Impeachment: सरकार और विपक्ष दोनों इलाहाबाद हाई कोर्ट के दो जजों के खिलाफ महाभियोग चलाने के पक्ष में हैं। वरिष्ठ जजों को बर्खास्त करने की इस होड़ में बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव से भी जोड़कर देखा जा रहा है। क्योंकि सरकार और विपक्ष के इस कदम के पीछे भ्रष्टाचार विरोधी साख बनाने के तौर पर देखा जा रहा है। हालांकि, यह स्थिति हाई कोर्ट में जजों की कमी के बीच आई है। क्योंकि हाई कोर्ट में जजों के एक-तिहाई पद रिक्त हैं।

दो जज, दो विवाद

सरकार और विपक्ष ने जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग चलाने की मांग की है। क्योंकि जस्टिस वर्मा के आवास पर जली हुई नकदी के ढेर पाए गए थे। जिस वक्त यह घटना हुई, उस वक्त जस्टिस वर्मा दिल्ली हाई कोर्ट के जज थे।

सोमवार को लोकसभा में महाभियोग प्रस्ताव पेश किया गया था, लेकिन जज ने न्यायपालिका की आंतरिक रिपोर्ट को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है, जिसमें उन्हें बर्खास्त करने की सिफारिश की गई है।

दक्षिणपंथी समूह विश्व हिंदू परिषद के एक कार्यक्रम में विवादास्पद टिप्पणी के बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही की भी मांग की गई है। दिसंबर में 55 सांसदों के एक समूह ने राज्यसभा को पत्र लिखकर उन्हें बर्खास्त करने की मांग की थी।

हाई कोर्ट में 33 प्रतिशत पद रिक्त

हालांकि, महाभियोग की खबरें सुर्खियां बनती रहती हैं, लेकिन न्यायपालिका को अपनी संख्या की समस्या का समाधान करना होगा। कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के प्रश्न के उत्तर में विधि मंत्रालय ने राज्यसभा को बताया कि उच्च न्यायालयों 33 प्रतिशत यानी 371 न्यायाधीशों के पद रिक्त हैं। हाई कोर्ट में न्यायाधीशों के कुल 1,122 पद हैं, जिनमें से वर्तमान में केवल 751 पद ही रिक्त हैं।

देशभर के हाईकोर्ट में कुल स्वीकृत पद 1,122 हैं, जिनमें से केवल 751 पर ही वर्तमान में नियुक्तियां हैं। 178 पदों पर नियुक्तियों के प्रस्ताव पर सरकार और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम विचार कर रहे हैं, जबकि 193 पदों के लिए सिफारिशें अब भी संबंधित उच्च न्यायालय कॉलेजियमों से लंबित हैं।

देरी क्यों?

हालांकि, माना जा रहा है कि यह देरी संविधान के अनुच्छेद 217 और 224 में निर्धारित जटिल नियुक्ति प्रक्रिया के कारण हो रही है। इस पूरी प्रक्रिया में कई चरण शामिल हैं – राज्य सरकार के परामर्श के बाद हाई कोर्ट के दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों द्वारा एक संक्षिप्त सूची तैयार की जाती है। सिफारिशें अनुमोदन के लिए सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को भेजी जाती हैं।

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हालांकि, दिशानिर्देशों में कहा गया है कि उच्च न्यायालयों को किसी भी रिक्ति से छह महीने पहले ये सिफारिशें प्रस्तुत करनी चाहिए, लेकिन विधि मंत्रालय ने कहा है कि समय-सीमा का पालन नहीं किया गया है।

इसने इस बात पर जोर दिया है कि नियुक्ति प्रक्रिया कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच “निरंतर एकीकृत और सहयोगात्मक प्रक्रिया” है, जिससे रिक्तियों को भरने के लिए समयसीमा निर्धारित करना कठिन हो जाता है। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने असम के चीफ सेक्रेटरी को नोटिस जारी किया है। पढ़ें…पूरी खबर।