Written by Alok Deshpande
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के सुप्रीमो शरद पवार ने शायद कभी यह उम्मीद नहीं की थी कि महाराष्ट्र की सियासत में उनकी पार्टी और उनके नेता इस हद तक आ जाएंगे। हालांकि, भारतीय जनता पार्टी के प्रति उनकी पार्टी का खुलापन महाराष्ट्र में कभी भी एक रहस्य नहीं रहा है। फिलहाल 31 एनसीपी विधायकों के साथ सीनियर पवार के खिलाफ बगावत करने और राज्य में बीजेपी सरकार का हिस्सा बनने के बाद अजीत पवार बीजेपी के साथ एनसीपी के गठबंधन के इस इतिहास की ओर इशारा कर रहे हैं।
भाजपा के साथ हमेशा एनसीपी का खुला रुख, महाराष्ट्र की सियासत में सीक्रेट नहीं
अजित पवार महाराष्ट्र की राजनीति में इस गठबंधन की आलोचना करने वाले को पाखंडी बता रहे हैं। जो लोग एनसीपी को अच्छी तरह से जानते हैं, वे इसे एक आसान हकीकत की ओर इशारा करते हैं। महाराष्ट्र की राजनीतिक जानकारों को मालूम है कि एनसीपी अब कहां खड़ी है। साल 1999 में कांग्रेस से अलग होने के बाद और 2014 में इसके गठबंधन में वापसी के बीच एनसीपी कभी भी राज्य में सत्ता से बाहर नहीं थी। इसका लगभग एक दशक हो गया है। साल 2024 में उनकी केंद्र की सत्ता में वापसी की कोई गारंटी नहीं है।
साल 1999 में एनसीपी के गठन के वक्त पवार को मिला था वाजपेयी का ये ऑफर
सोनिया गांधी के नेतृत्व को लेकर शरद पवार ने कांग्रेस के खिलाफ विद्रोह किया और 1999 में एनसीपी का गठन किया था। उसके तुरंत बाद मराठा नेता को प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) में एक भूमिका की पेशकश की गई। शरद पवार ने अपनी आत्मकथा लोक भूलभुलैया संगति (लोग मेरे साथी हैं) में इसका जिक्र किया है। उन्होंने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था और इसके तुरंत बाद महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस से हाथ मिला लिया, लेकिन यह सुनिश्चित किया कि वाजपेयी और भाजपा के साथ उनके सौहार्दपूर्ण संबंध बने रहें।
यूपीए सरकार और गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी के बीच कम्यूनिकेशन की पहल
साल 2004 में यूपीए के सत्ता में आने के बाद भी यह कायम रहा। लोकसभा चुनाव 2004 में वाजपेयी को अपदस्थ कर दिया गया था और नई बनी मनमोहन सिंह सरकार में शरद पवार प्रमुख नेता थे। पवार ने अपनी आत्मकथा में यह भी जिक्र किया है कि यूपीए सरकार के दौरान उन्होंने तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी घनघोर विरोधी कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के बीच संचार का एक चैनल स्थापित करने की पहल की थी।
एनसीपी के साथ गठबंधन भाजपा के लिए केवल फायदे का सौदा
भाजपा के लिए एनसीपी के साथ गठबंधन करना केवल फायदे का सौदा है। पार्टी ने पिछले कुछ वर्षों में कई राज्यों में कई क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन किया है, जो उसकी हिंदुत्व विचारधारा को साझा नहीं करते हैं। इस सूची में जम्मू-कश्मीर में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, जेडी (यू), तृणमूल कांग्रेस, डीएमके, कर्नाटक में जेडी (एस), आंध्र प्रदेश में टीडीपी और पंजाब में अकाली दल शामिल हैं। इससे पार्टी को उन राज्यों में प्रवेश पाने में मदद मिली जहां उसकी उपस्थिति बहुत कम थी।
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शिवसेना के बाद भाजपा के लिए एनसीपी ही था अगला विकल्प
महाराष्ट्र में जब तक शिवसेना के साथ गठबंधन था, खासकर जब दिवंगत बाल ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना अपने चरम पर थी तब तक भाजपा को कभी भी किसी अन्य सहयोगी की जरूरत महसूस नहीं हुई। उस गठबंधन के टूटने और शिवसेना के विभाजन के बाद एनसीपी हमेशा भाजपा के लिए अगला सबसे अच्छा विकल्प थी। जो बात एनसीपी को भाजपा के लिए एक आकर्षक भागीदार बनाती है, वह यह है कि पार्टी के पास शक्तिशाली नेता हैं जो पार्टी की निष्ठा के बावजूद अपने संबंधित निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाताओं के प्रति वफादार रहते हैं।
महाराष्ट्र में एक खास वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा एनसीपी के पास
दूसरा एनसीपी महाराष्ट्र में एक खास वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा अपने साथ लाता है। उदाहरण के लिए, भाजपा के शिवसेना सहयोगी एकनाथ शिंदे के साथ ऐसा मामला नहीं था। वह शिवसेना कार्यकर्ताओं को अपने गुट में लाने में विफल रहे थे। अब कागज पर, भाजपा के साथ राकांपा और शिवसेना के गुटों का गठबंधन क्षेत्रीय और राष्ट्रीय राजनीतिक दलों का मिश्रण लोकसभा और विधानसभा दोनों चुनावों में महाविकास आघाड़ी (एमवीए) पर भारी पड़ सकता है।