जस्टिस यशवंत वर्मा को हटाने की प्रक्रिया जल्द ही लोकसभा में शुरू की जाएगी। इंडियन एक्सप्रेस को मिली जानकारी के अनुसार लोकसभा स्पीकर ओम बिरला जल्द ही एक वैधानिक समिति के गठन की घोषणा कर सकते हैं। समिति उन आधारों की जांच करेगी, जिन पर जस्टिस को हटाने की मांग की गई है। ओम बिरला और राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने बुधवार को दोनों सदनों के महासचिवों के साथ बैठक की और अधिकारियों ने प्रक्रिया को अंतिम रूप देने के तौर-तरीकों पर चर्चा की। बाद में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी बैठक में शामिल हुए।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

यह चर्चा उस दिन हुई जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह जस्टिस वर्मा की उस याचिका पर सुनवाई के लिए एक पीठ का गठन करेगा जिसमें आंतरिक जांच समिति की कानूनी वैलेडिटी को चुनौती दी गई है। इसी समिति ने दिल्ली स्थित जस्टिस वर्मा के आधिकारिक आवास से बेहिसाब नकदी बरामद होने के आरोपों की पुष्टि की थी। इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार जस्टिस वर्मा पर विपक्ष के नोटिस को स्वीकार करने के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के फैसले से सरकार नाराज हो गई थी। सरकारी सूत्रों ने बताया कि इससे भ्रम पैदा हो गया, क्योंकि ओम बिरला को सोमवार दोपहर लगभग 12.30 बजे लोकसभा सांसदों से 145 हस्ताक्षरों वाला एक ऐसा ही नोटिस मिला था।

नोटिस सौंपने वाले समूह में शामिल एक वरिष्ठ भाजपा सांसद ने कहा, “अध्यक्ष को लोकसभा सांसदों से नोटिस मिले थे और उन्होंने हमें बताया था कि वह एक समिति गठित करेंगे। कानून यही कहता है।” भाजपा सूत्रों ने बताया कि उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति पद से इस्तीफ़ा देने वाले जगदीप धनखड़ ने विपक्ष के नोटिस को स्वीकार नहीं किया था।

जस्टिस वर्मा की छुट्टी होना तय! 208 सांसद हटाने को तैयार, पक्ष-विपक्ष दोनों के नेता शामिल

जगदीप धनखड़ ने क्या कहा था?

विपक्षी दलों के 63 राज्यसभा सांसदों द्वारा जस्टिस वर्मा को हटाने के लिए दिए गए नोटिस की ओर इशारा करते हुए जगदीप धनखड़ ने सोमवार को कहा था कि यह उन्हें हटाने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए सांसदों की संख्या को पूरा करता है। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि जस्टिस (जांच) अधिनियम के अनुसार, जब संसद के दोनों सदनों में एक ही दिन प्रस्ताव के नोटिस प्रस्तुत किए जाते हैं, तो जस्टिस के खिलाफ लगाए गए आरोपों की जांच के लिए लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति द्वारा एक समिति गठित की जाएगी।

क्या होती है प्रकिया?

पूर्व लोकसभा सचिव पीडीटी आचार्य ने कहा कि जब अध्यक्ष को लोकसभा सांसदों से नोटिस मिला, तो हटाने की प्रक्रिया शुरू हो गई। आचार्य ने कहा, “अध्यक्ष को इसे स्वीकार करना होगा। फिर अध्यक्ष एक वैधानिक समिति नियुक्त करेंगे, अध्यक्ष को इसे सदन के समक्ष लाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि उस स्तर पर सदन की कोई भूमिका नहीं होती है।” आचार्य के अनुसार, ऐसा प्रतीत होता है कि जगदीप धनखड़ ने प्रस्ताव को स्वीकार ही नहीं किया।

आचार्य ने आगे कहा, “राज्यसभा के सभापति को प्रस्ताव स्वीकार करना होगा और फिर अगर दोनों सदनों में एक साथ प्रस्ताव पेश किया जाता है, तो पीठासीन अधिकारी मिलकर वैधानिक समिति का गठन करेंगे। लेकिन धनखड़ ने सोमवार को सदन में नोटिस का ज़िक्र किया, इसलिए उन्हें क़ानून के अनुसार इसे स्वीकार करना पड़ा, जो शायद नहीं हुआ।” हालांकि एक वरिष्ठ मंत्री ने कहा कि समिति के गठन के लिए राज्यसभा के सभापति, (जो अब उपसभापति हरिवंश हैं और अध्यक्ष के रूप में कार्य कर रहे हैं) से परामर्श किया जाएगा क्योंकि धनखड़ ने समिति के अध्यक्ष होने का ज़िक्र किया था।

लोकसभा स्पीकर गठित करेंगे समिति

सूत्रों ने बताया कि वैधानिक समिति (जिसमें सुप्रीम कोर्ट के एक जस्टिस, हाई कोर्ट के एक जस्टिस और एक प्रतिष्ठित ज्यूरिस्ट शामिल होंगे) की घोषणा जल्द ही की जाएगी। समिति जस्टिस वर्मा के ख़िलाफ़ आरोपों की जांच करेगी और लोकसभा अध्यक्ष को एक रिपोर्ट सौंपेगी। अगर समिति उन्हें दोषी पाती है, तो लोकसभा में प्रस्ताव लाया जाएगा और उस पर विस्तार से चर्चा की जाएगी। प्रस्ताव पर मतदान होगा और इसे पारित होने के लिए दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी। प्रक्रिया पूरी होने के बाद यही बात राज्यसभा में भी दोहराई जाएगी।

इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि वह जस्टिस वर्मा की उस याचिका पर सुनवाई के लिए एक पीठ का गठन करेगा जिसमें उन्होंने एक आंतरिक जांच पैनल की रिपोर्ट को अमान्य करने की मांग की है। रिपोर्ट में उन्हें नकदी बरामदगी मामले में दोषी पाया था। जस्टिस वर्मा ने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा 8 मई को संसद से उनके खिलाफ महाभियोग चलाने का आग्रह करने की सिफारिश को भी रद्द करने की मांग की है।

जस्टिस वर्मा ने दी है चुनौती

जस्टिस वर्मा ने तीन सदस्यीय आंतरिक न्यायिक पैनल की रिपोर्ट के निष्कर्षों को भी चुनौती दी है। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू की अध्यक्षता वाले तीन न्यायाधीशों के पैनल ने 10 दिनों तक जांच की, 55 गवाहों से पूछताछ की और उस घटनास्थल का दौरा किया जहां 14 मार्च की रात लगभग 11.35 बजे जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास पर आग लग गई थी। जस्टिस वर्मा उस समय दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश थे और अब वह इलाहाबाद हाई कोर्ट में हैं। इस रिपोर्ट पर कार्रवाई करते हुए तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग चलाने की सिफारिश की थी।