Maharashtra Vidhansabha Chunav: महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। महाराष्ट्र की सभी 288 विधानसभा सीटों पर 20 नवंबर को वोट डाले जाएंगे। महाविकास आघाड़ी में मुख्य रूप से कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (शरद पवार) शामिल है। समाजवादी पार्टी भी महाविकास आघाड़ी से 5 सीटें मांग रही है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने साफ कह दिया कि हमारी गठबंधन को लेकर बातचीत चल रही है लेकिन अगर हमें सीटें नहीं मिलती है तो हम चुनाव लड़ेंगे। अखिलेश यादव ने साफ कहा कि राजनीति में कुर्बानी की कोई जगह नहीं है। उन्होंने साफ कहा, जहां पर हम मजबूत हैं, वहां पर हम चुनाव लड़ेंगे और इंडिया गठबंधन को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे।

क्या कांग्रेस के रवैये से परेशान ‘INDIA’?

इस बीच सपा के महाराष्ट्र अध्यक्ष अबू आसिम आजमी ने कहा है कि महाविकास आघाड़ी में समाजवादी पार्टी को दो सीटें मिली हैं। एक मानखुर्द शिवाजी नगर है और दूसरी भिवंडी पूर्व है। लेकिन अब बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि जिस प्रकार से समाजवादी पार्टी को आखिरी समय तक सीट के लिए बारगेनिंग करनी पड़ी, क्या यह कांग्रेस का रवैया सही है।

हरियाणा-मध्य प्रदेश में भी सपा को नहीं मिली सीटें

अगर हम देखें तो इससे पहले मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव और हरियाणा विधानसभा चुनाव में भी अखिलेश यादव ने कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ना चाहा था, लेकिन उन्हें सीटें नहीं मिली थी। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान तो तत्कालीन कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने सपा मुखिया से जुड़े एक सवाल पर कह दिया था छोड़ो भाई, कौन अखिलेश वाख़िलेश। बाद में गठबंधन के तहत सपा को एक भी सीट नहीं मिली थी।

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वहीं जब पिछले महीने हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुए, उस दौरान भी सपा ने अहीरवाल बेल्ट में कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ना चाहा था, लेकिन एक भी सीट सपा को कांग्रेस ने नहीं दी। अब बड़ा सवाल यह उठता है कि जहां पर कांग्रेस मजबूत है, वहां पर ये क्षेत्रीय दलों को तो सीटें नहीं देते हैं या जबरदस्त बारगेनिंग करते हैं जैसा महाराष्ट्र में किया। लेकिन जहां पर कांग्रेस कमजोर है, वहां पर पार्टी चाहती है कि उसे क्षेत्रीय दल एडजस्ट करें। इसका सबसे बड़ा उदाहरण उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु है।

यूपी में सपा ने कांग्रेस को दिया सहारा

अब हम बात उत्तर प्रदेश की करते हैं। कभी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का एकछत्र राज हुआ करता था। 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी 66 सीटों पर लड़ी और केवल दो सीटें ही जीत पाई। पार्टी का वोट शेयर गिरकर 7.50 फीसदी हो गया। यह कांग्रेस के लिए बड़ा झटका था। वहीं 2019 लोकसभा चुनाव की बात करें तो इस दौरान भी कांग्रेस और सपा के बीच गठबंधन नहीं हो पाया और कांग्रेस ने 67 सीटों पर चुनाव लड़ा। लेकिन इस बार कांग्रेस के हाथ से अमेठी भी निकल गया और उसे केवल रायबरेली में जीत मिली। कांग्रेस पार्टी का वोट शेयर गिरकर 6.36 फीसदी भी हो गया।

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अब बात 2022 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की करते हैं। इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी 399 सीटों पर चुनाव लड़ी और उसे केवल दो विधानसभा सीटों पर जीत हासिल हुई। कांग्रेस का वोट शेयर गिरकर 2.33 फीसदी हो गया। यानी कांग्रेस के अस्तित्व पर ही संकट आ गया। जब कांग्रेस के अस्तित्व पर संकट आया तो इसके बड़े नेताओं ने सपा से बात करनी शुरू की। इसके बाद अखिलेश यादव ने दरियादिली दिखाते हुए 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को 17 लोकसभा सीटें दे दी। कांग्रेस ने 6 सीटें जीत ली और पार्टी का वोट शेयर भी 9.46 फीसदी हो गया। यानी अगर चारों चुनाव को कंपेयर करें तो साफ दिखता है कि सपा के साथ आने के बाद कांग्रेस उत्तर प्रदेश में मजबूत हुई।

तमिलनाडु में DMK ने थामा हाथ

अब बात तमिलनाडु की करते हैं, जहां पर 39 लोकसभा सीटें हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में तमिलनाडु में कांग्रेस ने अकेले चुनाव लड़ा और उसे एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं हुई। पार्टी का वोट शेयर 4.37 फीसदी रहा है। इसके बाद 2019 का लोकसभा चुनाव आया, जहां पर कांग्रेस ने डीएमके के साथ गठबंधन किया। गठबंधन के तहत कांग्रेस को 9 सीटें मिली और उसने 8 पर जीत दर्ज कर ली। पार्टी का वोट शेयर भी 12.72 फीसदी हो गया। वहीं 2024 के लोकसभा चुनाव में डीएमके ने कांग्रेस को फिर से 9 सीटें दी और उसने सभी 9 सीटों पर जीत दर्ज कर ली। पार्टी का वोट शेयर 10.67 फीसदी भी रहा। यानी तमिलनाडु में भी कांग्रेस को खड़ा होने में डीएमके ने अहम भूमिका निभाई।

इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि कांग्रेस जहां भी कमजोर होती है, क्षेत्रीय दल उसे सम्मानजनक सीटें देते हैं और खड़ा होने में मदद करते हैं। लेकिन हरियाणा, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में कांग्रेस ने अपने सहयोगियों के साथ वैसा सलूक नहीं किया, जैसा क्षत्रिय दलों ने उसके साथ किया।