COVID-19 संकट के बीच विवादों में आए Max Hospital के कोरोना रेट कार्ड को लेकर अस्पताल के चेयरमैन अभय सोई ने कहा है कि उन्हें और अन्य हॉस्पिटल्स को इस दौर में बड़ा घाटा हुआ है। खर्च बढ़ा है, जिसकी वजह से उनका अस्पताल 12 फीसदी से अधिक नुकसान का शिकार हुआ है। सफाई में वह आगे बोले- हम जब इन रेट कार्ड्स की बात करते हैं, तब हमें बहुत सावधान रहना चाहिए। दिल्ली में कोरोना ड्यूटी के दौरान 1000 हजार बेड्स थे, पर मैक्स सबसे पहला अस्पताल था जिसके पास कोरोना के लिए 200 बेड्स थे। हम 10 फीसदी हिस्से से गरीब लोगों का भी इलाज करते हैं। 2000 से अधिक लोगों की हमने सेवा की। 550 तो हमारे ही कर्मचारी ही संक्रमित हुए, जिनका ख्याल रखने की जिम्मेदारी हमारी ही है।
बकौल सोई, “कोरोना काल में हमने अपने डॉक्टर्स के लिए चार होटल ले रखे हैं। हमने नर्स स्टाफ के क्वारंटीन के लिए छह हॉस्टल लिए हैं। हम उन्हें बाहर नहीं भेजते। उनके ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था का बंदोबस्त भी हम करते हैं। मैं 200 बेड का अस्पताल पिछले एक महीने से इन्हीं रेट्स पर चला रहा हूं। मैंने बहुत नुकसान झेला है। कोरोना फैसिलिटी की बात करूं तो माइनस 12 से अधिक नुकसान हुआ है। कोरोना के इलाज के खर्च के कारण अस्पतालों का हाल बदहाल है।”
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दरअसल, सोई की यह सफाई उस कोरोना रेट कार्ड/टेबल पर आई है, जिसका फोटो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ था। महामारी के इलाज के लिए भारी भरकंप शुल्क और पैकेज को लेकर अस्पताल को ट्रोल तक किया गया था। रविवार को इसी मसले पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग पर ‘The Mojo’ की ओर से वरिष्ठ पत्रकार बरखा दत्त ने डिबेट के दौरान सोई से कड़े सवाल किए। उन्होंने महाराष्ट्र सरकार के एक सीनियर अफसर के हवाले से कहा कि ये लोग तो ऐसे कोरोना का इलाज कर रहे हैं, जैसे कोई हॉलिडे पैकेज हो।
बरखा ने चर्चा के दौरान आगे दिल्ली के एक केस (मनदीप सिंह) का जिक्र किया, जिसमें मैक्स अस्पताल ने उसके पिता का इलाज करने से इन्कार कर दिया था। अस्पताल ने कहा था, “पहले पांच लाख रुपए दीजिए।” इस पर सोई ने सफाई देते हुए कहा- कोई भी मैक्स अस्पताल पांच लाख रुपए नहीं मांगता है। हम 50 हजार रुपए डिपॉजिट के तौर पर लेते हैं। मैं इस चीज पर बहुत स्पष्ट हूं।
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पत्रकार आगे बोलीं- मुझे रिपोर्टिंग के दौरान दिल्ली के श्मशान में एक गरीब व्यक्ति मिला था। वह कह रहा था, “हम लोग कीड़े-मकोड़े की तरह मरेंगे। जिनके पास लाखों रुपए हैं, इलाज वही करा सकते हैं। हम तो कीड़ों की तरह मरेंगे। क्या भारतीय होने के नाते आपको अपने अस्पताल द्वारा लिए जाने वाले कोरोना के इलाज के शुल्क का अहसास है? क्या आपको इससे फर्क पड़ता है?”देखें, चर्चा के दौरान उन्होंने और क्या कहाः
पत्रकार ने आगे उनसे पूछा था- आपके यहां जो लाखों में रेट्स हैं, सामान्यतः आपके यहां या किसी और निजी अन्य अस्पताल में मरीज तीन दिन भी इलाज नहीं करा सकता है? इस पर सोई ने जवाब दिया, “हॉस्पिटेलाइजेशन बेहद गंभीर मरीजों के लिए होता है। हमारे पास 135 क्रिटिकल केयर बेड्स हैं, जिनके साथ वेंटिलेटर भी हैं। ऐसी व्यवस्था मौजूदा समय में दिल्ली सरकार के पास भी नहीं है। अगर मॉडरेट पेशेंट होता है, तब हम उसे ऐसी जगह रखते हैं, जहां दिन का खर्च प्रतिदिन 10 हजार रुपए आता है, जबकि हल्के लक्षण हैं, तब तीन हजार रुपए प्रतिदिन पर घर ही मरीज को इलाज मुहैया कराते हैं। ऐसे में यह निर्भर करता है कि मरीज की स्थिति कितनी गंभीर है।”