हर तरफ राजनीति और राजनीति ही चल रही है। कुछ राज्यों में आने वाले महीनों में चुनाव होने वाले हैं। इसको लेकर राजनेता अपनी सक्रियता बढ़ा दिए हैं। खबरों में छाए रहना भी जरूरी होता है। आगे बढ़ने के लिए यह भी एक मापदंड है। यही वजह है कुछ लोग बयानबाजी करके एक्टिव हैं तो कुछ लोग अन्य गतिविधियों के जरिए सुर्खियों में हैं। इससे पार्टी को भी फायदा मिलता है और पहचान तो बढ़ती ही है।

खता-ए-खत

भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण को पत्र लिखकर ऐसी क्या खता कर दी कि उन्हीं की पार्टी के नेता अब उन्हें खलनायक बनाने पर तुल गए हैं। जीवन बीमा व स्वास्थ्य बीमा पालिसी के प्रीमियम पर 18 फीसद की दर से जीएसटी लगाना किसे भाएगा। गडकरी ने तो पार्टी हित में ही दिलाया था सीतारमण का ध्यान। मध्य वर्ग पार्टी का जनाधार माना जाता है। जो सरकार की आयुष्मान योजना के दायरे में भी नहीं आता। मुद्दा सचमुच जनहित से जुड़ा था। सो विपक्ष ने संसद में इस पर हंगामा कर सरकार को बचाव की मुद्रा में ला दिया। यह सही है कि जीएसटी के बारे में निर्णय अकेले सीतारमण नहीं कर सकतीं। पर वे जीएसटी काउंसिल से सिफारिश तो कर सकती हैं। जिन राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं, उनके वित्त मंत्रियों की तरफ से जीवन बीमा और स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम पर जीएसटी खत्म करने का प्रस्ताव लाने को कह सकती हैं। खत्म करने की मंशा न हो तो घटाकर पांच फीसद करा सकती हैं। जनहित के प्रस्ताव पर काउंसिल में कौन विरोध करेगा। पर हर कोई गडकरी को दे रहा है नसीहत। सोशल मीडिया पर उन्हें ज्ञान मिल रहा है। मसलन गडकरी मंत्री हैं तो यह बात निर्मला सीतारमण या प्रधानमंत्री के कान में वैसे भी डाल सकते थे, सार्वजनिक क्यों किया? कटु सत्य के लिए दाद देने के बजाय गडकरी पर बागी तेवर अपनाने की तोहमत तक लगा रहे हैं।

जया के वचन

राज्यसभा में बजरिए जया बच्चन एक अलग ही दृश्य बन पड़ा है। जया बच्चन राज्यसभा में नियमित रहने वाली सांसदों में से एक हैं। कई मुद्दों को उन्होंने मुखरता से उठाया है। राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ से उनके तनाव के बाद इस बार मुद्दे ने तूल पकड़ लिया है। जया बच्चन जहां विपक्ष के सांसदों के साथ भेदभाव की बात पर तीखे सवाल उठा रही हैं तो उनके दखल को महज पति के नाम के साथ जोड़ने वाली बात तक महदूद रखा जा रहा है। अभिनय के क्षेत्र से राजनीति में आने वाले सांसदों में जया बच्चन ने अपनी अलग छवि भी बनाई है। राज्यसभा के ताजा विवाद के बाद वह संसद परिसर में विपक्ष की महिला नेताओं का नेतृत्व सा करती दिखीं। विपक्ष की ज्यादातर महिला सांसदों ने उनके पक्ष में कहा कि उन जैसी वरिष्ठ नेता का आरोप जायज है। देखना है कि जया के नेतृत्व में उठा मुद्दा अब किस तरफ जाएगा।

मुलाकात हुई, क्या बात हुई

महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पिछले हफ्ते दिल्ली आकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले थे। अगले दिन वे नागपुर के संघ मुख्यालय गए। तभी से इन मुलाकातों को लेकर सियासी हलकों में अटकलें तेज हो गई हैं। मुलाकातों के निहितार्थ तलाशे जा रहे हैं। कुछ लोगों का कहना है कि फडणवीस पार्टी के अगले अध्यक्ष हो सकते हैं। फडणवीस भी गडकरी की तरह ब्राह्मण हैं। अमित शाह के भरोसेमंद माने जाते हैं। नितिन गडकरी की तरह वे भी नागपुर के हैं। पर दोनों में पटरी नहीं बैठती। गडकरी से छत्तीस का आंकड़ा भी उनकी तरक्की का एक कारण हो सकता है। फडणवीस महाराष्ट्र प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष और मुख्यमंत्री दोनों दायित्वों का निर्वाह कर चुके हैं। अध्यक्ष बनाए जाने की अटकलों को लेकर मीडिया ने उन्हें कुरेदा तो नकारते हुए इन्हें कोरी अफवाह बता दिया। महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे को सत्ता से बेदखल करना आलाकमान का एजंडा था, जिसके लिए फडणवीस ने उपमुख्यमंत्री की कुर्सी स्वीकार करने में भी कोई अपमान महसूस नहीं किया। फडणवीस के करीबी भी प्रधानमंत्री और संघ मुख्यालय के फडणवीस के दौरों को दो महीने बाद सूबे में होने वाले विधानसभा चुनाव की रणनीति की तैयारी से जोड़ रहे हैं।

तस्वीर बोलती है

उत्तराखंड की सियासत में इन दिनों भाजपा के छत्रपों में बड़े नेताओं से मुलाकात करने और फिर फोटो सोशल मीडिया पर पोस्ट करने की होड़ लगी है। राज्य के मंत्री धनसिंह रावत ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से हुई मुलाकात का फोटो पोस्ट कर दिया। योगी एक तो उत्तराखंड के मूल निवासी ठहरे, ऊपर से रावत की राजपूत जाति के। दूसरे मंत्री सुबोध उनियाल ने दिल्ली में अमित शाह से मुलाकात कर फोटो सोशल मीडिया पर पोस्ट किया। सबसे हैरान करने वाली मुलाकातें दो रही। एक तो पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत का दिल्ली जाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलना और फोटो सोशल मीडिया पर पोस्ट करना।

दूसरी कांग्रेस के नेता हरीश रावत की मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से हुई मुलाकात। कांग्रेस के नेताओं को हरीश रावत की यह फितरत कतई नहीं भाती। हैरान करने वाली मुलाकात मुख्यमंत्री धामी से मदन कौशिक और बिशन सिंह चुफाल की भी मानी जा रही है। दोनों अभी तक तो धामी विरोधी खेमे में गिने जाते थे। जहां तक तीरथ सिंह रावत का सवाल है, वे इन दिनों खाली हैं। विधायक, प्रदेश अध्यक्ष, सांसद और मुख्यमंत्री रह चुके हैं। मुख्यमंत्री उन्हें त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह 2021 में सांसद होते हुए बनाया गया था। पर तीन महीने में हटा भी दिया। इस साल उनका लोकसभा टिकट भी कट गया। जाहिर है कि प्रधानमंत्री से मिलकर रावत ने अपने पुनर्वास की फरियाद तो जरूर की होगी।

अस्तित्व को लेकर सक्रिय

बिन जीत सब सून। भाजपा में एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि पार्टी ने साफ-साफ कह दिया है कि हमने आपको जिताया, अब आप हमें जिताओ। यह इशारा आगामी विधानसभा चुनाव के संदर्भ में था। हाल ही में भाजपा ने केंद्र की सत्ता में वापसी की है। इस वापसी के बाद लगातार केंद्र के नेताओं के पास दिल्ली के नेता शुभकामनाएं लेकर पहुंच रहे हैं। पार्टी सूत्रों के मुताबिक हाल ही में दिल्ली के सातों सांसद भी एक साथ वरिष्ठ नेताओं से मिले हैं। हालांकि यह पूर्व नियोजित नहीं था। पर जब एक साथ मिले तो पार्टी के र्शीर्ष नेतृत्व ने सातों सांसदो को लगे हाथों आगामी विधानसभा का कठिन टास्क सौंप दिया है। दिल्ली की सत्ता लंबे समय से भाजपा को तरसा रही है तो इसे लेकर सक्रिय रहना लाजिम है।