मंगलवार (14 अप्रैल) की देर रात करीब 10 बजे 65 वर्षीय बुजुर्ग, जिनकी पहचान मरीज संख्या-252 के रूप में हो रही थी, को बेंगलुरु की एक कब्रगाह में 10 फीट गहरे गड़्ढे में दफना दिया गया। उस वक्त उनके परिवार का एक भी सदस्य मौजूद नहीं था, जबकि उनका भरा-पूरा परिवार है जिसमें 26 लोग हैं। बुजुर्ग का अंतिम संस्कार राजीव गांधी इन्स्टीट्यूट ऑप चेस्ट डिजीज के तीन कर्मचारियों ने किया। उनके साथ एनजीओ के भी कुछ लोग मौजूद थे जिन्होंने शव को कब्रगाह तक लाने में मदद की थी। इनके अलावा बेंगलुरू सिटी कॉरपोरेशन के भी दो अफसर मौजूद थे।

कोरोना वायरस से संक्रमित बुजुर्ग की मौत 13 अप्रैल को हो गई थी। उनकी मौत के फौरन बाद उनके परिवार के सभी लोगों को क्वारंटीन सेंटर में भेज दिया गया। इसी वजह से उनके परिवार के 26 सदस्यों में से कोई उन्हें अंतिम विदाई देने भी नहीं पहुंच सका। अस्पताल और स्थानीय प्रशासन ने ऐसे 78 लोगों को चिन्हित किया है जो मरीज संख्या-252 के संपर्क में आ चुके हैं। इनमें 26 तो उनके अपने परिवार के लोग हैं। उनके पड़ोसी और किराएदारों को भी क्वारंटीन किया गया है।

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मरीज संख्या-252 के दामाद ने कहा, “यह सोचकर हमें बहुत दुख हो रहा है कि हम में से कोई भी उनके अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो सका। हमें बीमारी की वजह से अंतिम संस्कार से दूर रहने के लिए मजबूर किया गया। अंतिम संस्कार में न तो उनके बेटे और न ही उनके पोते-पोती शामिल हो सके। उनका अंतिम संस्कार सरकार द्वारा किया गया।” 42 वर्षीय शख्स ने कहा, “उनके जीवन की अंतिम घड़ी में भी हम में से कोई भी वहां मौजूद नहीं था।”

65 वर्षीय बुजुर्ग को राजीव गांधी इन्स्टीट्यूट ऑफ चेस्ट डिजीज में सांस लेने में दिक्कत होने पर 12 अप्रैल को भर्ती कराया गया था। वो हार्ट के भी मरीज थे। इस अस्पताल में लाए जाने से पहले उन्हें तीन अस्पतालों का भी चक्कर लगाना पड़ा था। अस्पताल में दाखिल किए जाने के कुछ समय बाद ही बुजुर्ग ने दम तोड़ दिया। उनकी मौत के कुछ समय बाद ही उनका टेस्ट कोरोना पॉजिटिव निकला था। इससे बेंगलुरू में हड़कंप मच गया था क्योंकि जहां वो रहते थे वहां 70 से ज्यादा लोग रह रहे थे और उनके संपर्क में थे।
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