विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपने सहयोगियों जद (एकी) और लोकजन शक्ति पार्टी (रामविलास) के लिए दो सीटें छोड़कर जहां पूर्वांचलियों को खुश कर दिया, वहीं सिखों को नाराज कर दिया है। सिख समुदाय का कहना है कि जब भाजपा जद (एकी) और लोकजन शक्ति पार्टी (रामविलास) को सीटें दे सकती है तो अकाली दल से मुंह क्यों फेरा।

ऐसे में सिखों की नाराजगी विधानसभा चुनाव के दौरान करीब दस सीटों से अधिक पर भाजपा का खेल बिगाड़ सकता है। जिसका साफ असर भाजपा के वोट बैंक पर पड़ता दिखाई दे रहा है। बता दें कि चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली में करीब 12 फीसद सिख मतदाता हैं, जिनकी संख्या 10 लाख से ऊपर है। सिख मतदाता राजौरी गार्डन, तिलक नगर, जनकपुरी, मोती नगर, चांदनी चौक, राजेंद्र नगर, गांधी नगर, जंगपुरा, शाहदरा, कालकाजी व ग्रेटर कैलाश सीट पर बड़ा असर रखते हैं। इनमें से 8 सीटों पर वर्तमान में आप पार्टी का कब्जा है।

बीजेपी ने तीन सिखों को दिया टिकट

भाजपा ने चुनावों में अपने बड़े सिख चेहरे के रूप में तीन टिकट सिखों को दी हैं, जिनमें से एक कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए अरविंदर सिंह लवली को गांधीनगर व मनजिंदर सिंह सिरसा को राजौरी गार्डन और तरविंदर सिंह मारवाह को जंगपुरा से प्रत्याशी बनाया है। मालूम हो कि साल 2015 में भाजपा-अकाली गठबंधन के तहत चार सीटें दिल्ली में अकाली उम्मीदवारों को दी गई थीं। लेकिन शिरोमणि अकाली दल बादल के चुनाव चिह्न पर राजौरी गार्डन से मनजिंदर सिंह सिरसा को ही चुनाव लड़वाया गया और बाकी तीनों प्रत्याशी भाजपा के चुनाव चिह्न पर लड़े थे। बाद में भाजपा ने साफ कर कि अकाली दल के प्रत्याशी भाजपा के चुनाव चिह्न पर ही मैदान में लड़ सकते हैं। जिसके बाद मनजिंदर सिंह सिरसा, अकाली दल को छोड़ भाजपा में तो आए लेकिन उन्होंने सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का साथ नहीं छोड़ा।

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वहीं अकाली दल के प्रमुख चेहरों के भाजपा में शामिल होने के बाद, इस बार अकाली दल ने किसी प्रत्याशी को मैदान में नहीं उतारा। वहीं खामोश बैठी भाजपा को समर्थन देने वाले सिख जद (एकी) और लोकजन शक्ति पार्टी (रामविलास) को सीट देने से बौखलाए हुए हैं। साथ ही उनके गुस्से में घी का काम किसान आंदोलन ने किया है।

सिखों का कहना है कि किसान सिर्फ दिल्ली तक पैदल मार्च का अनुरोध ही तो कर रहे हैं लेकिन 54 दिन से किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल आमरण अनशन पर बैठे हैं और केंद्र सरकार उनकी सुध नहीं ले रही है। हालांकि सिखों की भाजपा के प्रति नाराजगी को भांपते हुए आप-कांग्रेस ने इसका फायदा उठाने की रणनीति पहले ही तैयार कर ली है। इस बार आप ने 6 फीसदी व कांग्रेस ने 7 फीसद टिकट सिखों को दिए हैं, ऐसे में भाजपा में घटता प्रतिनिधित्व भी सिखों की नाराजगी का कारण बन रहा है।