपा सम्मेलन में एनसीपी (SP) प्रमुख शरद पवार के खिलाफ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की विवादास्पद टिप्पणी से खुद को दूर करने के अजित पवार और उनकी पार्टी के फैसले की क्या व्याख्या है?” अमित शाह ने शरद पवार को ‘भ्रष्टाचार का सरदार’ कहा था। इस बयान को अजित पवार और उनकी पार्टी ने अस्वीकार कर दिया था।
शनिवार को सीएम शिंदे ने अजित पवार के खिलाफ विवादास्पद टिप्पणी पर स्पष्टीकरण मांगने के लिए शिवसेना के कैबिनेट मंत्री तानाजी सावंत को बुलाया। कुछ दिन पहले तानाजी सावंत ने कहा था, ”अगर मैं एनसीपी के साथ कैबिनेट में बैठता हूं तो बाहर आकर उल्टी हो जाती है। मैं इसे बर्दाश्त नहीं कर सकता। जीवन भर हमारा एनसीपी से कभी तालमेल नहीं रहा।”
सीटों का बंटवारा शिवसेना और बीजेपी के मन में
राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार शिवसेना की एनसीपी की बढ़ती आलोचना उसे गठबंधन से बाहर करने के लिए मजबूर करने की एक चाल हो सकती है। महायुति के एक नेता ने कहा, ”यह समझाना मुश्किल नहीं है कि हर पार्टी इस तरह का व्यवहार क्यों कर रही है। जब सरकार चलाने की बात आती है, तो मतभेदों के बावजूद गठबंधन काम करता है, लेकिन जब चुनावी राजनीति की बात आती है, तो हर पार्टी अधिक सीटों के लिए प्रयास करेगी।”
विधानसभा में 288 सीटों पर चुनाव होना है और सीटों का बंटवारा एक चुनौती है। सूत्रों ने कहा कि जब आपको किसी तीसरे साथी को समायोजित करना होता है, तो यह भीड़ बन जाती है। खासकर जब इस मामले में तीसरा साथी एनसीपी है, जिसका लोकसभा में प्रदर्शन खराब था। सूत्र ने कहा कि एनसीपी ने चार सीटों पर चुनाव लड़ा, केवल एक पर जीत हासिल की और यहां तक कि वह अपना गृह क्षेत्र बारामती भी हार गई। इसके अलावा गठबंधन सहयोगियों के भीतर भाजपा और एनसीपी दोनों की तुलना में, लोकसभा चुनावों में शिवसेना का स्ट्राइक रेट काफी बेहतर था। उसने 15 सीटों पर चुनाव लड़ा था, उनमें से 7 पर जीत हासिल की थी। भाजपा ने 28 सीटों पर चुनाव लड़ा और 9 पर जीत हासिल की।
भाजपा विधानसभा चुनावों के लिए अपने सच्चे और भरोसेमंद वोट बैंक, आरएसएस और उसके फ्रंटल संगठनों की ओर लौट आई है। फडणवीस के नेतृत्व में भाजपा आरएसएस की मदद से चुनौतियों पर काबू पाने के लिए अतिरिक्त प्रयास कर रही है।
एक साल के भीतर यह स्पष्ट हो गया है कि एनसीपी पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। एनसीपी के साथ गठबंधन करने के बाद बीजेपी नेताओं के सामने मुश्किल हालात हैं और पार्टी के सदस्य खुलकर अपनी राय रख रहे हैं। बीजेपी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा, “बीजेपी और एनसीपी के बीच गठबंधन से किसी को मदद नहीं मिली है। इससे न तो उन्हें एक-दूसरे के वोट ट्रांसफर करने में मदद मिली और न ही सीटें जीतने में। शरद पवार के नेतृत्व को ख़त्म करने का घोषित उद्देश्य भी अधूरा रह गया।”
शरद पवार को मिली सहानुभूति
इसके अलावा एनसीपी के भीतर विभाजन से शरद पवार को सहानुभूति मिलने और उन्हें मजबूत बनाने का लाभ मिला। इसने भाजपा और एनसीपी (अजित पवार गुट) दोनों को बचाव की मुद्रा में ला दिया है। आधिकारिक तौर पर बीजेपी नेताओं का कहना है कि महायुति बरकरार रहेगी। प्रदेश भाजपा प्रमुख चंद्रशेखर बावनकुले ने कहा, ”भाजपा, शिवसेना और एनसीपी सरकार में गठबंधन सहयोगी हैं। हम महायुति के रूप में एक साथ चुनाव में उतरेंगे।”
भाजपा के वरिष्ठ नेता हर्षवर्द्धन पाटिल ने शनिवार को कहा, ”अगर एनसीपी इंदापुर सीट से अपना उम्मीदवार उतारने पर जोर देती है तो मुझे विकल्प तलाशना होगा।” पूर्व मंत्री हर्षवर्द्धन पाटिल (पुणे जिले की इंदापुर सीट से चुनाव लड़ना चाहता हैं) शरद पवार के साथ मेलजोल बढ़ा रहे हैं। जिस बात ने हर्षवर्द्धन पाटिल को नाराज कर दिया है, वह इंदापुर सीट के लिए मौजूदा विधायक दत्तात्रेय को एकतरफा उम्मीदवार घोषित करने का अजित पवार का फैसला है।
हर्षवर्द्धन पाटिल ने कहा, ”जब आप गठबंधन में हों तो यह सामूहिक फैसला होना चाहिए। क्या अजित पवार एनसीपी अपवाद हैं? मैं ये मामले उठाना चाहता हूं, लेकिन बीजेपी नेता व्यस्त हैं।” अजित पवार के खिलाफ बीजेपी के अंदर सुगबुगाहट जारी है और जोर पकड़ रही है। महायुति के भीतर एक वर्ग ने खुलासा किया, “2014 में अविभाजित शिवसेना और भाजपा अलग हो गए क्योंकि केवल तीन सीटों के लिए विवाद था। बीजेपी शिवसेना को 147 सीटें देने पर राजी हो गई, जबकि उद्धव ठाकरे 150 सीटें चाहते थे। उन्होंने अपना गठबंधन तोड़ दिया और अलग चुनाव लड़ा।”