लोकसभा चुनाव से ठीक पहले आ रहे ओपनियन पोल्स और सर्वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी की तीसरी बार पूर्ण बहुमत की प्रचंड जीत का दावा कर रहे हैं। ऐसे में विपक्षी दलों से लगातार नेताओं का रेला निकलकर अपने लिए बीजेपी में अवसर तलाश रहा है। हाल में ही में कांग्रेस के कई बड़े नेता बीजेपी और एनडीए में जा चुके हैं। इसमें मिलिंद देवड़ा, अशोक चव्हाण, बाबा सिद्दकी और अशोक तंवर जैसे बड़े नाम भी हैं। ऐसे में अचानक शनिवार को एक नाम और चलने लगा जो कि मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम कमलनाथ का है। दावा किया जाने लगा कि कमलनाथ अपने बेटे और छिंदवाड़ा लोकसभा सांसद नकुलनाथ के साथ बीजेपी से हाथ मिला सकते हैं लेकिन लगभग अभी तक इसमें कोई डेवेलपमेंट नहीं आया है जो यह सवाल उठा रहा है कि यह सब क्या कमलनाथ की किसी रणनीति का हिस्सा है?
शनिवार को जब कमलनाथ के बीजेपी में शामिल होने के कयासों की खबरें चल रही थीं तो उनके करीबी सज्जन सिंह वर्मा मीडिया के सामने आए थे और दावा किया था कि कमलनाथ का लगातार अपमान किया जा रहा है और उनकी अनदेखी हो रही है। इसलिए वे कोई भी बड़ा फैसला ले सकते हैं। ANI से बातचीत में सज्जन सिंह वर्मा ने कहा था, “राजनीति के भीतर मान, अपमान और स्वाभिमान काम करता है, जब इन पर कभी चोट पड़ती है तो मनुष्य अपने जीवन के निर्णय तो बदलता है। भारतवर्ष में राजनीति का घटनाक्रम जिस तेजी से बदल रहा है… एक इतना शीर्ष राजनेता, जिसने जीवन के 45 वर्ष में देश के लिए बहुत कुछ किया है… इतना बड़ा नेता जब अपने दल से अलग हटकर जाने का विचार करता है तो इसके पीछे ये तीन फैक्टर काम करते हैं।”
सज्जन सिंह वर्मा कोई छोटे-मोटे नेता नहीं है बल्कि पूर्व में कांग्रेस पार्टी के लोकसभा सांसद रह चुके हैं और कमलनाथ के काफी करीबी हैं। ऐसे में उनके इस बयान से कमलनाथ के बीजेपी में जाने के कयास काफी पुख्ता होने लगे थे। कमलनाथ से भी जब दिल्ली पहुंचने पर पूछा गया तो उनका कहना था कि अभी ऐसा कुछ भी तय नहीं है। कमलनाथ चाहते तो इस पर सीधा खारिज करने वाली बात कर सकते थे लेकिन उनका यह बयान बता रहा था कि दाल में कुछ तो काला है।
कमलनाथ से कांग्रेस ने किया किनारा
कमलनाथ के हालिया रवैए की बात करें तो उन्हें पार्टी में दरकिनार सा कर दिया गया था। कमलनाथ को राज्यसभा की सीट तक नहीं दी गई। हाल में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की हार का ठीकरा भी कमलनाथ के सिर पर ही फोड़ा गया। नतीजा ये कि उनसे प्रदेश अध्यक्ष का पद उनसे छीन कर जीतू पटवारी को दे दिया गया था। इन सबके बीच उनके कांग्रेस छोड़ बीजेपी में जाने की हवा चलने लगी।
बीजेपी ने नहीं दिखाई दिलचस्पी?
दूसरी ओर बीजेपी ने इसको लेकर कुछ खास सक्रियता अभी तक नहीं दिखाई। मध्य प्रदेश से लेकर दिल्ली तक हाई कमान तक का रुख कमलनाथ के बीजेपी में आने को लेकर कुछ स्पष्ट नहीं हुआ। इस बीच बीजेपी दिल्ली के नेता तेजिंदर पाल सिंह बग्गा का बयान आया कि उनकी पार्टी के कई बड़े पदाधिकारियों से बात हुई है और यह तय है कि बीजेपी किसी भी कीमत पर कमलनाथ को पार्टी में शामिल नहीं करेगी। बग्गा का यह बयान आना बताता है कि बीजेपी शायद कमलनाथ को पार्टी में शामिल करने में असहज रही है क्योंकि कमलनाथ का राजनीतिक रसूख छिंदवाड़ा और आस-पास तो हो सकता है लेकिन उनका कोई बड़ा जनाधार नहीं है, वरना कांग्रेस की मध्य प्रदेश में इतनी खराब हालत नहीं होती।
इसके अलावा बीजेपी ने जिस कांग्रेस पार्टी के खिलाफ देश भर में राजनीति की है, कमलनाथ उसी कांग्रेस पार्टी की टॉप मोस्ट लीडरशिप का हिस्सा रहे हैं। ऐसे में अगर कमलनाथ बीजेपी में आते हैं तो पार्टी के लिए जमीनी स्तर पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं के लिए यह असहज हो सकता है। इसका असर न केवल मध्य प्रदेश बल्कि उत्तर प्रदेश और नॉर्थ इंडिया के कुछ राज्यों में भी दिख सकता है। शायद यहीं कारण है कि पार्टी ने कमलनाथ को शामिल करने को लेकर कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई है।
अचानक बदला कमलनाथ का मन?
एक खास बात यह है कि शनिवार को जो कमलनाथ के करीबी सज्जन सिंह वर्मा अपने बयानों से कमलनाथ के बीजेपी में जाने के गुब्बारों में हवा भर रहे थे, उन्हीं ने रविवार खत्म होते होते दावा किया कि उनकी मुलाकात कमलनाथ से हो गई है और वे किसी भी कीमत पर कांग्रेस नहीं छोड़ने वाले हैं। वर्मा ने कमलनाथ के हवाले से कहा कि उन्होंने बीजेपी में जाने का कोई मन नहीं बनाया है और न ही कोई पहल की है। बकौल वर्मा कमलनाथ ने कहा है कि मीडिया द्वारा चलाई जा रही खबरें फर्जी हैं। जब जाने की चर्चा हुई तब भी सज्जन सिंह वर्मा सामने आए थे और 40 घंटे बाद जाने की खबरें ठंडी पड़ीं तो कमलनाथ का संदेश प्रसारित करने में अहम भूमिका सज्जन सिंह वर्मा की ही रही। ऐसे में सवाल उठ रहा कि क्या अचानक कमलनाथ का मन बदला है या फिर उनकी किसी रणनीति का हिस्सा है।
बीजेपी ने लिया नहीं या कांग्रेस पर बन गया दबाव?
सवाल उठने लगें हैं कि क्या कांग्रेस पार्टी द्वारा साइडलाइन होने के चलते कमलनाथ ने पार्टी पर दबाव बनाने के लिए बीजेपी में जाने का शिगूफा छोड़ा था। कमलनाथ के बीजेपी में जाने की खबरों के बाद से ही कांग्रेस पूरे एक्टिव मोड में नजर आई। दिग्विजय सिंह से लेकर जयराम रमेश स्तर तक के नेता डैमेज कंट्रोल करते नजर आए थे। खुद जीतू पटवारी ने इन सारी खबरों को खारिज किया था। इसके अलावा यह भी सवाल उठ रहे हैं कि कहीं दबाव बनाने की कोशिश में उनका दांव कहीं उल्टा तो नहीं पड़ गया क्योंकि बीजेपी ने भी उन्हें अपने पाले में लाने के लिए कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। अगर ये कयास पुख्ता होते हैं तो भी कमलनाथ को झटका लग सकता है क्योंकि जब उन्हें बीजेपी लेने को बेरुखी दिखा रही और कांग्रेस में उनकी प्रासंगिकता खत्म हो रही है, तो यह घटनाक्रम उनके सियासी पतन की एक अहम कड़ी भी हो सकता है।