अनिल बंसल

रामपुर जिले के एक गांव का 60 वर्षीय किसान रईस खान घर से खेत पर जाने की बात कहकर निकला था। कई घंटे बीत जाने के बाद भी नहीं लौटा तो परिवार वालों को चिंता हुई। वे खेत में पहुंचे तो पाया कि रईस खान के प्राण पखेरू हो चुके थे। परिवार वालों को दोहरा सदमा लगा। एक तो रईस खान की मौत का और दूसरे दस बीघे में खड़ी धान की तैयार फसल बेमौसम बारिश और ओेले पड़ने से पूरी तरह बर्बाद हो जाने का। रईस खान भी अपनी फसल की बर्बादी के सदमे को सहन नहीं कर पाया और दिल का दौरा पड़ने से खेत में ही उसकी मौत हो गई।

किसानों की व्यथा की ऐसी कथाएं उत्तर प्रदेश में भरी पड़ी हैं। लखीमपुर खीरी के मैगलगंज में सैंकड़ों किसान कई दिन से धरना दे रहे हैं। सरकारी दावों के उलट मंडी में उनके धान की खरीद की कोई व्यवस्था नहीं है। सरकार ने कहने को धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य इस सत्र में 1940 रुपए प्रति कुंतल तय कर रखा है। पर उत्तर प्रदेश में धान की खरीद की सरकारी व्यवस्था एक तो बेहद लचर है ऊपर से अनेक धान खरीद केंद्रों पर खरीद ही शुरू नहीें हो पाई है। जबकि राज्य सरकार के दावों के हिसाब से एक अक्तूबर से सारे धान खरीद केंद्र चालू हैं।

मैगलगंज में हालत बेकाबू होते देख 23 अक्तूबर को एसडीएम पहुंचे और किसानों को समझाया पर नाराज किसानों ने अपने धान में आग लगा दी। एक किसान जोगिंदर सिंह तो इतना आहत था कि उसने आग में कूदकर आत्मदाह की भी कोशिश की पर वहां मौजूद दूसरे किसानों ने उसे यह कदम नहीं उठाने दिया। सूबे में सरकारी आंकड़ों के हिसाब से ही ढाई करोड़ किसान हैं। हालांकि खेती पर निर्भरता 22 करोड़ की जनसंख्या में से 65 फीसद है। तो भी अन्नदाता की किसी को चिंता नहीं है। सरकार के ज्यादातर दावे हवाई हैं। हजारों छोटे और सीमांत किसानों को दो साल बीत जाने पर भी छह हजार रुपए सालाना की किसान सम्मान निधि मिली ही नहीं। इसी तरह योगी सरकार ने किसानों के पचास हजार रुपए तक के कर्ज माफ करने का जो कदम उठाया था, उसका लाभ भी सारे पात्र किसानों को तमाम मशक्कतों के बाद भी नहीं मिल पाया।

भाजपा ने 2014 में दावा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह किसानों की आमदनी दो गुना कर देगी। न्यूनतम समर्थन मूल्य के सरकारी आंकड़े ही साबित करते हैं कि दो गुना तो दूर किसी भी फसल के दाम 50 फीसद भी नहीं बढ़े। बेशक लागत तकरीबन दो गुना हो चुकी है। केवल डीजल में ही डेढ़ साल में 27 रुपए लीटर की बढ़ोतरी हुई है। मेरठ के रजपुरा गांव के किसान राजपाल सिंह कहते हैं कि बिजली हो या कृषि यंत्र, खाद हो या बीज, सबके दाम बढ़ गए। पर गन्ने के दाम में उत्तर प्रदेश सरकार ने चार साल में फूटी कौड़ी भी नहीं बढ़ाई।

अब विधानसभा चुनाव देख चालू सत्र के लिए 25 रुपए कुंतल की बढ़ोतरी की है। यह बात अलग है कि अपने चुनाव घोषणा पत्र में भाजपा ने गन्ना किसानों को गन्ने का भाव 450 रुपए कुंतल देने का वादा किया था। किसानों को गन्ने के दाम नहीं बढ़ने से भी ज्यादा शिकायत सरकार से गन्ने का चीनी मिलों द्वारा भुगतान नहीं किए जाने को लेकर है। नए गन्ना सत्र की शुरुआत हो चुकी है पर अब भी किसानों का चीनी मिलों पर पिछले सीजन का गन्ने का हजारों करोड़ रुपया बकाया है। किसान कर्ज भी वक्त पर नहीं चुका पा रहे।

इस समय प्राकृतिक आपदा में राज्य में धान की 30 फीसद फसल बर्बाद हो जाने के आंकड़े सामने आ रहे हैं। पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री सोमपाल शास्त्री कहते हैं कि फसल बीमा योजना महज कागजों में है। दस फीसद किसान भी इन बीमा योजनाओं का भारी भरकम प्रीमियम चुकाने की हालत में नहीं है। सरकारी खरीद केंद्रों पर किसानों के बजाय दलालों के गेहूं और धान की खरीद हो जाती है। किसानों को कभी आनलाइन पंजीकरण न होने तो कभी टोकन न होने तो कभी उनके अनाज में नमी ज्यादा होने का बहाना बनाकर टरका दिया जाता है।