Delhi Riots: दिल्ली की एक कोर्ट ने हाल ही में एक व्यक्ति को 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों के मामले में भाजपा नेता कपिल मिश्रा के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग के लिए संबंधित एमपी/एमएलए कोर्ट जाने के लिए कहा है। कड़कड़डूमा कोर्ट के प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट उद्भव कुमार जैन ने शिकायतकर्ता मोहम्मद वसीम से कहा कि वह मिश्रा के खिलाफ कार्रवाई के लिए संबंधित एमपी/एमएलए कोर्ट का दरवाजा खटखटाएं, क्योंकि वह पूर्व विधायक हैं।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, आदेश में मजिस्ट्रेट ने कहा कि ऐसा लगता है कि जांच अधिकारी को पुलिस अधिकारियों की अधिक चिंता थी और या तो वह कथित आरोपी नंबर 3 (कपिल मिश्रा) के खिलाफ जांच करने में विफल रहे या उन्होंने उक्त आरोपी के खिलाफ आरोपों को छिपाने की कोशिश की। एटीआर उनके (मिश्रा) बारे में पूरी तरह से चुप है।
अपनी शिकायत में वसीम ने दावा किया कि वह उन लोगों के समूह का हिस्सा था, जिन्हें दंगों के दौरान पुलिसकर्मियों द्वारा राष्ट्रगान और वंदे मातरम गाने के लिए मजबूर किया गया था। यह घटना सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक वीडियो से संबंधित है, जिसमें पुलिस द्वारा कई लोगों की कथित तौर पर पिटाई की जा रही है और उन्हें राष्ट्रगान गाने के लिए मजबूर किया जा रहा है।
पिछले साल अगस्त में दिल्ली हाई कोर्ट ने इस समूह के सदस्य 23 वर्षीय फैजान की मौत की जांच सीबीआई को सौंप दी थी। आरोप है कि फैजान की मौत ज्योति नगर थाने में पुलिसकर्मियों द्वारा हिरासत में प्रताड़ित किए जाने के कारण हुई थी।
वसीम की कपिल मिश्रा और पुलिसकर्मियों के खिलाफ शिकायत और आरोप
वसीम ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया कि 24 फरवरी, 2020 को उन्होंने भाजपा नेता कपिल मिश्रा की पहचान की, जो कथित तौर पर एक गैरकानूनी सभा का नेतृत्व कर रहे थे। उन्होंने आरोप लगाया कि उन्होंने प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाईं।
शिकायत के अनुसार, वसीम ने भागने की कोशिश की, लेकिन एक पुलिसकर्मी ने उसे पकड़ लिया और पीटना शुरू कर दिया। आरोप है कि दिल्ली पुलिस के जवान मिश्रा और उसके साथियों का पूरा साथ दे रहे थे। वसीम ने आरोप लगाया कि चार पुलिसकर्मियों ने उसे उठाया और ऐसी जगह फेंक दिया जहां पहले से ही अन्य घायल लोग पड़े थे। शिकायत के अनुसार, पुलिसकर्मियों ने उन्हें पीटना शुरू कर दिया और उनसे राष्ट्रगान गाने को कहा और उनसे “जय श्री राम” और “वंदे मातरम” के नारे भी लगवाए।
वसीम ने आगे आरोप लगाया कि सभी घायलों को एसएचओ की गाड़ी में डाल दिया गया और उन्हें जीटीबी अस्पताल ले जाया गया। शिकायत में आरोप लगाया गया है कि कुछ देर बाद वसीम और एक अन्य व्यक्ति को ज्योति नगर पुलिस स्टेशन ले जाया गया। बाद में फैजान को भी पुलिस स्टेशन लाया गया, जिसकी बाद में पुलिस हिरासत में कथित तौर पर पिटाई के बाद मौत हो गई।
आरोप है कि एसएचओ लॉकअप में आए और उन्हें लात-घूंसों से पीटना शुरू कर दिया। शिकायत के अनुसार, आधे घंटे बाद वसीम को उसके पिता को सौंप दिया गया। वसीम का आरोप है कि दो दिन बाद उसे थाने बुलाया गया, जहां पुलिसकर्मियों ने उससे कहा कि वह सबको बताए कि एसएचओ ने उसकी जान बचाई है और पुलिस ने उन्हें कोई प्रताड़ना नहीं दी।
वसीम ने जुलाई 2020 में शिकायत दर्ज कर कथित आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की थी। हालांकि, कोई कार्रवाई नहीं होने पर उन्होंने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और प्रार्थना की कि संबंधित धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की जाए और मामले की जांच की जाए।
दिल्ली पुलिस की कार्रवाई रिपोर्ट के अनुसार, यह कहा गया कि एसएचओ और अन्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ आरोप निराधार और गलत थे तथा थाने में रहने के दौरान किसी भी पुलिसकर्मी ने वसीम की पिटाई नहीं की थी।
कपिल मिश्रा के बारे में टिप्पणियां
कोर्ट ने कहा कि दिल्ली पुलिस की कार्रवाई रिपोर्ट कपिल मिश्रा के मामले में पूरी तरह खामोश है। जज ने कहा कि या तो जांच अधिकारी मिश्रा के खिलाफ जांच करने में विफल रहे या फिर उन्होंने अपने खिलाफ लगे आरोपों को छिपाने की कोशिश की।
कोर्ट ने कहा कि कथित आरोपी नंबर 3 (कपिल मिश्रा) जनता की नज़रों में है और उसकी अधिक जांच की जा सकती है; समाज में ऐसे व्यक्ति बड़े पैमाने पर जनता के मार्ग/मनोदशा को निर्देशित करते हैं और इसलिए, ऐसे व्यक्तियों से भारत के संविधान के दायरे में जिम्मेदार व्यवहार की अपेक्षा की जाती है।
जज ने आगे कहा कि सांप्रदायिक सद्भाव को प्रभावित करने वाली तीखी टिप्पणियां अलोकतांत्रिक हैं और इस देश के नागरिक से ऐसी टिप्पणियां अपेक्षित नहीं हैं, जहां धर्मनिरपेक्षता जैसे सिद्धांत संविधान में अंतर्निहित आधारभूत विशेषता का मूल्य रखते हैं। इसमें कहा गया है कि नागरिकों को अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पूरा आनंद लेने की अनुमति है, तथापि प्रत्येक अधिकार के साथ एक कर्तव्य भी जुड़ा हुआ है।
कोर्ट ने कहा कि आईपीसी की धारा 153ए के पीछे का सिद्धांत धार्मिक/सांप्रदायिक सद्भाव को बनाए रखना है और यह प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह अपनी अभिव्यक्ति के अधिकार का आनंद लेते हुए धार्मिक सद्भाव को बनाए रखे। यह वास्तव में धर्मनिरपेक्षता का सकारात्मक पहलू है।
कोर्ट ने याचिका का निपटारा करते हुए आदेश दिया कि एसएचओ के खिलाफ भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 295 ए (किसी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके उसकी धार्मिक भावनाओं को आहत करने के इरादे से जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कार्य), 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना), 342 (गलत तरीके से कारावास) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत अपराधों के लिए एफआईआर दर्ज की जाए।
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