जमीयत-उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष अरशद मदनी ने कहा है कि शरिया के मुताबिक बाबरी में मस्जिद थी और वहां कयामत तक सिर्फ मस्‍ज‍िद ही रहेगी। इसके साथ ही मदनी ने कहा कि वह अयोध्या-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का जो भी फैसला आएगा उसे मानेंगे।

उन्होंने कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट जैसी संस्था का बेहद सम्मान करते हैं और जो भी फैसला आएगा उसका भी सम्मान करेंगे। इस मामले में मध्यस्थता की प्रक्रिया विफल होने पर उन्होंने बताया कि दोनों ही पक्ष अपनी-अपनी मागों पर अड़े रहे जिसकी वजह से यह विफल रही। उन्होंने कहा कि हम राम चबूतरा को स्वीकार करने के लिए तैयार थे, भले ही विवादित वक्फ भूमि में राम चबुतरा, राम भंडारा और सीता रसोई हों।

अरशद मदनी ने आगे कहा ‘हिंदू पक्ष गुंबद वाले हिस्से और उसके आंगन क्षेत्र पर अपना दावा छोड़ने को तैयार नहीं थे जहां बाबरी मस्जिद थी और जहां मुसलमान प्रार्थना करते थे। भारतीय वक्फ कानून हमें इसकी इजाजत नहीं देता कि हम इस जमीन पर अपना दावा छोड़ दें क्योंकि यहां पर शरिया कानून के तहत मस्जिद थी। हिंदू पक्ष अपने दावे पर अड़िग था नतीजन मध्यस्थता विफल रही। इसके बाद हमारे पास कोई विकल्प नहीं बचा और अब हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रहे हैं।’

मदनी ने यह बयान अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी के आवास पर मंगलवार को हुई मुस्लिम नेताओं, शिक्षाविदों, धार्मिक नेताओं और आरएसएस नेताओं के बीच बैठक के बाद दिया है।

वहीं बीते दिनों गृह मंत्री अमित शाह के नेशनल सिटीजन रजिस्टर (एनआरसी) पर दिए एक बयान की भी कड़ी आलोचना की। मदनी ने कहा कि धर्म के आधार पर नागरिकता देना भारतीय संविधान की भावना के विरुद्ध है।

उन्होंने बताया शाह ने नेताजी इंडोर स्टेडियम में अपने भाषण में कहा था कि ‘मैं सभी हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध और ईसाई शरणार्थियों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि आपको भारत छोड़ने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा। अफवाहों पर विश्वास न करें। एनआरसी से पहले, हम सिटीजनशिप अमेंडमेंट बिल लाएंगे, जिससे इन लोगों को भारतीय नागरिकता प्राप्त होगी। वे भारतीय नागरिक के सभी अधिकारों को हासिल करेंगे।”

उन्होंने कहा कि देश के गृह मंत्री को इस तरह का बयान नहीं देना चाहिए। उन्होंने गृह मंत्री के रूप में शपथ लेते हुए संविधान की शपथ ली थी कि वे अब संविधान के विरुद्ध चल रहे हैं।