दिल्ली में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो गई है और सभी पार्टियां फिर तरह-तरह के लोकलुभावन वादे कर रही हैं। इनमें आम आदमी पार्टी सबसे अलग कुछ करने के लिए बड़ी बेताब है। वह आधे दाम पर बिजली, दो हजार लीटर तक मुफ्त पानी, वीआईपी कल्चर और फिजूलखर्ची आदि के खात्मे के साथ ही ढेर सारी अन्य सुविधाएं देने का वादा जरूर कर रही है मगर यह सब कैसे हो पाएगा, किसी को मालूम नहीं। कौन-कौन सी वीआईपी कल्चर और फिजूलखर्ची कैसे खत्म और कम होगी? उस धन को कहां-कहां और कैसे लगाया जाएगा आदि अभी कुछ भी तो साफ नहीं है।
दरअसल, पार्टियां और नेता कहते कुछ हैं और करते कुछ हैं। आम आदमी पार्टी ने हर काम जनता से पूछ कर यानी जनमत से करने की बात भी कही थी। लेकिन हुआ क्या? टिकट बंटवारे में ही धन बल से जनमत की धज्जियां उड़ चुकी हैं। जैसे दूसरी पार्टियां कर रही हैं वैसे ही यह पार्टी भी वोट के लिए हर हथकंडा अपना रही है। यदि यह अपने सोने जैसे चमकते सच्चे और समान सिद्धांत पर अडिग रहती तो फिर इसे किसी मजहब और जात-पात की शरण में जाने की जरूरत ही क्या थी! पर केजरीवाल भी यही सब कर चुके हैं। यह देख कर इतना जरूर साफ है कि जो पार्टी और नेता चुनाव में करोड़ों रुपए पानी की तरह बहाते हैं क्या वे कभी सेवा करेंगे? हरगिज नहीं। इसलिए हम्माम में सब नंगे हैं और कोई भी तो दूध का धुला नहीं लगता। इन्हीं में से जो कुछ थोड़ा भी ठीक लगता है, बेचारा मतदाता उसे ही चुनने को मजबूर है।
वेद मामूरपुर, नरेला, दिल्ली
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