हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे 8 अक्टूबर को आएंगे। लेकिन इस नतीजे का महत्व काफी बड़ा होगा। बड़ा सवाल यह है कि क्या कांग्रेस, बीजेपी से एक और राज्य छीन सकती है या नहीं? यदि मंगलवार को चुनावी नतीजे कांग्रेस के पक्ष में आते हैं तो उसे महाराष्ट्र और झारखंड में फायदा मिल सकता है। चुनावी नतीजों के बाद तुरंत महाराष्ट्र और झारखंड की तारीखों का ऐलान भी चुनाव आयोग कर सकता है।

बीजेपी के किले में सेंध?

हरियाणा के फैसले से यह भी पता चलेगा कि क्या विपक्ष का प्रभाव हिंदी पट्टी में बढ़ रहा है, जो एक दशक से भाजपा के लिए अभेद्य किला रहा है। कांग्रेस ने दो साल पहले हिमाचल प्रदेश पर कब्जा कर लिया था और हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में उसने सहयोगी समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर उत्तर प्रदेश में भाजपा को नुकसान पहुंचाया। पड़ोसी दिल्ली और पंजाब में वैसे भी आम आदमी पार्टी (AAP) का शासन है।

हरियाणा में बदलाव की इच्छा इस बार स्पष्ट थी। अहीरवाल क्षेत्र और जीटी रोड निर्वाचन क्षेत्रों में भी बीजेपी को मुकाबला करना पड़ा। गुड़गांव जिले के बादशाहपुर निर्वाचन क्षेत्र में सड़क के किनारे एक ढाबे पर एक ड्राइवर ने कहा, “मार्केटिंग में आप हर समय कुछ नया ढूंढ रहे हैं। लोग पुराने संदेशों से थक गए हैं। यह छठी बार फिल्म देखने जैसा है।”

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राजनीतिक दलों के आंतरिक सर्वेक्षणों में भी एग्ज़िट पोल की तरह ही बताने के लिए एक ही कहानी थी। सूत्रों के मुताबिक बीजेपी ने निष्कर्ष निकाला कि कांग्रेस को 60 सीटें, बीजेपी को 20 सीटें और क्षेत्रीय पार्टियों और निर्दलीयों को 10 सीटें, प्लस या माइनस दो सीटें मिलने की संभावना है। भाजपा के 10 साल के शासन, मनोहर लाल खट्टर की अलोकप्रियता और उनके उत्तराधिकारी नायब सिंह सैनी की कम समय में स्थिति को सुधारने में असमर्थता के कारण सत्ता विरोधी लहर पैदा हुई, जिससे उन्होंने कांग्रेस को उपजाऊ जमीन प्रदान की। इस बार हरियाणा में जाट कांग्रेस के साथ चले गए हैं।

क्या होंगे बीजेपी की हार के कारण

तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन के साथ हरियाणा में माहौल भाजपा के खिलाफ बनने लगा। विरोध प्रदर्शनों में जाटों का बोलबाला था, जो 2014 में पंजाब के खत्री मनोहर लाल खट्टर को सीएम के रूप में चुनने के कारण भाजपा से नाराज थे। भाजपा के पूर्व सांसद बृजभूषण शरण सिंह द्वारा कथित यौन उत्पीड़न के खिलाफ पिछले साल पहलवानों के विरोध प्रदर्शन ने भाजपा के खिलाफ जाटों के गुस्से को बढ़ा दिया था। विनेश फोगाट, साक्षी मलिक और अन्य की लड़ाई न केवल पहलवानों के लिए न्याय की लड़ाई बन गई, बल्कि जाट सम्मान को बहाल करने की भी लड़ाई बन गई।

कांग्रेस के टिकट पर जुलाना से चुनाव लड़ने वाली विनेश फोगाट न केवल राज्य और पूरे भारत में युवा महिलाओं के लिए बल्कि पुरुष-प्रधान जाट समुदाय के लिए भी एक नई आइकन बनकर उभरी हैं। जब उन्होंने एक बैठक में ज्यादातर पुरुषों के सामने अधिकार के साथ अपनी बात रखी, तो यह हरियाणा के समाज में आ रहे एक सामाजिक बदलाव का संकेत था।

INLD-JJP हुई कमजोर

इस चुनाव में क्षेत्रीय दलों इंडियन नेशनल लोकदल (INLD) और जननायक जनता पार्टी (JJP) के कमजोर होने के संकेत मिले। क्या यह उनका कमजोर होना है जो कांग्रेस की मदद कर रहा है, या यह कांग्रेस का पुनरुत्थान है जो क्षेत्रीय दलों को कमजोर कर रहा है? परिणाम कुछ उत्तर देंगे। दूसरी ओर भाजपा के पक्ष में गैर-जाट एकजुटता (जिसने उसे 2014 और 2019 में सत्ता में लाया) इस बार उतना आकर्षक नहीं था। जाट बनाम गैर-जाट विभाजन ने दशकों से हरियाणा की राजनीति को प्रभावित किया है, जिसे सबसे पहले पूर्व सीएम भजन लाल ने किया था।

दलितों की भूमिका निर्णायक

दलित एक्स फैक्टर बनकर उभरे हैं। हालांकि हरियाणा की राजनीति में जाटों का वर्चस्व रहा है, लेकिन दलितों की आबादी लगभग 21% है। कांग्रेस पार्टी ने बीते लोकसभा चुनाव में 10 लोकसभा सीटों में से पांच पर जीत हासिल की। हर पार्टी दलितों तक पहुंच रही है, जिसमें जाट बहुल क्षेत्रीय संगठन भी शामिल हैं, जिन्होंने दलित पार्टियों के साथ गठबंधन किया है। अगर कांग्रेस ऐसा करती है तो जाट-दलित तनाव उसकी सरकार को घेर सकता है। सोहना निर्वाचन क्षेत्र की एक दलित बस्ती में (जिसका एक बड़ा हिस्सा गुड़गांव जिले में है) कांग्रेस को वोट देने जा रहे एक गुट ने पार्टी की सिरसा सांसद कुमारी शैलजा को सीएम बनाने का दावा किया। शैलजा दलित हैं और महिला होने के अपने फायदे होंगे।