परमजीत सिंह वोहरा
तीसरी बड़ी आर्थिक महाशक्ति बनने का ख्वाब यकीनन एक सुखद अनुभूति है, पर इस बात का विश्लेषण करना भी अत्यंत आवश्यक है कि क्यों चीन और अमेरिका बड़ी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं? अगर पिछले तीन वर्षों के आंकड़ों को देखें तो भारतीय अर्थव्यवस्था का कद मात्र 0.55 (2.84 से 3.39) खरब अमेरिकी डालर बढ़ा है, जबकि चीन और अमेरिका की अर्थव्यवस्था के जीडीपी का आकार क्रमश 3.76 खरब डालर तथा 4.08 खरब डालर बढ़ा है।
बीते दिनों प्रधानमंत्री ने अमेरिकी संसद के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित करते हुए कहा कि 2028 तक भारत विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। गौरतलब है कि पिछले वर्ष भारतीय अर्थव्यवस्था ने जीडीपी के आकार के हिसाब से विश्व में पांचवी बड़ी अर्थव्यवस्था होने का तमगा हासिल किया था। आज भारत से आगे अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी हैं।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की हाल ही में आई एक रिपोर्ट भी 2028 तक भारत के तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के सपने को पुष्टि करती है। इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2028 तक भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार 5.58 खरब अमेरिकी डालर के बराबर होगा तथा उस समय भारत विश्व में तीसरे पायदान पर होगा। जापान 5.34 खरब अमेरिकी डालर के साथ चौथे नंबर पर तथा जर्मनी 5.04 खरब अमेरिकी डालर के साथ पांचवें नंबर पर होगा।
मगर इस संदर्भ में यह भी गौरतलब है कि उस दौरान चीन की अर्थव्यवस्था का आकार 27.49 खरब डालर तथा अमेरिका की अर्थव्यवस्था का आकार 32.35 खरब डालर के बराबर होगा। यानी चीन, भारत से पांच गुना से अधिक बड़ा होगा, तो अमेरिका छह गुना से अधिक।
इसलिए इन दिनों यह चर्चा है कि जब भारत विश्व की तीसरी महाशक्ति बन जाएगा, तो उस समय वह अमेरिका और चीन की तुलना में बहुत छोटा होगा। यह भी देखने को मिल रहा है कि जापान और जर्मनी, भारत से बहुत अधिक पीछे नहीं रहेंगे तथा उन दोनों मुल्कों को तकनीक में महारत के चलते भविष्य में फिर से भारत पर बढ़त मिल सकती है। दूसरी तरफ भारत के लिए मुश्किल और बढ़ेगी, क्योंकि भारत और विश्व की सबसे बड़ी आबादी का मुल्क है और घरेलू स्तर पर जीडीपी के आकार के हिसाब से प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाना मुश्किल काम रहेगा।
यह भी सच्चाई है कि वर्तमान परिदृश्य में अमेरिका के साथ भारत की तुलना एक सपना ही है। अमेरिका विश्व में तकनीक के क्षेत्र में अपनी बादशाहत रखता है तथा पिछले कई वर्षों से विश्व के सभी देशों की अर्थव्यवस्थाओं की जीडीपी के आकार में उसका हिस्सा एक तिहाई से अधिक है। जैसा कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की 31 दिसंबर, 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक अब विश्व की सभी अर्थव्यवस्थाओं के जीडीपी का आकार सौ खरब अमेरिकन डालर से अधिक हो चुका, जो कि वर्ष 2000 में 34 खरब अमेरिकन डालर के बराबर था।
पिछले बाईस वर्षों में विश्व की सभी अर्थव्यवस्थाओं का जीडीपी का आकार तीन गुना बढ़ गया और इन सबमें अमेरिका ने प्रथम पायदान पर रहते हुए विश्व की सभी अर्थव्यवस्थाओं की जीडीपी में अपने हिस्से को एक तिहाई से अधिक बनाए हुए है। चीन ने भी पिछले 15-20 वर्षों से आर्थिक स्तर पर अप्रत्याशित वृद्धि की है और इसके कारण विश्व की सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का जीडीपी तीन गुना हो गया है।
भारत चीन के साथ अपना मुकाबला करता रहता है, जबकि चीन की स्पष्ट सोच है कि भारत उसके साथ मुकाबले में ही नहीं है। इसके पीछे शायद चीन का यह तर्क रहता है कि भारत बड़ी मात्रा में आयात के मामले में चीन पर निर्भर है और चीन के साथ भारत का व्यापारिक घाटा तकरीबन सौ अरब डालर का है। यानी चीन के साथ भारत का आयात, निर्यात की तुलना में ज्यादा है।
पिछले तीस वर्षों में भारत ने अपनी आर्थिक विकास नीतियों में आमूलचूल परिवर्तन करके लगातार एक अच्छी आर्थिक विकास दर बनाए रखा है। वर्ष 1991 में भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार मात्र 0.3 खरब अमेरिकी डालर था, जो वर्ष 2004 तक 0.52 खरब अमेरिकी डालर हुआ। उस दौरान भारत नए आर्थिक सुधारों के दौर से निकल रहा था।
उसी दौरान पोकरण में परमाणु परीक्षण किया गया, जिसके चलते कुछ वर्षों तक भारत पर कई वैश्विक आर्थिक प्रतिबंध लगे रहे। मगर वर्ष 2003-04 से लेकर वर्ष 2013-14 तक भारत ने अपनी जीडीपी के आकार को 1.86 खरब अमेरिकी डालर तक पहुंचा दिया। इस दौरान 2007 की अमेरिकी मंदी और वैश्विक संकट का भी भारत ने सामना किया।
फिर 2013-14 से लेकर 2022 तक भारतीय अर्थव्यवस्था ने 3.39 खरब अमेरिकी डालर का मुकाम हासिल किया और भारत विश्व में पांचवी बड़ी अर्थव्यवस्था बना। अब आइएमएफ द्वारा चालू वर्ष 2023 तक भारत की अर्थव्यवस्था का आकार 3.75 खरब डालर अनुमानित किया है। पिछले तीन दशकों का भारत का आर्थिक सफर बहुत शानदार रहा तथा इससे यह आत्मविश्वास भी पैदा हुआ है कि आने वाले वर्षों में भारत विश्व की तीसरी बड़ी आर्थिक शक्ति निश्चित रूप से बनेगा।
तीसरी बड़ी आर्थिक महाशक्ति बनने का ख्वाब यकीनन एक सुखद अनुभूति है, पर इस बात का विश्लेषण करना भी अत्यंत आवश्यक है कि क्यों चीन और अमेरिका बड़ी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं? अगर पिछले तीन वर्षों के आंकड़ों को देखें तो भारतीय अर्थव्यवस्था का कद मात्र 0.55 (2.84 से 3.39) खरब अमेरिकी डालर ही बढ़ा है, जबकि चीन और अमेरिका की अर्थव्यवस्था के जीडीपी का आकार क्रमश 3.76 खरब डालर तथा 4.08 खरब डालर बढ़ा है। यानी इन दोनों देशों की अर्थव्यवस्था के जीडीपी का आकार जो पिछले चार वर्षों में बढ़ा है, उससे कम तो भारतीय अर्थव्यवस्था का वर्तमान जीडीपी स्तर यानी 3.39 खरब डालर है।
आखिर ऐसा क्या पिछले कुछ वर्षों में घटित हुआ, जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार को तुलनात्मक रूप से इन दोनों से कम कर दिया अन्यथा आज भारत जहां है उससे कहीं आगे होता और तीसरी बड़ी आर्थिक महाशक्ति बनने का ख्वाब वर्ष 2028 से पहले ही पूरा हो जाता। पिछले चार वर्षों में भारतीय रुपया अमेरिकी डालर के मुकाबले काफी कमजोर हुआ है।
इस दौरान भारतीय रुपया डालर के मुकाबले बीस प्रतिशत गिरा है, जबकि चीन की मुद्रा युवान में अमेरिकी डालर के मुकाबले इतनी गिरावट नहीं देखी गई है। इसी का परिणाम है कि चीन का जीडीपी बड़ी तेजी से पिछले वर्षों में बढ़ा है। यह भी स्पष्ट है कि रुपए के कमजोर होने के कारण ही जहां आयात बिल महंगा हुआ और घरेलू बाजार में महंगाई बढ़ती रही, जिससे आर्थिक विकास प्रभावित हुआ।
आगामी कुछ वर्षों में भारत के लिए विश्व की तीसरी बड़ी आर्थिक महाशक्ति बनने की बात कोई अतिशयोक्ति नहीं है, लेकिन उस दौरान चीन और अमेरिका की तुलना में भारत बहुत कमजोर रहेगा। लगता है कि आने वाले समय में भारत की आर्थिक नीतियों में एक बार फिर से आमूलचूल परिवर्तन देखने को मिलेगा, क्योंकि भारत अब विश्व की सबसे बड़ी आबादी वाला मुल्क है तथा घरेलू स्तर पर बेरोजगारी तथा महंगाई से निपटने के कई नए तौर-तरीके देखने को मिलेंगे।
फिर भी पिछले तीन दशकों की भारत की आर्थिक प्रगति का श्रेय नब्बे के आर्थिक सुधारों को जाता है, जिसने बड़ी तेजी से भारत को विश्व की पांचवीं बड़ी आर्थिक महाशक्ति के मुकाम पर खड़ा किया। यह गौरतलब है कि भारतीय अर्थव्यवस्था ने 1991 से 2014 तक औसतन 7.81 प्रतिशत की विकास दर हासिल की, जो कि बहुत सराहनीय है, वहीं वर्ष 2004 से 2014 के दौरान विकास दर 13 प्रतिशत से अधिक रही।
हालांकि 2014 के बाद अर्थव्यवस्था के जीडीपी का आकार बहुत तेजी से बढ़ा, है लेकिन विकास दर 6 प्रतिशत के आसपास ही रही है, जो कि चिंताजनक है। पर इसे नकारात्मक नहीं लिया जा सकता, क्योंकि उस दौरान भारत में जीएसटी सहित कई आर्थिक सुधार हुए हैं और इसके अलावा अप्रत्याशित रूप से कोरोना महामारी के चलते तकरीबन डेढ़ वर्ष तक अर्थव्यवस्था पर पड़े आर्थिक दुष्प्रभावों ने भी आर्थिक विकास को बाधित किया है।