संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा है और राज्यसभा में वंदे मातरम पर बहस हुई। राज्यसभा में चर्चा की शुरुआत गृह मंत्री अमित शाह ने की। अमित शाह जब वंदे मातरम पर बोल रहे थे, उस दौरान कांग्रेस के सदस्यों ने हंगामा किया। दरअसल अमित शाह ने अपने भाषण के दौरान कई बार पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू पर बड़े आरोप लगाए और कहा कि उन्होंने ही वंदे मातरम के दो टुकड़े किए।

अमित शाह ने दिग्विजय सिंह पर कसा तंज

कांग्रेस के सदस्य अमित शाह की इस बात पर हंगामा करने लगे। अमित शाह ने यह भी कहा कि जब लोकसभा में वंदे मातरम पर चर्चा हो रही थी, तब गांधी परिवार के दोनों सदस्य सदन में मौजूद नहीं थे। इसके बाद राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह समेत कांग्रेस के कई सांसद नारेबाजी कर करने लगे। इसी दौरान अमित शाह ने दिग्विजय सिंह पर तंज कसते हुए कहा, “दिग्विजय जी, ये सब क्या कर रहे हैं आप इस उम्र में। आपकी नौकरी पक्की है। अब आपकी नौकरी नहीं जाएगी, इसलिए ये सब मत कीजिए।”

अमित शाह ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान वंदे मातरम की जरूरत थी और आज भी है जब देश 2047 में विकसित भारत बनने जा रहा है। उन्होंने कहा, “कुछ लोग ‘वंदे मातरम‘ को पश्चिम बंगाल में होने वाले चुनाव से जोड़ कर, इसके महत्व को धूमिल करना चाहते हैं। ‘वंदे मातरम’ एक अमर रचना है जो कर्तव्य और भारत मां के प्रति समर्पण की भावना जाग्रत करती है।”

नेहरू ने ‘वंदे मातरम’ को तोड़ कर सीमित कर दिया, वहीं से तुष्टिकरण की शुरुआत हुई: अमित शाह

नेहरू ने वंदे मातरम को तोड़ा- अमित शाह

अमित शाह ने कहा कि हम न तो संसद से बचते हैं और न ही मुद्दों पर चर्चा करने से भागते हैं, हम संसद में किसी भी मुद्दे पर चर्चा करने के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा, “संसद के दोनों सदनों में ‘वंदे मातरम’ पर चर्चा भावी पीढ़ियों को इसके वास्तविक महत्व, इसके गौरव को समझने में मदद करेगी। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने ‘वंदे मातरम’ को तोड़ कर सीमित कर दिया और वहीं से तुष्टिकरण की शुरुआत हुई जिसकी परिणति देश के बंटवारे के रूप में हुई। अगर इसे तोड़ा नहीं जाता तो देश नहीं बंटता।”

अमित शाह ने आगे कहा, “जब अंग्रेजों ने वंदे मातरम् पर कई सारे प्रतिबंध लगाए, तब बंकिम बाबू ने एक पत्र में लिखा था, ‘मुझे कोई आपत्ति नहीं है, मेरे सभी साहित्य को गंगा जी में बहा दिया जाए। यह मंत्र वंदे मातरम अनंत काल तक जीवित रहेगा, यह एक महान गान होगा और लोगों के हृदय को जीत लेगा और भारत के पुनर्निर्माण का यह मंत्र बनेगा।’ आज बंकिम बाबू के ये शब्द सच हुए हैं। देर से ही सही, ये पूरा राष्ट्र आज सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की परिकल्पना को स्वीकार कर आगे बढ़ रहा है।”