सोमवार को दिल्ली सेवा विधेयक पर मतदान के दौरान राज्यसभा में खूब हंगामा हुआ। विपक्ष के इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव एलायंस (I.N.D.I.A) को 105 वोट मिलने वाले थे और इसको सुनिश्चित करने के लिए 90 वर्षीय पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह व्हीलचेयर पर वोटिंग के लिए आए। लेकिन विपक्ष के तीन महत्वपूर्ण सदस्यों ने वोट नहीं डाला और इसके बड़े संकेत हैं।
दिल्ली सेवा बिल पर राज्यसभा में सरकार के पक्ष में 131 वोट पड़े जबकि विपक्ष को 102 वोट मिले। राष्ट्रीय लोक दल (RLD) प्रमुख चौधरी जयंत सिंह, समाजवादी पार्टी (SP) समर्थित इंडिपेंडेंट सांसद कपिल सिब्बल और जनता दल-सेक्युलर (JDS) सुप्रीमो और पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया। इसके बाद कई सवाल उठने लगे।
बीजेपी-आरएलडी गठबंधन को लेकर फिर सुगबुगाहट शुरू
जयंत चौधरी की अनुपस्थिति केवल विपक्षी गुट के लिए वोट के बारे में नहीं है। बल्कि यह अगले साल लोकसभा चुनाव से पहले संभावित रालोद-भारतीय जनता पार्टी गठबंधन की चर्चा को फिर से हवा देती है। जयंत की अनुपस्थिति ने विपक्ष को परेशान कर दिया है। गठबंधन में पहले से ही उत्तर प्रदेश की एक महत्वपूर्ण पार्टी बहुजन समाजवादी पार्टी (बसपा) नहीं है। सबसे अधिक आबादी वाले राज्य से किसी एक को भी विपक्ष खोना नहीं चाहता।
हाल ही में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने नई टीम का गठन किया। इस टीम में लगभग सभी समाज के लोगों को प्रतिनिधित्व दिया गया। जयंत चौधरी जाट समाज से ताल्लुक रखते हैं। उत्तर प्रदेश में जिनकी संख्या करीब 2 फीसदी है। वहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 25 लोकसभा सीटों पर इनकी संख्या 30 से 35 फ़ीसदी है। चौधरी चरण सिंह के उत्तराधिकारी माने जाने वाले जयंत चौधरी जाटों के प्रमुख नेता हैं और माना जाता है कि उनकी अच्छी पकड़ है। आने वाले लोकसभा चुनाव से पहले अगर जयंत चौधरी बीजेपी की ओर जाते हैं, तो इससे एनडीए को काफी मजबूती मिलेगी।
क्या सिब्बल भी चल रहे नाराज?
पिछले साल कांग्रेस से बाहर निकलने के बाद कपिल सिब्बल ने निर्दलीय होने के बावजूद सपा के समर्थन से राज्यसभा सीट जीती थी। कांग्रेस छोड़ने पर सिब्बल ने कहा था, ”आप सोच रहे होंगे कि 31 साल बाद कोई कांग्रेस कैसे छोड़ सकता है। कुछ तो बात होगी। कभी-कभी ऐसे फैसले लेने पड़ते हैं।”
कपिल सिब्बल कांग्रेस के विद्रोही ग्रुप जी-23 का चेहरा थे। कई लोगों का मानना है कि दरार अभी तक ठीक नहीं हुई है। दूसरी ओर कपिल सिब्बल की अनुपस्थिति अखिलेश यादव के लिए एक सवाल खड़ा करती है, जिनकी पार्टी दिल्ली सेवा विधेयक के मुद्दे पर अरविंद केजरीवाल के साथ खड़ी थी।
देवेगौड़ा की पीएम मोदी से दोस्ती किसी से नहीं छिपी
पूर्व पीएम एचडी देवेगौड़ा भी राज्यसभा में अनुपस्थित थे और उन्होंने इसके लिए खराब स्वास्थ्य का हवाला दिया। सोमवार को जारी एक प्रेस नोट में कहा गया कि उनके कूल्हे का दर्द उन्हें ज्यादा देर तक बैठने की इजाजत नहीं देता है। हालांकि दिलचस्प बात यह है कि इसमें यह भी कहा गया है कि अगर उनका दर्द कम हो गया तो वह बुधवार से वापस एक्शन में आ जाएंगे। यह कोई रहस्य नहीं है कि राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी होने के बावजूद एचडी देवेगौड़ा और पीएम मोदी के बीच घनिष्ठ संबंध हैं।
2021 की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पूर्व पीएम एचडी देवेगौड़ा ने पीएम मोदी के प्रति अपना सम्मान सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित किया था। पूर्व पीएम एचडी देवेगौड़ा ने कहा था, “मैंने उनसे (पीएम मोदी) कहा था कि अगर आप 276 सीटें जीतेंगे तो मैं इस्तीफा दे दूंगा। आप दूसरों के साथ गठबंधन बनाकर शासन कर सकते हैं, लेकिन अगर आप अपने दम पर 276 सीटें जीतते हैं, तो मैं (लोकसभा से) इस्तीफा दे दूंगा।”
इन तीनों ही सदस्यों के वोटिंग में हिस्सा न लेने से विपक्षी एकता पर सवाल खड़े हो रहे हैं। बीजेपी भी इसको भुनाना चाह रही है और उसके नेता बार-बार कह रहे हैं कि गठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं है।