INDIA vs NDA Alliance: लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Elections 2024) को लेकर चुनाव आयोग (Election Commission) द्वारा घोषित कार्यक्रम के अनुसार पहले फेज की वोटिंग 19 अप्रैल को होगी, जिसमें अब महज दो हफ्तों से भी कम का वक्त बचा है। ऐसे में बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) का तूफानी चुनाव प्रचार जारी है। पीएम मोदी राजस्थान से लेकर बिहार, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में धुआंधार रैलियां और रोड शो कर रहे हैं लेकिन इंडिया गठबंधन की स्थिति बीजेपी के चुनावी प्रचार के उलट है, जिसके चलते सवाल उठ रहे हैं कि आखिर इंडिया गठबंधन कहां गायब है?
दरअसल, लोकसभा चुनाव 2024 के पहले फेज में 19 अप्रैल को वोटिंग होनी है सियासी दलों का चुनाव प्रचार जारी है लेकिन विपक्षी दल जिस एक जुटता की बात कर रहे थे, वह कम-से-कम जमीन पर तो दिखाई नहीं दे रही है। पश्चिमी यूपी विपक्षी दलों के लिए बेहद अहम है, पिछली बार इसी शुरुआती फेज की सीटों पर बीजेपी को करारा झटका लगा था लेकिन इस बार विपक्ष यहां पूरी तरह बिखरा नजर आ रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बार पश्चिमी यूपी को खास महत्व दे रहे हैं। सहारनपुर से लेकर मेरठ में इसके चलते ही उन्होंने ताबड़तोड़ रैलियां की हैं। शनिवार को उन्होंने यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के साथ गाजियाबाद में एक रोड शो किया था। इतना ही नहीं, अगले दस दिनों में पश्चिम उत्तर प्रदेश में पीएम के कई कार्यक्रम हैं। दूसरी ओर पीडीए गठबंधन के तहत एक साथ चुनाव लड़ने वाली समाजवादी पार्टी और कांग्रेस की साझा रैलियां फिलहाल होती नहीं दिख रही हैं।
यूपी में NDA एक जुट, PDA नदारद!
खास बात यह है कि पीएम मोदी की रैलियों और रोड शोज में पूरा गठबंधन एक साथ दिखता है। उनके कार्यक्रम में बीजेपी के अलावा रालोद से लेकर अपना दल और सुभासपा के नेता भी दिखते हैं लेकिन समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव की रैली में कांग्रेस को प्रदेश स्तर तक के नेता नहीं दिखते हैं। इतना ही नहीं, यूपी में 2017 के दौरान अखिलेश यादव और राहुल गांधी का जो साथ दिखा था, इस बार फिलहाल अभी ऐसी तस्वीर नहीं है। दोनों आखिरी बार भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान साथ नजर आए थे।
अखिलेश का चुनाव प्रचार सुस्त, मायावती गायब
विपक्षी दलों के चुनाव प्रचार को देखें तो यह बेहद ही सुस्त रफ्तार वाला है, जबकि अभी तो चुनाव शुरू भी हुआ है। समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव की बात करें तो पिछले एक हफ्ते में वे केवल दो ही सार्वजनिक मंचों में नजर आए। उन्होंने 31 मार्च को दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के खिलाफ जारी एक रैली में हिस्सा लिया था और उसके बाद लखनऊ में एक जनसभा की थी, बस… इसके अलावा अखिलेश का चुनावी कैंपेन काफी धीमा लग रहा है। वहीं पूर्व सीएम मायावती की बात करें तो उन्होंने बीएसपी के चुनाव प्रचार के लिए अभी तक एक भी जनसभा नहीं की है।
कांग्रेस का अलग चल रहा प्रचार
कांग्रेस पार्टी अपनी रैलियां दिल्ली से राजस्थान में कर रही है लेकिन अन्य राज्यों में पार्टी के प्रचार की रफ्तार सुस्त दिख रही है। इसकी वजह यह है कि दिल्ली में सीएम अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद से राज्य में पार्टी का जमीना कार्यकर्ता संकोच में है। इसके अलावा बिहार की बात करें तो बिहार में आरजेडी जमकर चुनाव प्रचार कर रही है लेकिन उनकी भी राहुल या मल्लिकार्जुन खड़गे साथ में चुनाव प्रचार करते नहीं दिख रहे हैं।
बंगाल और महाराष्ट्र में कैसा है हाल?
पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तूफानी तरीके से प्रचार कर रही हैं लेकिन उन्होंने कांग्रेस से गठबंधन किया ही नहीं है। ममता यहां कांग्रेस पर भी जमकर हमला बोल रही है, दिलचस्प बात यही है कि यही ममता, दिल्ली में हुई इंडिया गठबंधन की आप द्वारा आयोजित रैली में प्रतिनिधि के तौर पर सांसद डेरेक ओ ब्रायन और सागरिका घोष को भेज चुकी है। इसके अलावा महाराष्ट्र में चुनावी प्रचार से इतर अभी इंडिया गठबंधन सीट शेयरिंग तक पर माथापच्ची कर रहा है, जबकि वहां भी सीएम एकनाथ शिंदे से लेकर डिप्टी सीएम देंवेंद्र फडणवीस जमकर चुनाव प्रचार कर रहे हैं।
बिखरा हुआ चुनाव प्रचार
इंडिया गठबंधन से जब बिहार के सीएम नीतीश कुमार बाहर निकले थे, उससे पहले ही विपक्षी दलों के नेताओं ने यह कहा था कि अब विपक्षी दल जल्द ही साथ में रैलियां करेंगे और बीजेपी के खिलाफ आक्रामक कैंपेन शुरू होगा। इसके लिए पहले 31 जनवरी की डेट भी रखी गई थी। इसी दौरान सीट शेयरिंग को लेकर काफी विवाद हुआ और राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ो न्याय यात्रा पर निकल गए। ऐसे में इंडिया गठबंधन की पहली बड़ी रैली तब हुई जब राहुल की भारत जोड़ो न्याय यात्रा मार्च में खत्म हुई। इसके बाद दूसरी बड़ी रैली अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के विरोध में 31 मार्च को हुई थी। इसके बाद से विपक्षी दलों की कोई साझा बड़ी रैली नहीं हुई है।
विपक्षी दल अकेले-अकेले प्रचार कर रहे हैं लेकिन पश्चिम बंगाल को छोड़ दें तो किसी भी राज्य में विपक्षी दलों का कोई आक्रामक प्रचार नहीं दिखता है, जो यह सवाल उठाता है कि आखिर ये इंडिया गठबंधन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी की हाई लेवल इलेक्शन मशीनरी की सामना कैसे कर पाएगा?