1987 में हुए हाशिमपुरा नरसंहार मामले में उत्तर प्रदेश प्रोविशियल आर्म्ड कॉन्स्टाबुलरी (पीएसी) के 15 जवानों में से चार ने गुरुवार (22 नवंबर) को दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट में सरेंडर कर दिया। इन चारों को यहां से तिहाड़ जेल भेजा गया, जबकि कोर्ट ने बाकी के यूपी पीएसी जवानों के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया है। इससे पहले, 31 अक्टूबर को दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले में बड़ा फैसला दिया था। कोर्ट ने निचली अदालत के उस फैसले को पलटा था, जिसमें इन यूपी पीएसी जवानों को बरी किया गया था। हाईकोर्ट ने इन सभी को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

आपको बता दें कि 1987 में उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के नजदीक हाशिमपुरा गांव से 38 मुसलमानों को पीएसी के जवान उठा ले गए थे, जिनकी बाद में हत्या कर दी गई थी। उनके शव नाले में बहा दिए गए थे। मामले में कुल 19 लोग पर इस घटना की साजिश रचने, मुसलमानों को अगवा करने, हत्या और सबूत मिटाने के आरोप लगे थे। इन आरोपियों में से तीन की ट्रायल के दौरान मौत हो गई थी।

इससे पहले, हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था, “42 से 45 मुसलमानों (बूढ़े से जवान तक) को पीएसी ने तब घेर लिया था। वे उन्हें ट्रक में भर कर ले गए थे। उनको पीएसी जवानों ने .303 राइफल से मारा था, जबकि उनकी लाशें नाले में बहा दी गई थीं। वहीं, कुछ को गंग नहर व हिंडन नदी में फेंक दिया गया था।”

अपने आदेश में हाईकोर्ट ने इसे बर्बर और हड्डियां जमा देने वाली घटना बताया था। बेंच में जस्टिस ए.मुरलीधर और विनोद गोयल थे, जबकि मार्च 2015 में ट्रायल कोर्ट ने उन 16 यूपी पीएसी जवानों को बरी कर दिया था। इस आदेश में ट्रायल कोर्ट ने कहा था- इस मामले के आरोपी पीएसी के जवान थे, यह बात साबित नहीं की जा सकी।

गौरतलब है कि इस मामले में बुजुर्ग रणबीर सिंह बिश्नोई गवाह थे। वह बीते मार्च में तीस हजारी कोर्ट में हाजिर हुए और मामले से जुड़ी डायरी सौंपी थी, जिसमें मेरठ पुलिस लाइंस में 1987 में तैनात पुलिसकर्मियों के नाम थे। डायरी को सबूत के तौर पर पेश किया गया था।