भूमि विधेयक के खिलाफ राहुल गांधी की मुहिम के पीछे राजनीतिक अवसरवाद होने का आरोप लगाते हुए सरकार ने अपनी उम्मीदें इस विधेयक पर संसद की संयुक्त समिति में आम सहमति बनने पर टिका रखी हैं। साथ ही उसने दावा किया है कि केवल कांग्रेस ही 2013 के विधेयक में कोई संशोधन न करने पर जोर दे रही है। ग्रामीण विकास मंत्री चौधरी बिरेंद्र सिंह ने पत्रकारों से बातचीत में इस पर भी जोर दिया कि 2013 के कानून को व्यावहारिक बनाने के लिए इसमें संशोधन जरूरी थे। वजह तत्कालीन यूपीए सरकार ने 2014 के लोकसभा चुनावों को देखते हुए इसे जल्दबाजी में पारित किया था।
मंत्री ने भाजपा सांसद एसएस आहलुवालिया की अध्यक्षता वाली समिति के माध्यम से किसानों के हितों में दिए गए बेहतर सुझावों को स्वीकार करने के लिए सकारात्मक रुख जताया। केंद्रीय मंत्री का यह बयान भूमि अधिग्रहण विधेयक में एक नया खंड शामिल किए जाने पर विपक्ष को शांत करने की सरकार की कोशिश की पृष्ठभूमि में आया है। इस नए खंड के तहत राज्य सरकारों को कानून के कार्यान्वयन के दौरान सहमति के उपबंध के व सामाजिक प्रभाव के आकलन के प्रावधान मिल जाते हैं।
इस विधेयक को लेकर चल रहे गतिरोध को दूर करने के प्रयास के तहत मंत्रिमंडल ने पिछले हफ्ते यह प्रावधान जोड़ने का फैसला किया ताकि राज्य अपने कानून बनाएं और पारित कर सकें। बहरहाल कांग्रेस और कुछ अन्य दलों ने इस कदम को एक नए तरह का षड्यंत्र बताया है। सिंह से पूछा गया था कि एक ही मुद्दे पर एक केंद्रीय कानून होने के बावजूद उसी मुद्दे पर अलग-अलग राज्यों के विधेयकों को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी कैसे मंजूरी दे सकते हैं और क्या सरकार का विचार ‘ओवरलैपिंग’ की राह में नहीं बढ़ेगा। इस पर मंत्री ने कहा कि ऐसे उदाहरण हैं।
सिंह ने कहा- नहीं, यह ओवरलैपिंग के बारे में नहीं है। समवर्ती सूची के दायरे में आने वाले मुद्दों पर किसी भी केंद्रीय विधेयक में राज्य कुछ सुधार ला सकते हैं। यह किया गया है। राष्ट्रपति उनके कानूनों को मंजूरी देते हैं। ऐसे कई उदाहरण हैं जब ऐसा हुआ है। ऐसे कई कानून हैं। केंद्रीय मंत्री ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए उनके पास केवल प्रस्ताव भेजेगी। उन्होंने कहा, इसके अलावा राष्ट्रपति की मंजूरी हमारे माध्यम से मिलेगी। राज्य सरकार का कानून संबद्ध मंत्रालय के माध्यम से राष्ट्रपति के पास जाता है। बेशक राष्ट्रपति ‘फाइनल अथॉरिटी’ हैं। विभिन्न राज्यों में विशेष हालात भी हो सकते हैं। अगर कोई प्रावधान राज्य के हित में है तो राष्ट्रपति मंजूरी देते हैं।
यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें उम्मीद है कि विधेयक मानसून सत्र के दौरान पारित हो जाएगा, सिंह ने सीधा जवाब देने से बचने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि यह संसद की संयुक्त समिति की रिपोर्ट पर निर्भर करता है। मुझे लगता है कि यह रिपोर्ट तीन अगस्त तक आएगी क्योंकि समिति को तब तक का विस्तार दिया गया है। अगर इस रिपोर्ट पर आम सहमति और एक राय होती है तो मुझे लगता है कि विधेयक पारित हो जाएगा।
सपा के सरकार को तेवर दिखाए जाने के संकेतों के बीच मंत्री ने इशारा किया कि कांग्रेस को छोड़ कर अन्य दल किसी भी संशोधन को नकार नहीं रहे हैं। सिंह ने कहा- मुझे लगता है कि अन्य दलों को विधेयक में कुछ चीजों के खिलाफ भले ही कुछ आपत्तियां होंगी। लेकिन वे यह नहीं कर रहे हैं कि 2013 के कानून में कोई संशोधन न लाएं। यह सोच केवल कांग्रेस पार्टी की ही है। उन्होंने इस सवाल का जवाब भी टाल दिया कि आम सहमति न बनने की स्थिति में क्या सरकार चौथी बार भूमि अध्यादेश जारी करेगी। उन्होंने कहा, हम यह बाद में देखेंगे। अध्यादेश के लिए अब भी समय है।
ऐसे भी संकेत हैं कि समिति में कुछ और समय तक विचारविमर्श चल सकता है क्योंकि सरकार के राजनीतिक रूप से अहम बिहार राज्य में विधानसभा चुनावों से पहले विधेयक को आगे बढ़ाने की संभावना नहीं है। ग्रामीण विकास मंत्री ने कहा कि अगर समिति के माध्यम से किसानों के हित में जो भी अच्छे सुझाव आते हैं, तो सरकार निश्चित रूप से उन्हें लागू करने की कोशिश करेगी। सिंह ने कहा-लेकिन हम चाहते हैं कि अधिग्रहण के लिए प्रक्रिया तेज की जाए। यह हमारी मुख्य चिंता है।
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को निशाना बनाते हुए मंत्री ने कहा कि राहुल गांधी के इन बयानों का कोई मतलब नहीं है कि हम एक इंच भूमि भी नहीं लेने देंगे। यह केवल राजनीतिक भाषण हो सकता है। हमारे विधेयक का उद्देश्य 2013 के विधेयक को व्यावहारिक बनाना है। अगर किसानों को उस विधेयक से कोई लाभ देना है तो उसकी कुछ खामियों को दूर करना होगा। अगर कोई परिवर्तन नहीं होता है तो कानून अव्यावहारिक ही रहेगा। इसलिए ऐसी बातें करना लोकतांत्रिक मानकों के अनुरूप नहीं है। जब राहुल यह कहते हैं तो उनकी लोकतंत्र के बारे में समझ में कुछ कमी लगती है।
मंत्री ने कहा कि कांग्रेस ने 50 साल से अधिक समय तक 1894 के भूमि अधिग्रहण कानून को यथावत रखा जबकि उसमें कई खामियां थीं। उन्होंने कहा कि जब 2013 में उन्होंने नया कानून बनाया तो बहुत जल्दबाजी में बनाया। इसका मकसद पुराने कानून की खामियां दूर करना नहीं था बल्कि यह 2014 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए राजनीतिक कारणों के कारण लाया गया था।