महाराष्ट्र में बीजेपी, शिवसेना के साथ सरकार बनाने का ऐलान भले ही कर चुकी हो, पर फिलहाल इस मसले पर सियासी खींचतान जारी है। शिवसेना जहां मुख्यमंत्री पद के लिए 50-50 फॉर्म्युले पर अड़ी है और छोटी भूमिका से संतोष नहीं करना चाहती है। वहीं, बीजेपी खेमे में इस दौरान सुगबुहागट नहीं नजर आ रही है। दरअसल, उद्धव ठाकरे की पार्टी उनके बेटे आदित्य ठाकरे को ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री बनाने के मुद्दे पर अडिग है।

चूंकि, ठाकरे परिवार से पहली बार कोई चुनाव लड़ा है और जीता भी है, इसलिए भी यह पद उनके लिए काफी मायने रखता है। शिवसेना CM पद के लिए इसलिए भी जोर दे रही है, क्योंकि वह इसके जरिए सूबे में न केवल भौगोलिक और बाकी दृष्टिकोणों से पकड़ मजबूत बना सकती है, बल्कि शासन और प्रशासन को भी अपने तरीके से चला सकती है। साथ ही जनता के दिलो-दिमाग में भी वह सत्ता से वह जगह बना सकती है।

मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियां इस ओर भी इशारा करती हैं कि अगर शिवसेना की ही तरह हरियाणा में किंगमेकर बने JJP के दुष्यंत चौटाला ने वेट एंड वॉच (रुक कर हालात भांपते और फिर फैसला लेते) की रणनीति अपनाई होती तो शायद वह भी 2.5 साल के लिए मुख्यमंत्री की गद्दी पा सकते थे।

राजनीतिक जानकारों की मानें तो हरियाणा में बीजेपी को बहुमत न मिलने के बाद अगर वह समर्थन देने के फैसले में थोड़ा और समय लेते तो शायद वह अपनी बात और मांगें भगवा पार्टी के सामने मनवा सकते थे। पर उन्होंने नतीजों की अगली शाम ही बीजेपी को समर्थन देने पर हामी भर दी और डिप्टी सीएम पद से संतोष कर लिया।

बता दें कि सीएम पद के लिए 50-50 का फॉर्म्युला पहले भी कई राज्यों में अपनाया जा चुका है। कई जगह यह चला और कुछ जगह फ्लॉप भी हुआ। रोचक बात है कि सरकार चलाने के लिए इस तकनीक को न सिर्फ विभिन्न पार्टियों के बीच इस्तेमाल किया गया, बल्कि एक ही पार्टी के दो-तीन दिग्गज नेताओं के बीच सामंजस्य बिठाने और वोटबैंक साधने के मकसद से अमल में लाया गया।

मौजूदा समय में इसकी नजीर छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पेश कर रही है। वहां पर फिलहाल भूपेश बघेल मुख्यमंत्री हैं, पर 2.5 साल बाद उन्हें टी.एस.देवसिंह के लिए कार्यकाल के शेष ढाई सालों के लिए यह पद खाली करना होगा। सूबे के विधानसभा चुनाव में शानदार जीत के बाद कांग्रेस ने दिसंबर 2018 में यह इंट्रा पार्टी फॉर्म्युला अपनाया था।