असहिष्णुता पर जारी चर्चा के बीच जम्मू-कश्मीर में भाजपा की गठबंधन सहयोगी पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने शनिवार को कहा कि बुद्धिजीवियों का पुरस्कार वापसी बनावटी विरोध नहीं था, बल्कि जम्हूरियत की खूबसूरती है।

महबूबा ने ‘आज तक एजंडा’ में चर्चा में कहा कि हमें हिंदुस्तानी जम्हूरियत पर फख्र होना चाहिए कि हम इस तरह के विरोध भी दर्ज कर सकते हैं। भारत अनूठा देश है। इसकी मजबूती विविधता में एकता है। उन्होंने कहा कि कुछ हाशिए के तत्त्व राष्ट्रवाद के साथ छद्म हिंदुत्व को मिलाते हैं और समस्या खड़ी करते हैं। महबूबा से पूछा गया कि पुरस्कार वापसी स्वत: स्फूर्त नहीं बल्कि बनावटी थी तो पीडीपी नेता ने कहा कि मैं ऐसा नहीं समझती। पुरस्कार विजेता बुद्धिमान हैं। उन्हें कोई अपने इशारों पर नहीं चला सकता। उन्होंने कहा- यह सभी लोगों के लिए पैगाम है कि असहिष्णुता से देश को कोई फायदा नहीं हो सकता और वह भी तब, जब हम विकास के रास्ते पर बढ़ना चाहते हैं।

उन्होंने इस बहस को घिनौना करार दिया कि कौन सा गोश्त खाया जाए और कौन सा नहीं खाया जाए। उन्होंने कहा- यहां हम इस पर चर्चा कर रहे हैं जबकि दाल की कीमत बढ़ गई है। यह विमर्श वीभत्स है। सभी धर्मों ने भारत के विकास में योगदान दिया है। हिंदू धर्म ने हमें सहिष्णुता, इस्लाम ने बराबरी और ईसाइयत ने करुणा का पाठ दिया है।

महबूबा ने कहा कि आतंकी संगठन आइएस कश्मीर के लिए कोई खतरा नहीं है। कश्मीर में आइएस या पाकिस्तानी झंडा लहराना मीडिया में प्रचार पाने का महज एक तरीका है। आइएस इस्लाम का प्रतिनिधित्व नहीं करता। वे मुसलमानों की हत्या कर रहे हैं, इसका प्रचार कर रहे हैं कि जुल्म ढाया जाए। कश्मीर में इस्लाम हमें अपने पड़ोसियों के साथ अमन से रहना सिखाता है। महबूबा ने ऐसी वारदातों को ज्यादा तवज्जो न देते हुए कहा कि लोगों को उन पर ध्यान देना चाहिए जो भारत के साथ हैं। करीब 60-65 फीसद लोग चुनावों में वोट डालते हैं। कुछ लोग हैं जो आपके साथ नहीं रहना चाहते। बेहतर है कि आप में भरोसा रखने वाले लोगों के विकास पर ध्यान देकर बाकी को अलग-थलग कर दिया जाए।

पीडीपी नेता ने मीडिया से कहा कि वह ऐसे तत्त्वों का प्रचार नहीं करें। उन्होंने स्वतंत्रता दिवस की एक घटना का जिक्र करते हुए कहा कि वहां स्थल पर करीब 20-25 हजार लोग थे। हमने सोच-समझ कर स्थल से निजी टेलीविजन चैनलों को दूर रखने का फैसला किया। हमें अंदेशा था कि टीवी चैनलों में कोई एक पाकिस्तानी झंडा या आइएस का झंडा किसी दर्शक को थमा देगा और फिर ध्यान कार्यक्रम से हट जाएगा और यह दृश्य बार-बार दोहराया जाएगा। इसके बाद ढेरों बहस होगी। आखिर में हम सुनेंगे कि राष्ट्र जानना चाहता है…। उनकी यह बात सुन कर श्रोताओं के ठहाकों से पूरा हॉल गूंज उठा।

महबूबा ने कहा कि पाकिस्तान से बातचीत का कोई विकल्प नहीं है। अगर हम आतंकवादी संगठनों को अपनी सरजमीं से दूर रखना चाहते हैं तो भारत को पाक, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से हाथ मिलाना होगा। पाकिस्तान से भारत के रिश्तों का सीधा असर हम पर पड़ता है। सीमा पार से होने वाली गोलीबारी में जम्मू-कश्मीर के लोगों को मरना पड़ता है। उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि हम अपने पड़ोसियों को नहीं बदल सकते। हमें खाई पाटने और अमन के पुल बनाने की कोशिश करनी चाहिए। हम जानते हैं कि आपको तालियां बजाने के लिए दो हाथ चाहिए और मेरा मानना है कि बड़े हाथ (भारत) को ताली बजाने की पहल ज्यादा करनी चाहिए।

विवादित सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (अफस्पा) पर उन्होंने कहा कि पीडीपी और भाजपा के बीच गठबंधन का एक एजंडा है। हम चाहते हैं कि तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ओर से गठित कार्य समूह की रिपोर्ट को लागू किया जाए। भाजपा भी उस रिपोर्ट का हिस्सा थी जिसमें काले कानूनों को खत्म करने और थलसेना की भूमिका में कटौती करने की सिफारिश की गई थी। कश्मीरी पंडितों पर महबूबा ने कहा कि एक मिली-जुली टाउनशिप पर विचार किया जा रहा है जिसमें 50 फीसद फ्लैट कश्मीरी पंडितों के लिए आरक्षित होंगे जबकि बाकी फ्लैट मुसलिमों, सिखों और बौद्धों को दिए जाएंगे।