लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस पार्टी ‘इंडिया गठबंधन’ के तहत सीट शेयरिंग के फोर्मूले को कारगर बनाने में जुटी है। लेकिन अब तक हुए समझौते से यह साफ नज़र आता है कि क्षेत्रीय दल कांग्रेस पर काफी प्रभावी रहे हैं। बिहार से लेकर महाराष्ट्र और तमिलनाडु से लेकर उत्तर प्रदेश तक क्षेत्रीय दल अब तक अपनी बात मनवाने या सीट शेयरिंग के समझौते पर कांग्रेस के ऊपर दबाव डालने में कामयाब हुए हैं। माना जाता है कि कांग्रेस दबाव में इसलिए भी है कि पार्टी इन खास राज्यों में अकेले अपने दम पर चुनाव नहीं लड़ना चाहती थी।

कांग्रेस के सामने क्या मुश्किल है?

बिहार की 40 लोकसभा सीटों पर कांग्रेस और राजद के बीच सहमति बन गई है। लेकिन यहां भी कांग्रेस को उतनी सीटें नहीं मिली जितनी कांग्रेस चाहती थी। सबसे ज़्यादा चर्चा पूर्णिया सीट को लेकर थी जहां कांग्रेस की ओर से पप्पू यादव का नाम फाइनल माना जा रहा था। लेकिन राजद ने यह सीट अपने हिस्से में शामिल कर ली। पप्पू यादव ने हाल ही में अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में कर दिया था। पप्पू यादव ने पूर्णिया के अलावा जिस सुपौल सीट को अपनी नज़र में रखा था उसे भी राजद के हिस्से में देखा गया है।

इसके अलावा चर्चा बेगूसराय सीट की भी है। जहां 2019 में सीपीआई उम्मीदवार के तौर पर कन्हैया कुमार मैदान में थे। कांग्रेस को उम्मीद थी कि 2021 में पार्टी में शामिल हुए कन्हैया कुमार को यह सीट मिल जाएगी, लेकिन राजद अपने गठजोड़ से इस सीट को एक बार फिर सीपीआई को दे दिया।

राजद ने कांग्रेस को औरंगाबाद सीट भी देने से इनकार कर दिया, जहां वह पूर्व राज्यपाल और वरिष्ठ नेता निखिल कुमार को मैदान में उतारना चाहती थी। 2019 में राजद ने यह सीट जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा को दे दी थी, जो अब भाजपा के पास है। इस दौरान कांग्रेस के लंबी वार्ताओं के बाद सिर्फ 9 सीटें हासिल कर पाने में कामयाब रही। तमिलनाडु में भी कांग्रेस का डीएमके के साथ समझौता बहुत कारगर नहीं दिखाई दिया।

महाराष्ट्र में क्या हाल?

महाराष्ट्र में कांग्रेस अभी भी शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (शरद पवार) के साथ उलझी हुई है। दोनों दल कांग्रेस द्वारा मांगी गई कम से कम चार सीटें – सांगली, भिवंडी, मुंबई दक्षिण मध्य और मुंबई उत्तर पश्चिम देने को तैयार नहीं है।

महाराष्ट्र में कांग्रेस अभी भी शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (शरद पवार) के साथ उलझी हुई है। कोई भी क्षेत्रीय साझेदार कांग्रेस द्वारा मांगी गई कम से कम चार सीटें – सांगली, भिवंडी, मुंबई दक्षिण मध्य और मुंबई उत्तर पश्चिम – देने को तैयार नहीं है। शिवसेना (यूबीटी) ने पहले ही सांगली और मुंबई साउथ सेंट्रल के लिए अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। कांग्रेस पार्टी के एक नेता का कहना है कि पार्टी क्षेत्रीय दलों को नाराज नहीं करना चाहती इसलिए समझौता बहुत सोच समझ कर करना पड़ रहा है।

उत्तर प्रदेश में कहने को सीट बंटवारा हो गया है लेकिन समाजवादी पार्टी यहां कांग्रेस पर दबाव बनाने में कामयाब रही है। यहां कांग्रेस फर्रुखाबाद, भदोही, लखीमपुर खीरी, श्रावस्ती और जालौन सीट चाहती थी लेकिन पार्टी को यह सीटें नहीं मिल सकी हैं।