अजय प्रताप तिवारी
पिछले कुछ वर्षों में देश-दुनिया में व्यापक सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन हुआ है। पूरे विश्व में शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में हुई उन्नति, नवीन कौशल और डिजिटल क्रांति ने जन जीवन को आसान बनाया है। प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक गुणात्मक सुधार आया और सामाजिक सेवाओं में लोगों की पहुंच बढ़ी है। आर्थिक विकास के चलते समाज के अनेक समुदायों, वर्गों के जीवन में बेहतरी आई है।
करोड़ों लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर निकले हैं। इसके समांतर लैंगिक असमानता, जीवन स्तर और जीवन गुणवत्ता में असमानता तथा ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में आर्थिक विषमता जैसी गंभीर चुनौतियां भी उत्पन्न हो गई हैं। भारत आज दुनिया की सबसे बड़ी और तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में शुमार है, मगर लैंगिक समानता, श्रम क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी और निर्धनता उन्मूलन के मामले में यह वैश्विक मानकों पर बहुत पीछे है।
भारत में लैंगिक असमानता दुनिया के कई देशों की अपेक्षा ज्यादा है। विश्व आर्थिक मंच द्वारा जारी ‘वैश्विक लैंगिक अंतर रिपोर्ट 2023’ में भारत का स्थान 146 देशों में 127वां है। भारत के कामकाजी क्षेत्रों और शीर्ष पदों पर लैंगिक असमानता का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि संसद में महिलाओं की भागीदारी महज 14.72 फीसद है। हालांकि स्थानीय शासन में यह भागीदारी 44.4 फीसद है।
‘आक्सफैम’ ने ‘टाइम टू केयर’ नामक अपनी रिपोर्ट में भारत में आर्थिक असमानता को लेकर चिंता व्यक्त की है। आर्थिक असमानता की सबसे अधिक शिकार महिलाएं हैं। भारत में पुरुषों की तुलना में महिलाओं को वेतन वाले काम कम मिलते हैं। देश के 119 अरबपतियों की सूची में मात्र नौ महिलाएं शामिल हैं।
अगर विकास कार्यक्रमों से जुड़े कार्यों की तुलना की जाए तो इनमें महिलाओं की भागीदारी 72 फीसद है। पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं 28 फीसद कम उलब्धियां हासिल कर पा रही हैं। आज दुनिया भर में 15 फीसद ऐसी महिलाएं हैं, जो काम करने योग्य हैं, लेकिन उनके पास अवसर उपलब्ध नहीं हैं। पुरुषों में यह आंकड़ा दस फीसद है।
इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों के पास काम के अवसर ज्यादा हैं। 2022 में शिक्षा के क्षेत्र में 24.9 फीसद महिलाओं ने माध्यमिक और उच्चतर शिक्षा प्राप्त की, जबकि इसमें पुरुषों की भागीदारी 38.6 फीसद दर्ज की गई। भारत के शहरी क्षेत्रों में स्नातक कामकाजी महिलाओं की भागीदारी लगभग 23 फीसद है, जबकि कामकाजी पुरुष स्नातक 72 फीसद हैं। विश्व बैंक की एक रपट के अनुसार भारत में विज्ञान, गणित और इंजीनीयरिंग विषय में महिलाएं लगभग 43 फीसद स्नातक उपाधि प्राप्त करती हैं।
दुनिया भर में शीर्ष प्रशासनिक सेवाओं में महिलाओं की भागीदारी बहुत कम है। भारत में महिलाओं की स्थिति बहुत स्पष्ट नहीं है। संस्थागत क्षेत्रों में प्रबंधक पद पर इनकी भागीदारी 2012 से 2022 के बीच लगभग सोलह फीसद थी। इसी तरह 2012 से 2022 के बीच लगभग 44 फीसद युवतियां शिक्षा, रोजगार से वंचित रह गई। कोई ऐसा क्षेत्र नहीं, जहां महिलाओं की भागीदारी पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा हो। निजी और सार्वजनिक उपक्रमों में महिलाएं बराबरी के लिए संघर्ष कर रही हैं।
भारत में कृषि क्षेत्र में रोजगार की अधिक संभावनाएं हैं, लेकिन इस क्षेत्र में भी महिलाएं बहुत पीछे हैं। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन द्वारा जारी रपट ‘द स्टेटस आफ वीमेन इन एग्रीफूड सिस्टम्स’ के अनुसार भारत में 2005 में कृषि क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी 33 फीसद थी, जो 2019 में घट कर 24 फीसद रह गई।
भारत में परिवहन, ‘लाजिस्टिक्स’ और ‘कस्टमर क्लियरेंस’ जैसी व्यापार और उद्योग संबंधी सेवाओं में महिलाओं का हिस्सा पांच फीसद था, जबकि पुरुषों का 15 फीसद। यूएन संघ भी मानता है कि अब भी पूरी दुनिया में ज्ञान, संसाधन और तकनीकी तक महिलाओं की पहुंच पुरुषों की अपेक्षा सीमित है। डिजिटल तकनीक की सुलभता के मामले में भी पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं पीछे हैं। महिलाओं पर अवैतनिक घरेलू कामकाज का बोझ, प्रशिक्षण की कमी और तकनीकी कौशल न होने से रोजगार का अवसर बहुत कम मिलता है।
महिलाओं के कई ऐसे काम हैं, जिनका आर्थिक आकलन नहीं किया जाता। आक्सफैम की रिपोर्ट के अनुसार पूरे विश्व में घरेलू कार्यों में लगी महिलाएं एक वर्ष में करीब दस हजार अरब डालर के बराबर काम करती हैं, जिसका उन्हें वेतन नहीं मिलता। अगर इन महिलाओं के कार्यों की आर्थिक गणना की जाए, तो वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद करीब चार फीसद के बराबर होगा। कोविड-19 के बाद से महिलाओं के अवसरों में काफी गिरावट देखी गई है।
यहां तक कि पुरुषों और महिलाओं की मजदूरी में असमानता है। कृषि कार्यों में जिस काम के लिए पुरुषों को एक रुपया मिलता है उसी काम के लिए महिलाओं को 82 पैसे मिलते हैं। पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की मजदूरी में लगभग 15 फीसद का अंतर होता है। श्रमबल सर्वेक्षण रपट 2022-23 के अनुसार भारत में महिला श्रमबल 37 फीसद है।
कुलश्रम बल आय में महिलाओं की भागीदारी महज 18 फीसद है, जबकि पुरुषों की कुल श्रमबल आय 82 फीसद है। भारत में कुल व्यवसाय का लगभग 14 फीसद महिलाओं द्वारा संचालित होता है। केवल 17 फीसद महिलाओं को नियमित वेतन वाली नौकरी प्राप्त है। इक्यावन फीसद महिलाओं का कार्य अवैतनिक है, 95 फीसद महिलाओं का कार्य अनौपचारिक और असंगठित है।
श्रमबल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ने से आर्थिक विकास की रफ्तार बढ़ती है, गरीबी और भुखमरी घटती है। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार भारत में महिलाओं की आर्थिक विकास में भागीदारी बढ़ने से लगभग 4.5 करोड़ लोगों को भूख संबंधी समस्याओं से निजात मिलेगी। विश्व में लगभग दो सौ चालीस करोड़ महिलाएं आर्थिक, सामाजिक और पुरुषों के समान अधिकारों से वंचित हैं।
आर्थिक विकास में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने से वैश्विक अर्थव्यवस्था को 81.6 लाख करोड़ रुपए का लाभ होगा। मेकिंजे ग्लोबल इंस्टीट्यूट के अध्ययन के अनुसार भारत में महिलाओं की आर्थिक भागीदारी से 2025 तक सकल घरेलू उत्पाद में 2.9 लाख करोड़ डालर की वृद्धि होने की संभावना जताई गई है। आर्थिक विकास में समान भागीदारी से नवप्रवर्तन, प्रतिष्ठा में बढ़ोतरी, विभिन्न प्रकार के आर्थिक क्षेत्रों के सूचकांकों में बेहतरी आएगी।
आर्थिक विकास में समान भागीदारी के लिए प्रत्येक व्यक्ति को उसकी क्षमता और योग्यता के अनुसार कौशल विकास और नवीन तकनीकी में ज्ञान अर्जित करना होगा। क्योंकि अब अर्थव्यवस्था तकनीक और डिजिटल की ओर बढ़ रही है। समान भागीदारी से आर्थिक उन्नति, जीवन स्तर में सुधार, निर्धनता में कमी, देश में खुशहाली आती है।
समाज समृद्ध होता और राष्ट्र नए कीर्तिमान गढ़ता है। समान भागीदारी से आर्थिक क्षेत्र में लंबे समय से व्याप्त विषमता में कमी आएगी। कोई भी राष्ट्र बिना समान भागीदारी के, आर्थिक क्षेत्र में मजबूत नहीं हो सकता है। बिना समान भागीदारी सुनिश्चित किए भारत के लिए दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह आसान नहीं होगी।